उत्तराखंड: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. आचार संहिता लागू होते ही राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों पर कईं तरह की पाबंदियां लग गई हैं. आइये आपको बताते हैं कि आचार संहिता होती क्या है.
आचार संहिता, जी हां चुनाव आयोग की ओर से जारी यह ऐसी गाइडलाइंस है, जिसका उल्लंघन करने से राजनीतिक दल और प्रत्याशी डरते हैं. आचार संहिता के उल्लंघन का मामला साबित होने पर राजनीतिक दल और प्रत्याशियों को लेने के देने पड़ सकते हैं. यहां तक की प्रत्याशी का परचा कैंसिल हो सकता है और भविष्य में उसके चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है. अब आपको बताते हैं कि आखिर कौन-कौन सी गाइडलाइन्स हैं जिन का उल्लंघन करने पर चुनाव आयोग प्रत्याशियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.
– लोगों के बीच मतभेद-घृणा की भावना उत्पन्न करना
– धार्मिक स्थल जैसे मस्जिद, चर्च, मंदिरों का प्रयोग वोट मांगने के लिए करना
– मतदाताओं को रिश्वत देना, मतदाताओं को धमकाना
– मतदाताओं को अपने वाहन से मतदान केंद्रों तक लाना और वापस ले जाना
– अनुमति के बिना किसी की संपत्ति पर बैनर, नारे या फिर झंड़े लगाना
– प्रशासन के अनुमति के बिना सड़क पर जुलूस या रैली निकालना
– इनके अलावा अन्य नियमों के उल्लंघन पर भी कार्रवाई हो सकती है
सत्ताधारी दल के लिए तो आचार संहिता में और भी कड़े प्रावधान किये गये हैं. नेताओं को सत्ता का सुख त्यागना पड़ता है. मंत्रीमंडल के सदस्यों पर कईं तरह के प्रतिबंध लग जाते हैं. सामान्य दिनों में उत्तराखंड में एक सप्ताह में तीन कैबिनेट बैठकें हो जाती हैं, लेकिन चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही कैबिनेट बैठकों पर प्रतिबंध लग जाता है. सत्ताधारी दल के मंत्री सरकारी दौरों के दौरान चुनाव प्रचार नहीं कर सकते.
सरकारी आवासों का प्रयोग प्रचार कार्यालय के तौर पर करना आचार संहिता का उल्लंघन माना जाता है. सरकार किसी भी परियोजना या योजना की आधारशिला नहीं रख सकती है. विवेकाधीन निधि से अनुदान या स्वीकृति पर प्रतिबंध रहता है.
चुनाव के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन एक गंभीर अपराध माना जाता है. चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक इस पर नजर रखते हैं कि राजनीतिक दल आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं.
कविन्द्र पयाल
ब्यूरो चीफ, उत्तराखण्ड