नई दिल्ली: केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद ने लोक सभा में कहा कि एनएचआरसी को अधिक समावेशी और कुशल बनाने के लिए सरकार के कदम का समर्थन करने के लिए संसद को एक साथ आना चाहिये ।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 (अधिनियम) को, मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (आयोग), राज्य मानव अधिकार आयोग (राज्य आयोग) और मानव अधिकार न्यायालयों के गठन हेतु उपबंध करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
एनएचआरसी ने कुछ वैश्विक प्लेटफार्मों पर उठाई गयी चिंताओं को दूर करने के लिए अधिनियम में कुछ संशोधन प्रस्तावित किए हैं। इसके अलावा, कुछ राज्य सरकारों ने अधिनियम में संशोधन के लिए भी प्रस्ताव दिया है, क्योंकि उन्हें संबंधित राज्य आयोगों के अध्यक्ष के पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवारों को खोजने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जो मौजूदा पद के लिए पात्रता मानदंड के कारण हैं।
पेरिस सिद्धांत के आधार पर इस प्रस्तावित संशोधन से आयोग और साथ ही राज्य आयोगों को भी, उनकी स्वायत्तता, स्वतंत्रता, बहुवाद और मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण तथा उनका संवर्धन करने हेतु बल मिलेगा।
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 अन्य बातों के साथ, निम्नलिखित के लिये उपबंध करता है कि —
भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है, को भी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हेतु पात्र बनाया जा सके।
आयोग के सदस्यों की संख्या को दो से बढ़ाकर तीन किया जा सके, जिनमें से एक महिला होगी।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों सम्बन्धी मुख्य आयुक्त को आयोग के सदस्यों के रूप में सम्मिलित किया जा सकेगा।
आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जा सके और वे पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र होंगे।
दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र से भिन्न अन्य संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा निर्वहन किए जा रहे मानव अधिकारों सम्बन्धी मामलों को राज्य आयोगों को प्रदत्त किया जा सके, दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र के सम्बन्ध में आयोग द्वारा कार्यवाही की जाएगी।