नई दिल्ली: हाल के कुछ दिनों में प्रधानमंत्री जनधन अकाउंट से केंद्र की ओर से भेजे गए 500 रुपये की कैश सहायता पाने के लिए बैंकों के सामने गरीब महिलाओं की लंबी कतारें देखने को मिली हैं। जिस लॉकडाउन के आघात को कम करने के लिए आर्थिक सहायता दी जा रही है, सोशल डिस्टेंसिंग की धज्ज्यिां उड़ाकर उस लॉकडाउन का मकसद ही धूमिल होता नजर आया है। इसकी वजह ये है कि एक बड़ी आबादी अभी तक डिजिटल पेमेंट नहीं सीख पाई है, खास कर ग्रामीण इलाकों का गरीब तबका।
ओडिशा मॉडल से क्या होगा?
सवाल है कि क्या ऐसे में गरीबों को आर्थिक मदद नहीं दिया जाए? जी नहीं, अनाजों के अलावा उन्हें संकट की इस घड़ी में कैश सहायता भी बहुत जरूरी है। हां, अगर इसके लिए ‘ओडिशा मॉडल’ अपनाई जाय तो सोशल डिस्टेंसिंग को भी बरकरार रखा जा सकेगा और लॉकडाउन के नियम टूटने की भी नौबत नहीं आएगी। ओडिशा में पेंशन भुगतान का तरीका इस समस्या का आसान हल हो सकता है। केंद्र के दबाव के बावजूद ओडिशा ने अपने यहां बैंकों और पोस्ट ऑफिसों की मौजूदा सीमाओं को समझते हुए पेंशन वितरण के लिए डीबीटी की जगह कैश-इन-हैंड का तरीका बरकरार रखा है।
वहां होता ये है कि हर महीने की 15 तारीख को पंचायत सचिव ग्राम पंचायत के दफ्तर जाता है और वहां कई बार खुले आसमान के नीचे ही डेस्क पर मौजूदा लिस्ट के अनुसार नाम पुकार कर बुजुर्गों, विधवाओं और अकेली महिलाओं या दिव्यांगों को उनका पेंशन (500 रुपये- इसमें 200 रुपये केंद्र से आता है) उनके हाथों में थमा देता है। इसके बदले उनसे रजिस्टर पर अंगूठा लगवा लेता है। क्योंकि, यह कार्य काफी लोगों की मौजूदगी में होती है, इसलिए भ्रष्टाचार की गुंजाइश नहीं रहती और अब तो लोग जागरुक भी हो चुके हैं।
अगर सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से राज्य सरकारें भीड़ को नियंत्रित रखना चाहती है तो यह काम आंगनवाड़ी केंद्रों पर भी क्या जा सकता है। अगर ओडिशा जैसा हल दूसरे राज्यों ने भी निकाल लिया तो इस कार्य में काफी आसानी हो सकती है। source: oneindia