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भारतीय संस्कृति में मानवता का सबसे बड़ा आयोजन कुम्भ हजारों वर्षों से सामाजिक समरसता का संदेश देता है: मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने जनपद अयोध्या में डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के नवीन परिसर में ‘समरसता कुम्भ’ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि प्रयागराज कुम्भ के पहले पाँच वैचारिक कुम्भों का आयोजन सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इसलिए दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी काशी से प्रथम वैचारिक कुम्भ का श्रीगणेश किया गया। इसी क्रम में द्वितीय आयोजन वृन्दावन और तृतीय क्रम में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में समरसता कुम्भ आयोजित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कुम्भ का आयोजन देश की प्राचीन परम्पराओं में से एक है। इस आयोजन में किसी भी प्रकार का कोई भेद-भाव नहीं होता है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम का सन्देश लोक कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। वनांे में निवास करने वाली जनजातियांे के उत्थान एवं निषाद राज की मित्रता धर्म ग्रथों में स्पष्ट रूप से वर्णित है। भारतीय संस्कृति में मानवता का सबसे बड़ा आयोजन कुम्भ हजारों वर्षों से सामाजिक समरसता का संदेश देता आया है। समरसता का ऐसा संगम विश्व में कहीं नहीं देखने मिलता है। इस विविधता की एकता अब विश्व जनसमुदाय भी स्वीकार करने  लगा है।

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सनातन समाज सदैव से समरस रहा है। भारतीय संस्कृति सामाजिक समरसता के साथ पर्यावरण हितैषी रही है। हमारे धर्म ग्रन्थों में भी पेड़ पौधों की पूजा का स्पष्ट वर्णन है, जिसे आज भी हम अपनाए हुए हंै। सामाजिक समरसता के बिना समृद्ध राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता।

मुख्यमंत्री जी ने कार्यक्रम में उपस्थित साधु-संतों का स्वागत करते हुए कहा कि ‘समरसता कुम्भ’ को भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाला समागम कहा जा सकता है। साथ ही, इसे एक ऐसा संगम कह सकते हैं, जहां पर किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव किसी के साथ नहीं होता।

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हजारों वर्षों से वेदों में ‘कुम्भ’ शब्द का प्रयोग हुआ है। वेद इस धरती के सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ माने गए हैं और वेदों में जिस शब्द का प्रयोग हुआ हो उसकी पवित्रता स्वयं में है। दुनिया के सबसे बड़े आयोजन कुम्भ को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों से यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी गई है। प्रयाग कुम्भ में 12 से 16 करोड़ की संख्या में श्रद्धालुओं के आगमन की सम्भावना है।

ग्राम्य विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डाॅ0 महेन्द्र सिंह ने कहा कि कुम्भ का आयोजन पूरे विश्व समुदाय के लिए समरसता का संदेश है। बिना किसी भेदभाव के संत समाज, धर्मावलम्बी एवं गृहस्थ एक होकर विश्व समुदाय को सांस्कृतिक एकता का संदेश देते हैं। राष्ट्र की सम्पन्न सनातन परम्परा में सामाजिक भेद-भाव के लिए कोई स्थान नहीं है।

डाॅ0 राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि कुम्भ का आयोजन आदिकाल से देश में चार स्थानों पर होता आ रहा है। यह महज धार्मिक आयोजन न होकर यह हमारी समृद्ध परम्परा का एक हिस्सा है। विश्व समुदाय में राष्ट्रीय एकता एवं वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना का संदेश है। इस संास्कृतिक विरासत को संजोए रखना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है। समरस समाज समर्थ राष्ट्र का निर्माण तभी सम्भव है, जब हम अपनी इन समृद्ध धरोहरों के मूल्य स्वरूप को बनाए रखें। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या का यह आयोजन निश्चित रूप से सामाजिक समरसता का उद्देश्य पूर्ण करेगा।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-सरकार्यवाह श्री भागैय्या जी ने कहा कि समरसता जीवन मूल्य का संदेश है। सनातन धर्म की संकल्पना है कि पत्ते-पत्ते में परमेश्वर है।

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