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ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू-अरबी-फारसी यूनीवर्सिटी की लाइब्रेरी में शारिब बुक्स गैलरी का उद्घाटन

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: पुस्तकें आने वाली पीढ़ी की धरोहर हैं। किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है। आप अपनी गाढ़ी कमाई से पुस्तकें खरीदतें जरूर हैं लेकिन वह आपकी सम्पत्ति नहीं होती। इसीलिए मैंने 5000 पुस्तकें ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू-फारसी विश्वविद्यालय को भेंट की हंै ताकि आने वाली पीढ़ी उनसे फायदा हासिल करे। यह विचार प्रोफसर शारबि रूदौलवी ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू-अरबी फारसी विश्वविद्यालय में शारिब गैलरी के उद्घाटन के अवसर पर प्रकट किये। उन्होंने कुछ खास किताबों की चर्चा करते हुए कहा कि यह किताबें अब उपलब्ध नहीं है, जैसे कि गा़लिब की हस्तलिखित पाण्डुलिपि आदि। उन्होंने कहा कि हमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी अब पुस्तकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी है।
इलाहाबाद यूनीवर्सिटी के कुलपति प्रो0 रतन लाल हांगलू ने शारिब बुक्स गैलरी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर ख्वाजा मोइनुद्दीन के हवाले से सूफिज्म पर अपने विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि दूसरे धर्मों में सूफिज्म की समीक्षा की गई है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू-अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 खान मसूद ने शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि हमने दो वर्षों तक लगातार कोशिशों के बाद शारिब साहब से यह किताबें हासिल की हैं। उन्होंने कहा कि हम इन किताबों की सुरक्षा करेंगे, यहां तक कि अब शारिब साहब को भी किताबें पढ़ने के लिए यहां आना होगा।
डा0 अम्मार रिज़वी ने कहा कि किताबें भेंट करके शारिब साहब ने सही समय पर सही फैसला किया है और हम उनको मुबारकबाद देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाली पीढ़ियां सदियों तक इन पुस्तकों से फायदा हासिल करती रहेंगी। डा0 अस्मत मलिहाबादी ने प्रो0 शारिब रूदौलवी के इस काम को ऐतिहासिक बताया और विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के अध्यक्ष डा0 अब्बास रजा नैयर ने कहा कि मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है कि जिनकी हजारों किताबें दीमक खा गई या यों ही नष्ट हो गयीं लेकिन शारिब साहब ने किताबें भेंट करके एक ऐतिहासिक कारनामा अन्जाम दिया है, जिसे पीढ़ियाँ हमेशा याद रखेगी।
डा0 शरीफ और डा0 फखरे आलम आज़मी ने संयुक्त रूप से सभा का संचालन किया। इस अवसर पर ख्वाजा मोहम्मद यूनुस, मिर्जा शफीक हुसैन शफक, डा0 रेशमा परवीन, डा0 मन्सूर हसन खां, डा0 सोबान सईद, डा0 हारून रशीद, आमिर मुख्तार, बाबर नकवी, इरफान अहमद अलीग आदि खासतौर पर मौजूद रहे।

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