लखनऊ: प्रदेश में आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिये कीटों एवं रोगों का उचित प्रबंधन समय से किया जाना नितांत आवश्यक है। बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था अत्यंत ही संवेदनशील होती है। वर्तमान समय में बागों को मुख्य रूप से भुनगा कीट एवं जाला कीट से पौधों को क्षति पहुंचने की सम्भावना बनी रहती है। कीटों एवं रोगांे के अधिक प्रकोप की स्थिति में बागवानों को क्यूनालफाॅस 2.0 मि0ली0 प्रति लीटर या क्लोरोपाइरीफाॅस 2.0 मि0ली0 प्रति लीटर या कार्बेरिल 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिये।
निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण, श्री एस0पी0 जोशी ने बागवानों को आम की फसल को भुनगा एवं जाला कीट से बचाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि आम के बागों में भुनगा कीट (मैंगो हाॅपर) के शिशु एवं वयस्क दोनों ही मुलायम प्ररोहों, कोमल पत्तियों एवं फूलों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं। इसके प्रभाव से फल सूखकर गिरने लगते हैं। उन्होंने कहा कि भुनगा कीट मधु की तरह चिपचिपा पदार्थ विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद (सूटी मोल्ड) जम जाती है, इससे पत्तियों द्वारा हो रही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मंद पड़ जाती है। उन्होंने बताया कि जाला बनाने वाला कीट (लीफ वेबर) की सूड़ियाँ अपने लार को धागे की तरह उपयोग करके पत्तियों को एक स्थान पर जोड़कर घोसला बना लेती हैं और इसके अंदर ही अंदर सूड़ियाँ डण्ठल को छोड़कर पत्ती का सारा भाग खा जाती हैं, जिससे टहनियाँ सूखने लगती हैं।
श्री जोशी ने बागवानों को सलाह दी है कि भुनगा एवं जाला बनाने वाले कीटों एवं रोगों से आम की फसल को बचाने के लिये आम के घने बागों की कटाई-छटाई एवं गहरी गुड़ाई-जुताई करके इसे साफ-सुथरा रखना चाहिये।