लखनऊ: समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि झूठे वायदों पर भाजपा ने केन्द्र में सत्ता तो हासिल कर ली लेकिन जनता के बीच उसकी कलई भी जल्दी ही खुल गई। देष की राजधानी दिल्ली में ही मतदाताओं ने भाजपा नेतृत्व के अहं को करारी चोट देते हुये उसे हाशिये पर पहुॅचा दिया। लेकिन भाजपा की सत्ता लोलुपता कम होने का नाम नहीं ले रही है। उत्तर प्रदेश में सत्ता हथियाने के लिए वह अभी से व्याकुल हैं जबकि विधानसभा चुनाव 2017 में होने हैं।
अभी पिछले साल के अंत में ही मिर्जापुर में भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक हुई थी। दो महीने बीतते ही चित्रकूट में यू0पी0 मिशन पर भगवा चिंतन फिर शुरू हो गया। यहाॅ भी बस एक ही राग सुनाई दिया। किसी भी तरह सत्ता पर काबिज हो जाना है। भाजपा के लिए राजनीति जनसेवा की नहीं सिर्फ स्वार्थ साधन की सीढ़ी है। इसलिए भाजपा कुर्सी पाने की उतावली में संविधान को तोड़ने और लोकतंत्र के हाथ मरोड़ने से भी संकोच नहीं कर रही हैै जबकि प्रदेश में बहुमत की समाजवादी सरकार है जिसका कार्यकाल पूरे पाॅच वर्ष का है।
भाजपा को वस्तुतः इस बात की चिंता करनी चाहिए कि उत्तर प्रदेश में वह विधानसभा चुनावाें में तीसरे – चौथे पायदान पर अब तक क्यों रहती है और हाल के उपचुनावों में उसे करारी शिकस्त क्यों खानी पड़ी थी? भाजपा ने सूबे में दो करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया, लेकिन प्रदेश के लोगाें ने भाजपा को आईना दिखा दिया। भाजपा अपने लक्ष्य को न तो पूरा कर पाई है और नहीं पूरा कर सकने के लक्षण दिखाई दे रहे है। जनता का भाजपा से मोह भंग हो चुका हेै। वैसे भी कहावत है ‘‘काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है’’ एक बार जनता भाजपा के बड़े-बड़े वायदों के झाॅसे में आ गई, अब वह उससे दूर ही रहेगी।
उत्तर प्रदेश से केन्द्र सरकार में भाजपा के जो सांसद और मंत्री हैं, उन्हें एक अवसर मिला था कि वे मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के विकास एजेंडा में सहयोगी बनकर प्रदेश को समृद्ध और खुशहाल बनाते। लेकिन भाजपा के प्रदेशीय नेतृत्व ने तो विध्वसांत्मक तौर-तरीका अपना लिया और केन्द्र सरकार का राज्य के साथ सौतेला व्यवहार चल रहा है। समाजवादी सरकार ने इसके बावजूद जनहित की तमाम योजनाओं को अमली जामा पहनाने का काम किया है, जिससे किसान, नौजवान, अल्पसंख्यक सहित समाज के सभी वर्गो के लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इसलिए भाजपा लाख सिर पटक ले, जनता उसके भ्रमजाल से गुमराह नहीं होने वाली है। अच्छा होता भाजपा नेता चिंतन बैठक में यह चिंता करते कि वह अपने अंतर्विरोधों से कैसे उबरें ? वे सकारात्मक राजनीति करने की सोचें। प्रदेश के विकास में रोड़ा न बनें और सांप्रदायिकता का जहर न बोएं।