पटना: बिहार टॉपर मामले में शनिवार को एसआईटी को बड़ी सफलता हासिल हुई है। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह का निजी सचिव विकास चंद्रा आखिरकार विशेष जांच दल के हत्थे चढ़ गया। परीक्षा समिति का एक कर्मचारी विकास कुमार सिंह भी सरकारी गवाह बन गया है।
हाईकोर्ट ने इस मामले से जुड़े चार टॉपरों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है। अब इन सभी छात्रों की गिरफ्तारी होगी और उन्हें रिमांड होम भेजा जायेगा। शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए एसआईटी जांच की कमान संभाल रहे पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मनु महाराज ने बताया कि फर्जीवाड़ा के इस मामले में पूर्व अध्यक्ष सिंह के निजी सचिव विकास को गिरफ्तार किया गया है।
उन्होंने कहा कि एसआईटी को यह जानकारी मिली थी कि विकास राजधानी पटना के कोतवाली थाना क्षेत्र स्थित एक ठिकाने में शरण लिए हुए है। महाराज ने बताया कि इसी आधार पर एसआईटी की टीम ने उक्त ठिकाने पर छापेमारी कर विकास को धर-दबोचा।
महाराज ने बताया कि गिरफ्तारी के बाद हुई पूछताछ विकास से फर्जीवाड़ा को लेकर कई राज खोले हैं। विकास ने इस पूरे मामले में शामिल होने की बात कबूल कर ली है। विकास ने स्वीकार किया है कि यह पूरा मामला चार स्तर पर चल रहा है और लालकेश्वर, उषा सिन्हा और बच्चा राय के बीच वो एक कड़ी था।
विकास ने पूछताछ के दौरान यह भी स्वीकार किया कि साइंस टॉपर बनाने के लिए 15 लाख का भुगतान बच्चा राय ने उषा सिन्हा को उसी के माध्यम से किया था। विकास ने कहा कि फेल हो चुके छात्रों को भी 8-9 लाख लेकर पास किया जाता था। इतना ही नहीं कॉलेज की संबंद्धता के लिए भी लालकेश्वर 4 से 10 लाख रुपये तक वसूलते थे। विकास ने कहा कि इन सौदेबाजी में उसे भी 25 से 35 हजार तक मिल जाता था।
इधर बिहार बोर्ड के क्लर्क विकास कुमार सिंह सरकारी गवाह बन कर कई खुलासे किये हैं। सिंह ने पुलिस को बताया है कि लालकेश्वर, रंजीत मिश्रा और शंभूनाथ मिलकर इन तमाम अनियमितताओं को अंजाम देते थे और पैसा आपस में बांटते थे। बोर्ड का अधिकतर कर्मचारी इन लोगों से त्रस्त था।
सिंह ने कहा कि लालकेश्वर मौखिक आदेश देकर अधिकतर गैरकानूनी काम करने पर बाध्य करता था। उन्होंने बोर्ड के कई फाइलों का हवाला देते हुए कहा कि इसमें अधिकारी ने साफ साफ टिप्पणी की है, लेकिन टिप्पणी को नजर अंदाज कर इन लोगों ने फाइल को पास किया है।
साभार अमर उजाला