नई दिल्ली: भारत का मार्स ओर्बिटर अंतरिक्ष यान जिसने मंगल की कक्षा में 24 सितंबर 2015 को सफलता पूर्वक एक साल पूरा किया, इस तारीख से ठीक दो साल पहले यानी 5 नवंबर 2013 को इसे प्रक्षेपित किया गया था। इस अंतरक्षि यान के प्रक्षेपण की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर, मिशन संचालन परिसर में, इसरो टेलीमेट्री के ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क, अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र (इस्ट्रैक) बंगलौर में आज एक तकनीकी मिलन समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में पिछले एक साल के अंदर मंगल की कक्षा में अंतरिक्षयान के परिचालन की चुनौतियों और वहां से पांच पेलोड्स से मिले आंकड़ों पर विचार विमर्श हुआ।
अंतरिक्षयान के योजनाबद्ध तरीके से मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर देने के कुछ हफ्तों बाद, अंतरिक्षयान अभियान दल ने सफलतापूर्वक, सुरक्षित रूप से, मंगल ग्रह के पास अक्टूबर 2014 में धूमकेतु साइडिंग स्प्रिंग के गुजरने के दौरान मार्स आर्बिटर यान को कक्षा में बनाए रखने का चुनौती भरा काम करने में कामयाब रहे।
मजबूत डिजाइन के अलावा, पूर्ण पैमाने पर स्वायत्तता का समावेश, व्यापक रूप से जमीनी सिमुलेशन परीक्षण और इसरो द्वारा अपनाई गई संचालन रणनीति के समावेश ने, जून 2015 के आसपास महीने भर लंबे सौर संयोजन के दौरान अंतरिक्ष यान को जीवित रहने के लिए सक्षम बनाया। इस अंतराल के दौरान सूर्य द्वारा रेडियो तरंगों को बाधित कर देने की वजह से पृथ्वी से संपर्क संभव नहीं था।
मंगल के चारो तरफ इसकी यात्रा के दौरान अंतरिक्षयान ने मंगल की सैकड़ों तस्वीरें भेजी हैं। इसमें इसके अद्वितीय अण्डाकार कक्षा में रखे जाने की वजह से हासिल हुई मंगल की अनगिनत पूर्ण डिस्क छवियां भी हैं। अंतरिक्षयान के अन्य चार पेलोड्स द्वारा भेजे गए आंकड़े सिलसिलेवार तरीके से विश्लेषित किए जा रहे हैं।
मार्स ऑर्बिटर यान इस समय लाल ग्रह के पेरियेरियन यानी मंगल ग्रह के लिए निकटतम बिंदु, (311 किमी) और एपोएरियन यानी मंगल ग्रह के लिए सब से अधिक दूर के बिंदु (71311 किमी) के साथ एक कक्षा में चक्कर काट रहा है। अंतरिक्षयान अभी ठीक अवस्था में है।
मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्षयान के प्रक्षेपण की दूसरी बरसी पर एक किताब “फ्राम फिशिंग हेमलेट टू रेड प्लेनेट” का भी लोकार्पण किया गया। इस किताब का लोकार्पण इसरो के पूर्व अध्यक्ष तथा पीआरएल परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर यू. आर. राव द्वारा इसरो की वर्तमान अध्यक्ष श्री ए एस किरन कुमार और इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ के राधाकृष्णन तथा अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति में किया गया। यह व्यापक संग्रह भारत के सेटेलाइट, प्रक्षेपण यान एवं अन्य अनुप्रयोग कार्यक्रमों के उद्भव के निशान एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से तलाशती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के कई अग्रदूत, जिन्होने इस संग्रह में योगदान दिया है, इस कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थे। इस अवसर पर बोलते हुए श्री ए एस किरण कुमार ने कहा कि यह किताब इसरो की शुरूआत से ही अंतरिक्ष तकनीकों के विकास में अपनाए गए नवीन दृष्टिकोण को अभिलेखबद्ध करती है। उन्होने इसरो पर समकालीन समय में नई जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस किताब का ई-संस्करण इसरो की वेबसाइट पर मुफ्त में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध है।