नई दिल्ली: स्वास्थ्य क्षेत्र में अंग्रिम पंक्ति में काम कर रहे पेशेवरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फेस मास्क उच्च तकनीकी गुणवत्ता के होते हैं और उनके उत्पादन के लिए विशेष जानकारी की जरूरत होती है जबकि आम जनता के लिए कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने वाले साधारण फेस मास्क की सलाह दी जाती है।
इस तरह के मास्क से उम्मीद होती है कि वह हवा में मौजूद सूक्ष्म-बूंदों, यहां तक कि साधारण बातचीत, या महज छींकने से हुए ट्रांसमिशन को कम कर सकता है। हालांकि कपड़े की परत वाला यह मास्क वायरल के फैलाव को रोकने का प्राथमिक उपाय है। प्राय: स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बने मास्क की बजाय स्वस्थ व्यक्तियों के लिए घर में बने मास्क लगाने की सलाह दी जाती है क्योंकि उसकी आपूर्ति सीमित है। अगर केवल कपड़े को बड़ी समझदारी से चुना जाए तो मास्क ज्यादा कुशलता के साथ अपने उद्देश्य को पूरा कर सकता है।
सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) बंगलोर, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान है, के शोधकर्ताओं की एक टीम ने फेस मास्क बनाने का एक नया तरीका विकसित किया है। इसे ट्राइबो ई मास्क नाम दिया गया है, जो दिलचस्प तरीके से बिना किसी बाहरी पावर के इलेक्ट्रिक चार्ज होने के कारण संक्रमण का प्रवेश रोक सकता है।
डॉ. प्रलय संतरा, डॉ. आशुतोष सिंह और प्रो. गिरिधर यू. कुलकर्णी द्वारा किया गया यह नवाचार इलेक्ट्रोस्टैटिक्स पर आधारित है। जब दो कुचालक परतों को एक दूसरे से रगड़ा जाता है तो परतें तुरंत ऋणात्मक और धनात्मक चार्ज विकसित करती हैं और कुछ समय के लिए चार्ज बना रहता है। उन्होंने इस विद्युत क्षेत्र का इस्तेमाल किया है जो नजदीक में काफी ताकतवर है यहां तक कि रोगाणुओं को निष्क्रिय या संभवत: मार भी सकता है।
प्रो. कुलकर्णी ने कहा, ‘हमने ट्राइबोइलेक्ट्रिसिटी पर भौतिकी के पाठ्यपुस्तकों से यह आइडिया लिया, जिसके साथ बच्चों को खेलने में मजा आता है। जब एक फेस मास्क के संदर्भ में इस्तेमाल होता है तो यही आइडिया एक उत्पाद में बदल जाता है, जिसके लिए उद्योग के विकास या निर्माण की जरूरत नहीं होती बल्कि यूजर ही बना सकता है। यह मास्क सस्ता और किसी के भी द्वारा तैयार किया जा सकता है।’ उन्होंने आगे कहा कि इन मास्क पर टेस्ट, खासतौर से कोविड19 के संदर्भ में किया जा रहा है।
डीएसटी के सचिव, प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, ‘यह दिलचस्प है कि रसायन विज्ञान, भौतिकी, सामग्रियों और जैव-विज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों के रचनात्मक अनुप्रयोगों के द्वारा, प्राय: बहुविषयक समाधान के लिए सामान्य अवधारणाओं को मिलाकर कोविड-19 के कई नए और उपयोगी समाधान सामने आए हैं। यहां प्रस्तावित मास्क ऐसी ही एक रचनात्मक प्रक्रिया का अच्छा उदाहरण है जो एक साधारण डिजाइन से इसकी अहमियत को बढ़ा देता है।’
यह मास्क तीन परतों का होता है जिसमें पॉलिप्रोपिलीन की परतों के बीच नायलॉन के कपड़े की एक परत होती है। ऊपर की दो परतें आमतौर पर गैर बुने किराने की थैलियों से मिल सकती हैं। नायलॉन की जगह किसी पुरानी साड़ी या शॉल से सिल्क का कपड़ा काटकर इस्तेमाल किया जा सकता है। जब परतों को एक दूसरे से रगड़ा जाता है तो बाहरी परतें ऋणात्मक चार्ज विकसित करती हैं जबकि नायलॉन धनात्मक चार्ज बनाएगा। यह संक्रमण फैलाने वाली चीजों को पार करने के खिलाफ दोहरी इलेक्ट्रिक सुरक्षा दीवार के तौर पर काम करेगा। चूंकि मास्क सामान्य रूप से उपलब्ध कपड़ों से बना होता है, इसे दूसरे किसी कपड़े की तरह धोया और फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि इस स्टेज पर अभी स्वास्थ्य पेशेवरों और मरीजों के लिए इस मास्क को मंजूरी नहीं दी गई है।
ट्राइबो ई मास्क बाहर की तरफ पॉलिप्रोपिलीन परतों से और बीच में नायलॉन की परत से बना होता है। जब परतों को एक दूसरे से रगड़ा जाता है तो स्थिर इलेक्ट्रिसिटी पैदा होती है, जिससे संक्रमण के संभावित ट्रांसमिशन को रोकने की उम्मीद है।
सिद्धांत, निर्माण और मास्क के इस्तेमाल की व्याख्या करने वाली एक वीडियो क्लिप यहां दी गई है: