देहरादून: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी एवं देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री लालबहादुर शास्त्री जी की जयंन्ती समारोह विधान सभा के नवीन अतिरिक्त विस्तार भवन में विधान सभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल ने महात्मा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री के चित्रों का अनावरण एवं माल्र्यापर्ण कर किया गया। इस अवसर पर सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अहिंसा की शपथ अध्यक्ष जी द्वारा दिलाई गयी।
अध्यक्ष विधान सभा गोविन्द सिंह कुंजवाल ने इस अवसर पर कहा कि हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेजों द्वारा इस देश पर काफी अत्याचार किया जा रहा था। ऐसे अवसर पर गांधी जी के मन में पीड़ा व्याप्त हुई तथा उन्होंने संकल्प लिया कि भारत को आजाद कराने के लिये अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाया जाय। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि गांधी जी एक सच्चे मानव थे। मानवता उन में कूट-कूट कर भरी हुई थी। किसी भी मानव के ऊपर अत्याचार उन्हें असहनीय था, और गरीब एवं दलितों से ऐसे कार्य करवाये जाते थे जो मनुष्य के लिए कठिन ही नहीं अशोभनीय था। इस का गांधी जी के मन पर अत्याधिक बुरा प्रभाव पड़ा इसके लिए उन्होंने मानव जाति के ऊपर जो अनियमिततायें बरती गयी उन्हें दूर करने के लिए गांधी जी द्वारा अहिंसात्मक तरीके से स्वराज आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, नमक आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन चलाये, जिसमें भारत वासियों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया उनके आन्दोलन के आधार पर देश आजाद हुआ। वे वास्तविक परिवर्तन देश दुनियां में चाहते थे।
गांधी जी के संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि गांधी जी का उद्ेश्य यह था कि हम ठीक से लोगों की मदद कर सकें। गांधी जी ने उस समय देश वासियों से आहवान करते हुए नारा दिया कि भारतीय स्वदेशी अपनायें व अपने देश में निर्मित वास्तुओं का सेवन करें। इसके पीछे उनका गांधी दर्शन था कि लोगों को इससे रोजगार मिलेगा। ग्रामों में जितने भी कुटीर उद्योग हैं वे चले तथा उनसे निर्मित वस्तुओं का सेवन करें। वे दुनियां के बड़े शान्तिदूत अनुकरणीय महापुरूष पहले ही हो चुके थे। लेकिन उनके स्वपनों का स्वच्छ सांस्कृति शसक्त भारत आकार नहीं ले सका। उन्होंने कहा कि बेशक वे सशरीर नहीं है। लेकिन उनकी विचार देह कृत्तित्व काया और भारत प्रीतिअक्षर अविनाशी है। भारत सहित सारी दुनियां में गांधी का जादू है। गांधी प्रेरक हैं अचम्भा हैं बारम्बार अनुकरणीय हंै।
गांधी विश्व पुरूष हैं। स्वाधीनता, स्वदेशी स्वराष्ट्र स्वतंत्रता और समता, अहिंसा, सत्याग्रह और स्वच्छता सहित सारे मूल्य गांधी जी के लिए शब्द भर नहीं थे। उन्होंने सभी मूल्यों को सत्याग्रह की अग्नि में तपाया था। उन्होंने कहा कि आज गांधी जयन्ती के अवसर पर देशव्यापी संक्षिप्त कार्यक्रम किये जाते हैं। जबकि उक्त कार्य क्रम वृहत्त स्तर पर होने चाहिए तथा आज लोगों को एक दूसरे के विचारों को सुनना व उस पर अमल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांधी जी को स्वच्छता अति प्रिय थी वे स्वयं अपना मैला खुद उठाते थे। अपने चारों ओर के परिवेश पर साफ सफाई रखना उन्हें अच्छा लगता था। हम अपने अन्दर विचार करें अपने मन की सफाई करते हुए अपने माहौल एवं वातावरण को स्वच्छ रखें तथा दुसरों की भलाई के कार्य करें। उन्होंने कहा कि आज तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। उसे ठीक करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति इस दिशा में ठोस कार्य करे। गांधी जी
का अर्थशास्त्र यह था कि सबको रोजी रोटी मिले। आज दुनिया के कई मुल्क गांधी के विचारों को आत्म सात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अपनी कमजोरियों को दूर करने हुए समाज में समानता एवं समरसत्ता लायें तभी देश व प्रदेश आगे बढेगा। इस अवसर पर उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के भी कई प्रेरक प्रसंगों से अवगत कराते हुए कहा कि हमारे बीच आपसी भेद भाव लड़ाई झगड़े आदि रहेंगे तो आपसी शत्रुत्रा रहेगी, तथा जनता को भी कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा स्वयं लड़ने के बजाय हमें गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना चाहिए। तभी समस्याओं का समाधान उन्न्त तरीके से होगा।