लखनऊ: भारत में न्यायपालिका के प्रति हम सबकी श्रद्धा है। आमजन न्यायपालिका को ईश्वर जैसा मानते हैं। आप सब न्यायतंत्र का हिस्सा बनने जा रहे हैं। न्याय प्रक्रिया के प्रति जनता में इस भरोसे को और बढ़ाये जाने के लिए भविष्य में आपको काम करना है। यह बात विधान सभा के अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित, ने उ0प्र0 लोक सेवा अधिकरण द्वारा आयोजित विधि प्रशिक्षुओं के कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका के प्रति जवाबदेह है।
विधान सभा अध्यक्ष ने कहा कि विधायिका के सदस्य आम जनता के प्रति जवाबदेह है। न्यायपालिका के प्रति असीम आदर है, इसलिए न्यायपालिका को भी स्वंय के भीतर आंतरिक जवाबदेही की कोई व्यवस्था विकसित करनी चाहिए। संविधान निर्माताओं ने लम्बी बहस के बाद देश का संविधान गढ़ा था। संविधान देश का राजधर्म है इसमें भी 100 से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं, लेकिन संविधान की उद्देशिका और नीति-निर्देशक तत्व स्थाई रूप से हम सबके मार्गदर्शी हैं।
उन्होंने कहा कि विधि व्यवस्था का उपयोग लोगों को न्याय दिलाने और समाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। जनहित याचिका इस सदुपयोग का अच्छा उदाहरण है अपवाद स्वरूप कुछ लोग और संस्थाएॅं इनका सदुपयोग नहीं करते हैं। उन्होंने छात्रों से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग सहित सभी प्रमुख विषयों के गहन अध्ययन की अपेक्षा की है और कहा कि अध्ययन का कोई विकल्प नहीं होता। सभी संवैधानिक संस्थाओं का और उनसे जुड़े कानूनों का अध्ययन अपरिहार्य है।
श्री दीक्षित ने कहा कि राज्य लोक सेवा अधिकरण राज्य सरकार के कर्मचारियों को त्वरित और निष्पक्ष न्याय दिलाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इसके द्वारा निस्तारित मुकदमों की संख्या में हुई वृद्धि से अधिकरण की महत्ता और बढ़ी है। श्री दीक्षित ने लोक सेवा अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुधीर कुमार सक्सेना सहित संस्था से जुड़े सभी पदाधिकारियों के काम की प्रसंशा की और कहा सभी अच्छा कार्य कर रहे हैं।
इस अवसर पर न्यायमूर्ति श्री सुरेन्द्र विक्रम राठौर, सदस्य, सशस्त्र सेवा अधिकरण, श्री प्रवीर कुमार, अध्यक्ष, राजस्व परिषद एवं कुलपति, शकुन्तला मिश्रा विश्वविद्यालय तथा श्री रोहित नन्दन, सदस्य, अधिकरण, श्री प्रदीप कुमार दुबे, प्रमुख सचिव, विधान सभा, श्री अंशुमाली शर्मा, एन0एस0एस0 के स्टेट को-आर्डिनेटर एवं अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश तथा विधिवेत्ता उपस्थित थे।