नई दिल्ली: फसल अवशेषों के प्रबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह की अध्यक्षता में आज नई दिल्ली में एक बैठक आयोजित की गई। कृषि राज्य मंत्री श्री एस. एस. अहलूवालिया भी बैठक में उपस्थित थे। कृषि, सहयोग एवं किसान कल्याण विभाग में सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में अपर सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष, आईसीएआर के उप महानिदेशक और पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के राज्य कृषि विभागों के प्रतिनिधिगण भी इस बैठक में मौजूद थे।
बैठक में फसल अवशेषों के प्रबंधन और पराली को जलाने से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया और श्री राधा मोहन सिंह ने मंत्रालय एवं राज्य सरकारों के अधिकारियों को बड़े पैमाने पर फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये। मंत्री महोदय ने इस बात पर भी विशेष जोर दिया कि राज्य सरकारों को पराली के प्रबंधन पर व्यापक जन जागरूकता सुनिश्चित करनी चाहिए और बड़ी संख्या में कस्टम हायरिंग केंद्र सृजित किये जाने चाहिए, जिनमें फसल अवशेषों के प्रबंधन से जुड़ी मशीनों को भी शामिल किया जाता है।
नवम्बर, 2014 में फसल अवशेषों के प्रबंधन पर एक राष्ट्रीय नीति बनाई गई थी और उसे समस्त राज्य सरकारों को भेजा गया था। राज्य सरकारों को समय-समय पर एडवाइजरी भी जारी की गई थी। राज्य सरकारों ने इस दिशा में अनेक कदम उठाये।
जनवरी, 2015 में फसलों की पराली जलाने के मुद्दों और इसके प्रबंधन पर एक कार्यशाला चंडीगढ़ में आयोजित की गई थी, जिसमें केन्द्र एवं राज्य सरकार के अधिकारियों ने विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया था और इस मसले पर अनेकानेक सिफारिशें की थीं। इसी तरह हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिवों और कृषि के प्रधान सचिवों ने फसल अवशेषों के प्रबंधन से जुड़े इस महत्वपूर्ण मसले पर हो रही प्रगति पर करीबी नजर रखने के लिए कई बैठकें बुलाई थीं। राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं जैसे कि एसएमएएम, आरकेवीवाई, एनएफएसएम और सीडीपी के तहत किसानों को विभिन्न कृषि मशीनरी जैसे कि हैप्पी सीडर (खड़ी खूंटी में फसल की बुवाई के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है), रोटावेटर (जमीन तैयार करने और मिट्टी में फसल खूंटी को समाहित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है), जीरो टिल सीड ड्रिल (जमीन तैयार किये बगैर सीधे पिछली फसल खुंटियों में बीजों की बुवाई के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है), बेलर (पुआल के संग्रह और धान की खुंटियों की गांठें बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है), धान के पुआल को काटने वाली मशीन (मिट्टी के साथ आसानी से मिश्रण के लिए धान की खूंटी को काटना) और लवन बांधने की मशीन (धान की खूंटी की कटाई और बंडल बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है) वितरित की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है। बैठक में केन्द्रीय मंत्री ने फसल अवशेषों का प्रबंधन कारगर ढंग से करने के लिए राज्य सरकारों को इन मशीनों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया।
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