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जानिए रमजान क्यों है सबसे पाक महीना, ये होगा सहरी और इफ्तार का समय

अध्यात्म

ईद का चांद दिखने के बाद पूरी दुनिया में खुशी की लहर दौड़ पड़ती है. एक महीने तक रोजा रखने के बाद इस दिन लोग एक दूसरे से खुशी से मिलते हैं. आपसी बैर को मिटाकर एक दूसरे गले मिलते हैं और मिठाईयां खिलाते हैं.

रमजान का इंतजार हर मुस्लिम परिवार को होता है. इसमें सूरज उगने के बाद से लेकर सूरज छिपने तक बिना खाए पिए रहना पड़ता हैं. रमजान के 30 रोजों के बाद चांद देखकर ईद मनाई जाती है. इसे लोग ईद-उल-फितर भी कहते हैं. इस्लामिक कैलेंडर में दो ईद मनाई जाती हैं. दूसरी ईद जो ईद-उल-जुहा या बकरीद के नाम से भी जानी जाती है.

सहरी का वक्‍त सुबह 4 बजे के आसपास और इफ्तार का वक्‍त शाम 7 बजे के आसपास रहेगा..हालांकि यह समय अलग अलग जगह के हिसाब से बदल भी सकता है.

आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें.रमजान को हर देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है. कहा जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं. अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है

मुसलमान रमजान के महीने में अपनी हैसियत के मुताबिक गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं. इस समय किए गए अच्छे कर्मों के फल दोगुना बढ़कर आता है. इसके साथ ही इस महीने में अपने किए हुए बुरे कर्मों के लिए अल्लाह से माफी भी मांगी जाती है.

मुबारक रमजान का चांद इस्लामी महीने शाबान की 29 तारीख यानी 5 मई को देखा जाएगा. अगर रविवार को रमजान का चांद नजर नहीं आता तो सोमवार से तरावीह की नमाज शुरू हो जाएगी. मस्जिदों में अलग-अलग समय पर एक पारे से लेकर 5 पारे तक की तरावीह की नमाज अदा की जाएगी.

चांद नजर आने के साथ ही शहर की मस्जिदों में तरावीह की नमाज पूरे रमजान चलेगी. तरावीह की नमाज में बड़ी संख्या में नमाजी शामिल होकर तिलावते कलामे पाक के साथ नमाज अदा करते हैं. पूरे महीने रोज़े के बाद जो ईद होती है जिसे ईद-उल-फितर कहते हैं. इसे मीठी ईद (Mithi Eid) भी कहा जाता है.

रमजान के पूरे महीने रोजा रखते हैं. रोजा रखने के लिए मुस्लिम लोग सुबह सूर्योदय से पहले सेहरी खाते हैं पूरे दिन 5 वक्त की नमाज अदा करते हैं. रमजान के इस पाक महीने को नेकियों का महीना भी कहा जाता है.

पूरे दिन भूखे-प्यासे रहने के बाद फिर शाम को आमतौर पर खजूर खाकर या पानी पीकर रोजा खोलते हैं. रोजा खोलने को इफ्तार कहते हैं. इफ्तार के वक्त सच्चे मन से जो दुआ मांगी जाती है वो कूबुल होती है.

वीओ- क्या आपको पता है ईद मनाने की वजह क्या है…मान्‍यता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय हासिल की थी, इसी खुशी में ईद उल-फितर मनाई जाती है. माना जाता है कि पहली बार ईद उल-फितर 624 ईस्वी में मनाई गई थी.

इस दिन मीठे पकवान बनाए और खाए जाते हैं. अपने से छोटों को ईदी दी जाती है. दान देकर अल्लाह को याद किया जाता है. इस दान को इस्लाम में फितरा कहते हैं. इसीलिए भी इस ईद को ईद उल-फितर कहा जाता है. सभी आपस में गले मिलकर अल्लाह से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं.

रमजान के महीन में रोज रखने की छूट भी है. बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफिरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोजे से छूट है. जो लोग रोजा नहीं रखते उन्हें रोजेदार के सामने खाने से मनाही है. ईद के चांद के साथ रमजान का अंत होता है. रमजान की खुशी में ईद मनाई जाती है. ईद का अर्थ ही ‘खुशी का दिन’ है.

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