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‘जगत गुरू’ भारत को अब सारे विश्व की एक लोकतांत्रिक व्यवस्था…….

उत्तर प्रदेश

            लोकमात्य बाल गंगाधर तिलक एक समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, पत्रकार और भारतीय इतिहास के विद्वान थे। तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि में हुआ था। तिलक के पिता श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक संस्कृत के विद्वान और प्रसिद्ध शिक्षक थे। तिलक एक प्रतिभाशाली छात्र थे। वह अपने कोर्स की किताबों से ही संतुष्ट नहीं होते थे। गणित उनका प्रिय विषय था। वह क्रेम्बिज मैथेमेटिक जनरल में प्रकाशित कठिन गणित को भी हल कर लेते थे। उन्होंने बी.ए. करने के बाद एल.एल.बी. की डिग्री भी प्राप्त कर ली। वह भारतीय युवाओं की उस पहली पीढ़ी से थे, जिन्होंने आधुनिक काॅलेज एजुकेशन प्राप्त की थी।

            तिलक को जीवन के सबसे जरूरी समय में माता-पिता का सानिध्य नहीं मिल पाया था। केवल दस वर्ष की अवस्था में ही तिलक की माँ उन्हें छोड़कर चल बसीं और कुछ ही वर्षों के बाद पिता का भी देहांत हो गया। तिलक को उनके दादा श्री रामचन्द्र पंत जी 1857 को हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के किस्से सुनाते थे। इसका प्रतिफल यह हुआ कि तिलक ने बचपन से ही देश की तत्कालीन परिस्थितियों पर चिन्तन करना शुरू कर दिया। तिलक के अन्दर यह योग्यता विकसित हुई कि राष्ट्र को एक सूत्र में कैसे पिरोया जा सकता है? सच्चे जननायक तिलक को लोगों ने आदर से लोकमान्य अर्थात लोगों द्वारा स्वीकृत नायक की पदवी दी थी।

            वह एक महान शिक्षक थे। उन्होंने तकनीक और प्राबिधिक शिक्षा पर जोर दिया। तिलक अच्छे जिमनास्ट, कुशल तैराक और नाविक भी थे। तिलक का मानना था कि अच्छी शिक्षा व्यवस्था ही अच्छे नागरिकों को जन्म दे सकती है। तिलक ने महाराष्ट्र में 1880 में न्यू इग्लिश स्कूल स्थापना की। युवाओं को अच्छी शिक्षा देने के लिए महान समाज सुधारक श्री विष्णु शास्त्री चिपलूणकर के साथ मिलकर 1884 डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की जिसने फरक्यूसन काॅलेज की स्थापना पुणे में की।

            सन 1893 में तिलक ने अंगे्रजों के विरूद्ध भारतीयों को एकजुट करने के लिए बड़े पैमाने पर सबसे पहले गणेश उत्सव की शुरूआत की थी, इस अवधि में स्वामी विवेकानंद उनके यहां ठहरे थे। तिलक की स्वामी जी से अध्यात्म एवं विज्ञान में समन्वय एवं आर्थिक समृद्धि पर लम्बी चर्चा हुई। स्वामी जी ने तिलक के प्रयासों को मुक्त कंठ से सराहा। गणेश उत्सव मंे लोगांे ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इस प्रकार पूरे राष्ट्र में गणेश चतुर्थी मनाया जाने लगा। तिलक ने यह आयोजन महाराष्ट्र में किया था इसलिए यह पर्व पूरे महाराष्ट्र में बढ़-चढ़ कर मनाया जाने लगा। वर्तमान में गणेश उत्सव की व्यापक छवि आज भी पूरे महाराष्ट्र में देखने को मिलती है।

            तिलक छत्रपति शिवाजी को अपना आदर्श मानते थे। छत्रपति शिवाजी का शासन प्रबन्ध एक लोकतांत्रिक राज्य प्रणाली का था। राज्य के सुधार संचालन के लिए उसे प्रान्तों, जिलों एवं परगनों में बांटा गया था। वित्त व्यवस्था के साथ-साथ भूमि कर प्रणाली का आदर्श रूप प्रचलित था। मुगल साम्राज्य के खिलाफ दक्षिण भारत में शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र की नींव रखने वाले सर्वशक्तिशाली शासक छत्रपति शिवाजी कहे जा सकते हैं। उन्हें हिन्दुओं का अन्तिम महान राष्ट्र निर्माता कहा जाता है। छत्रपति शिवाजी का निर्मल चरित्र, महान पौरूष, विलक्षण नेतृत्व, सफल शासन प्रबन्ध, संगठित प्रशासन, नियन्त्रण एवं समन्वय, धार्मिक उदारता, सहनशीलता, न्यायप्रियता सचमुच में ही अलौकिक थी। यह सब गुण उन्हें अपनी माता जीजाबाई तथा गुरू समर्थ रामदास से मिले थे।

            लोकमान्य तिलक और देश के प्रसिद्ध उद्योगपति तथा औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा ने साथ मिलकर बाम्बे स्वदेशी को-आॅपरेटिव स्टोर्स शुरू किये थे। देश के इन दो महान् व्यक्तियों की इसके पीछे भावना देशवासियों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की थी। सहकार-सहकारिता के विचार को आज भारत सहित विश्व के आर्थिक जगत ने अपनाया है।

            तिलक के प्रमुख सहयोगी में लाला लाजपत राय भी थे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले मुख्य क्रान्तिकारी पंजाब केसरी (शेर पंजाब नाम से विख्यात) लाल बाल पाल तिकड़ी में से एक प्रमुख नेता थे। वह पंजाब नेशनल बंैक एवं लक्ष्मी बीमा कम्पनी के संस्थापक थे। लाला जी ने बंगाल के विभाजन के विरूद्ध किए जा रहे संघर्ष में भाग लिया। लोकमान्य तिलक, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष के साथ उन्होंने स्वदेशी के अभियान के लिए बंगाल और बाकी देश को प्रेरित किया।

            तिलक के प्रमुख सहयोगी में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले महान क्रान्तिकारी श्री बिपिन चन्द्र पाल ने स्वदेशी, गरीबी उन्मूलन और शिक्षा के लिए उन्होंने खूब काम किया। इन्होंने भी समाचार पत्रों के द्वारा स्वदेशी तथा स्वराज के विचारों को जन आंदोलन के रूप में विकसित किया। वह लाल बाल पाल के तिकड़ी के हिस्सा थे।

            तिलक के प्रमुख सहयोगी में आयरलैण्ड की मूल निवासी एनी बेसेंट एक समाज सुधारक एवं राजनेता थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की 33वीं अध्यक्ष तथा थियोसोफिकल सोसाइटी की दूसरी अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष थी जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था है। तिलक ने 1916 में एनी बेसेंट के साथ मिलकर अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की थी। 2018 में तिलक होमरूम के अध्यक्ष के रूप में इंण्लैण्ड भी गये। एनी बेसेंट का कहना था कि मैं अपनी समाधि पर यही एक वाक्य चाहती हूँ – उसने सत्य की खोज में अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

            तिलक के चार सूत्रीय के कार्यक्रम थे – स्वराज, स्वदेशी, विदेशी वस्तुओं का बाहिष्कार तथा राष्ट्रीय शिक्षा। महात्मा गांधी ने भी इन चारों कार्यक्रमों को बाद में आजादी के लिए अपना हथियार बनाया। तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पुरोधा माना जाता हैं। तिलक का ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं उसको लेकर रहूंगा’ का नारा देश भर में गुंजने लगा। लोकमान्य तिलक ने स्वराज के प्रति अटूट विश्वास तथा स्वाभिमान प्रत्येक भारतीय में जगा दिया। वह लोगों को बताना चाहते थे कि बीमारी रूपी गुलामी की दवा स्वराज  के रूप में हमारे अंदर ही है। जिस दिन देश का प्रत्येक व्यक्ति इस बात को जान लेगा उस दिन अंग्रेज भारत छोड़कर चले जायेंगे।

            तिलक देश के पहले भारतीय पत्रकार थे जिन्हें पत्रकारिता के कारण तीन बार जेल की सजा हुई थी। तिलक ने अपनी कलम को हथियार के रूप में चुना और दो समाचार पत्र मराठी में केसरी तथा अंग्रेजी में मराठा निकालकर अंग्रेजी शासन को हिला दिया। क्रंातिधर्मी पत्रकार और पत्रकारिता जगत के लिए प्रेरणापुंज हैं लोकमान्य तिलक। तिलक ने अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से जन-जागृति की नयी पहल की। तिलक द्वारा प्रकाशित दोनों समाचार पत्र आज भी छपते हैं। कलम की ताकत से ही आज विश्व के 100 से ज्यादा देशों ने लोकतंत्र को अपनाया है।

            अन्यायपूर्ण अंग्रेजी शासन के खिलाफ 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चन्द्र चाकी ने मुजफ्फरपुर में बम विस्फोट किया। केसरी तथा मराठा के मई व जून के चार अंकों में प्रकाशित सम्पादकीय को राज द्रोहात्मक ठहराकर अंग्रेज जज ने तिलक को छः वर्ष की देश के बाहर बर्मा की जेल में भेजने की सजा सुनायी। तिलक ने बम विस्फोट का समर्थन किया था। उन्होंने लिखा था कि यह एक बम भारत की आजादी प्राप्त नहीं करा सकता लेकिन यह उन स्थितियों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करता है जिन स्थितियों ने इस बम को जन्म दिया। तिलक ने यूँ तो अनेक पुस्तकें लिखीं किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गयी गीता-रहस्य सर्वोकृष्ट है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। तिलक का मानना था कि गीता मानवता की सेवा का पाठ पढ़ाती है। समाजसेवी ‘‘श्यामजीकृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र’’ पुस्तक भी काफी प्रेरणादायी है।

            1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद अंग्रेजांे ने इसकी वापसी दुबारा न हो इसके लिए कांग्रेस की स्थापना की योजना बनायी। 1883 में कांग्रेस की स्थापना हुई थी। तब उसका साहस नही था कि पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास कर सके। यह भारतीयों के लिए ऐसा मंच था जहां वह अनुनय-विनय कर सकते थे। पेटीशन, प्रार्थना पत्र दायर कर सकते थे। यहां पर यूनियन जैक अंग्रेजांे का झण्डा फहराहा जाता था। ब्रिटेन के राजा की जय जयकार होती थी। ब्रिटेन का राष्ट्रगान गाया जाता था।  तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1890 में जुड़े। कोर्ट में सीना ठोक कर तिलक ने कहा ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है वह इसे लेकर रहेंगे’ तो कांगे्रस पूरी तरह से देश का राजनीतिक मंच बन गया। 1929 लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित हुआ। तिलक ने कांग्रेस को सअधिकार अपनी बात कहने का मंच बना दिया। वह पूना की निगम परिषद्, बाॅम्बे विधानसभा के सदस्य और बाॅम्बे विश्वविद्यालय के निर्वाचित ‘फेलो’ थे।

             तिलक ने 1905 में बंगाल विभाजन कानून का जमकर विरोध किया। कांग्रेस में फहराये जाने वाले यूनियन जैक का भी विरोध किया। विपिन चन्द्र पाल तथा लाला लाजपत राय भी उनकी इस मांग के समर्थन में आ गये। तिलक ने देश के प्रत्येक व्यक्ति में अधिकार तथा स्वराज के विचारों को रोपा। 1911 में बंगाल विभाजन कानून वापस होनेे के पीछे तिलक की सबसे बड़ी भूमिका थी। 21 वर्ष का यह कालखण्ड भारत की राजनीति में तिलक युग कहलाता है। अगले 47-48 वर्षों तक उनके 4 सूत्रीय कार्यक्रम ही भारतीय राजनीति का एजेण्डा रहने वाला था। इसी से प्रेरणा लेकर तमाम लोग राजनीति में आये तथा आगे बढ़े हंै। तिलक का 1 अगस्त 1920 को देहान्त का गया। उनकी शवयात्रा में लाखों लोग शामिल हुए। देश में कई जगहों पर उनको श्रद्धाजंलि दी गयी। इस शव यात्रा को स्वराज यात्रा कहा गया। आज तिलक देह रूप में हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके सत्यवादी, साहस, स्वाभिमान, स्वराज तथा न्यायपूर्ण मानव अधिकार के सार्वभौमिक विचार धरती माता की सभी संतानों का युगों-युगों तक सदैव मार्गदर्शन कर रहे हैं।

            वर्तमान समय की मांग है कि विश्व के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि वह विश्व को सुरक्षित करने के लिए अति शीघ्र आम सहमति के आधार पर अपने-अपने देश के राष्ट्राध्यक्षों का ध्यान आकर्षित करें। इस मुद्दे पर कोई राष्ट्र अकेले ही निर्णय नहीं ले सकता है क्योंकि सभी देशों की न केवल समस्यायें बल्कि इनके समाधान भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। वह समय अब आ गया है जबकि विश्व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को एक वैश्विक मंच पर आकर इस सदी की विश्वव्यापी समस्याओं के समाधान हेतु सबसे पहले पक्षपातपूर्ण पांच वीटो पाॅवर को समाप्त करके एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था (विश्व संसद) का निर्माण करना चाहिए।

            तिलक के स्वराज का अभियान 1947 में आजाद भारत के रूप में पूरा हुआ। भारत की स्वराज की आंधी ने विश्व के 54 देशों से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेका। तिलक ने देशवासियों को आत्मसात कराया था कि स्वराज जीवन है तथा गुलामी मृत्यु है। वर्तमान परिपेक्ष्य में अनेक देशों में राष्ट्रीय स्तर पर तो लोकतंत्र तथा कानून का राज है लेकिन विश्व स्तर पर लोकतंत्र तथा कानून का राज न होने के कारण जंगल राज है। सारा विश्व पांच वीटो पाॅवर वाले शक्तिशाली देशों अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रान्स द्वारा अपनी मर्जी के अनुसार चलाया जा रहा है। तिलक जैसी महान आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि यह होगी कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत को एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन की पहल पूरी दृढ़ता के साथ करना चाहिए। विश्व स्तर पर स्वराज (लोकतंत्र) लाने के इस बड़े दायित्व को हमें समय रहते निभाना चाहिए। किसी महापुरूष ने कहा कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं।

प्रदीप कुमार सिंह

पंजीकृत उ प्र न्यूज फीचर्स एजेन्सी

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