लखनऊ: पुलिस महानिदेशक अभियोजन डा0 सूर्य कुमार की अध्यक्षता में दिनांक 22.06.2016 को आपराधिक मामले के त्वरित निपटारे के लिए राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया । जिसमें तीन बिन्दुओं पर विचार विमर्श हुआ, जो निम्नलिखित है-1. विवेचना स्तर पर कार्यवाही 2. अभियोजन स्तर पर कार्यवाही 3. न्यायालय स्तर पर कार्यवाही । इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त न्यायाधीश, मा0 उच्च न्यायालय डी0के0 त्रिवेदी रहे । इस दौरान गृह सचिव श्री मणि प्रसाद मिश्रा, डा0 राजेश कुमार सिंह, अपर विधि परामर्शी न्याय, उ0प्र0 शासन, पुलिस महानिरीक्षक अपराध डा0 आर0के0 स्वर्णकार, अपर निदेशक, न्यायिक प्रशिक्षत केन्द्र, लखनऊ व अपर निदेशक अभियोजन, लखनऊ परिक्षेत्र, लखनऊ श्री हरिहर प्रसाद पाण्डेय और मुख्यालय के सभी अधिकारी/कर्मचारी भी मौजूद रहे ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पुलिस महानिदेशक अभियोजन ने कहा कि पुलिस, अभियोजन व न्यायालय के अच्छे तालमेल से सजा के प्रतिशत को बढ़ाया जा सकता है। उन्होनें कहा कि उपरोक्त तीनों विभाग अपराधियों को जल्द सजा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । अपने संबोधन में उन्होनें यह भी कहा कि पिछले दस महीने से मैं अभियोजन का कार्य देख रहा हॅू और इस दौरान यह देखा है कि अगर समाज को सुदृढ़ रूप से चलाना है तो यहाॅ कि न्याय व्यवस्था चुस्त दुरूस्त होना बहुत जरूरी है। उन्होनें कहा कि अपराध करने वाले मुल्जिमों को जितनी जल्दी सजा दिलायी जायेगी समाज उतना ही जल्द भयमुक्त होगा और शांति का महौल बना रहेगा । साथ ही उन्होनें यह भी कहा कि गंभीर मामलों में अगर पीड़ित को समय पर न्याय मिल जाये तो वही न्याय होता है। कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि कई मुकदमें बहुत लम्बे खिंच जाते है जिससे अपराधी बेलगाम होकर अपराध करते रहते है। पुलिस महानिदेशक ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि हमारा दायित्व है कि जिस तरह से गलत कार्य करने वालों को दण्ड दिया जाता है, उसी तरह अच्छे कार्य करने वालों को समय से पुरस्कृत भी किया जाये, इससे उनका मनोबल बढ़ता है।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति डी0के0त्रिवेदी ने यहाॅ मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पहले के कानून व्यवस्था और वर्तमान के कानून व्यवस्था में काफी बदलाव आ गया है। उन्होनें कहा कि एक समय ऐसा भी हुआ करता था जब किसी चैकीदार को देखकर चोर, डकैत भाग जाते थे लेकिन आज कोई भी गुण्डा/माफिया किसी थाने में पहॅुचकर अपनी रिपोर्ट दर्ज ही कराता है साथ ही थानेदार के साथ बदसलूकी भी करता है। इससे पता चलता है कि हमारे समाज मे किस स्तर की कानून व्यवस्था है।
कार्यशाला में मौजूद विशिष्ट अतिथि गृह सचिव श्री मणि प्रसाद मिश्रा ने कहा कि मुकदमों में शीघ्र निस्तारण के लिए दो बातो का होना बहुत जरूरी है । पहला मजिस्टेªट द्वारा कोटा पद्धति के रूप में छोटे अपराधों (जो जुर्माने के दण्ड से समाप्त हो जाये) के निस्तारण को समाप्त कर देना चाहिए । दूसरा न्यायालय में साक्ष्य को प्रस्तुत करने और उसकी गवाही खत्म करने की समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए जिससे गवाह जिरह हेतु अनावश्यक रूप से परेशान न हो और अभियोजन की गवाही समय से पूरी हो सके । यह तभी संभव है जब अपराधी न्याय प्रणाल के सभी अंग बार, बैंच और अभियोजक मिलजुल कर सामूहिक भावना से काम करेंगें । उन्होनंे यह भी कहा कि तकनीकी का जमाना है इसका सभी भरपूर उपयोग करें। और इसी के निमित 18 रेंज में विधि विज्ञान प्रयोगशाला के गठन के निर्णय शासन द्वारा लिया गया है, जिसमें से लगभग 8 चालू होने की स्थिति में है।
कार्यशाला में मौजूद अतिथि अपर विधि परामर्शदाता श्री राजेश सिंह ने कहा कि प्रदेश के सभी न्यायालयों में 5-5 पुराने मुकदमों की सूची बनी हुई है, जिसकी प्रत्येक दिन मा0उच्च न्यायालय द्वारा माॅनीटरिग भी की जाती है । उन्होनें कहा कि उक्त सूची को प्राप्त कर इसकी विशेष पैरवी की जाये तो न्यायालय भी विशेष रूप से सहयोग करेगा। त्वरित न्याय व निस्तारण वर्तमान समय की मांग होने के साथ-साथ पूरा विषय न्याय पालिका का है। अगर न्यायाधीश पीठासीन अधिकारी सुचारू रूप से काम करें तो गवाह निश्चित आयेगें, जल्द गवाही होगी और मुकदमों का निपटारा जल्द होगा। उन्होने कहा कि दण्ड का मतलब यह नहीं कि अपराधी को जमानत मिल जाये और वह समाज में अपराध को बढ़ावा दे, बल्कि गंभीर मामलों के अपराधियो के जमानत के खिलाफ निगरानी दाखिल की जानी चाहिए जिससे अपराधियों को जेल में निरूद्ध रखा जा सके । आपसी दोषरोपण के बजाये सभी मतभेदो को भूलकर मिल कर कार्य करना चाहिए ।
