नई दिल्ली: वैश्विक पर्यावरण सुविधा और यूएनडीपी के लघु अनुदान कार्यक्रम-एसजीपी पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यशाला का आज नई दिल्ली में पर्यावरण सचिव श्री सी.के. मिश्रा ने उद्घाटन किया। इस मौके पर श्री मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय नीतियों के संदर्भ में जमीनी स्तर पर किए गए कार्यों का ही सबसे बड़ा महत्व होता है। उन्होंने कहा कि देश में सभी क्षेत्रों में नीतियों को लागू करने के बेहतर तौर-तरीकों को साझा किया जाना चाहिए।
उद्घाटन सत्र में पद्मश्री पाने वाले श्री बाबूलाल दहिया को सम्मानित किया गया। श्री दहिया ने विभिन्न फसलों के लिए पारम्परिक बीजों की किस्में विकसित करने के लिए काफी काम किया है। मंत्रालय में अपर सचिव श्री ए.के. जैन ने अपने विशेष संबोधन में कहा कि दो दिवसीय कार्यशाला में पर्यावरण के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर काम करने वालों को अपने अनुभव साझा करने का मौका मिलेगा। यूएनडीपी की डिप्टी कंट्री डायरेक्टर सुश्री नादिया रशीद ने कहा कि विशेष अनुदान कार्यक्रम के तहत भारत के विभिन्न हिस्सों से गैर-सरकारी संगठनों ने काफी योगदान दिया है।
यूएनडीपी 1997 से ही भारत में लघु अनुदान कार्यक्रमों को वित्तीय मदद देने के साथ ही वैश्विक पर्यावरण सुविधा लागू करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय को सहायता देता रहा है। लघु अनुदान कार्यक्रम के तहत लागू की जाने वाली परियोजनाओं को राष्ट्रीय होस्ट इंस्टीट्यूशन और अन्य गैर-सरकारी संगठनों की मदद से लागू किया जा रहा है। पर्यावरण का क्षरण पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान और उस पर निर्भर रहने वाली प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा, वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड और ग्रीन हाऊस गैसों की बढ़ती मात्रा, अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्रों में बढ़ता प्रदूषण, भूक्षरण और ऑर्गेनिक प्रदूषक तत्व पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं, जो मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं। अपने जीवन यापन के लिए पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहने वाले गरीब लोगों को पर्यावरण के नुकसान से सबसे ज्यादा खतरा है। भारत में लघु अनुदान कार्यक्रम के तहत मुख्य रूप से ऐसे गरीब लोगों की मदद के लिए पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर विशेष जोर दिया गया है। एसजीपी इंडिया की ओर से सामुदायिक आधार पर 112 परियोजनाएं क्रियान्वित की गई हैं, जिससे 400,000 से अधिक लोग लाभांवित हुए हैं। एसजीपी ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर और ज्यादा उत्पादक बनाने के लिए बेहतर तौर-तरीकों को लागू किया है। इसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक फायदे भी हुए हैं।
कार्यक्रम की मुख्य उपलब्धियां:
- जैविक खेती और गैर लकड़ी उत्पाद बनाने के सामुदायिक उद्यमों के जरिए पश्चिमी घाट, हिमालयी क्षेत्र तथा शुष्क और अर्ध शुष्क 1,10,000 हेक्टेयर भूमि को टीकाऊ भूमि और संसाधन प्रबंधन के तहत लाना। खेती के बेहतर तौर-तरीकों का प्रचार और बेहतर भूमि और जल प्रबंधन के जरिए सीमांत किसानों की आय बढ़ाने का प्रयास। सौर चूल्हे, कम ईंधन खपत वाले स्टोप, प्लास्टिक कचरे की री-साइक्लिंग और ऐसे ही अन्य उपायों के जरिए कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी।
कार्यशाला में तीन सत्र होंगे, जिनमें पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के उपायों पर चर्चा की जाएगी। इसमें जीईएफ और एसजीपी की ओर से दो से तीन प्रस्तुतियां भी दी जाएंगी। इस दौरान भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, गैर-सरकारी संगठनों और नागरिक समूहों के बीच परिचर्चा भी आयोजित की जाएगी। कार्यशाल में 120 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। इसमें आम नागरिकों और कॉलेज के छात्रों को भी आमंत्रित किया गया है।