लखनऊ: प्रदेश में बाढ़ एवं संक्रामक रोगों के प्रकोप को दृष्टिगत रखते हुए राज्य सरकार ने गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य देख-भाल हेतु ‘‘मातृत्व सप्ताह’’ के द्वितीय चरण के आयोजन का निर्णय लिया है। मातृत्व सप्ताह का द्वितीय चरण आगामी 14 से 21 अक्टूबर तक पूरे प्रदेश में मनाया जाएगा। इस सप्ताह के आयोजन का उद्देश्य अधिक से अधिक गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराकर मातृ मृत्यु दर में गिरावट लाना है।
यह जानकारी प्रमुख सचिव, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण श्री अरूण कुमार सिन्हा ने दी है। उन्होंने बताया कि मातृत्व सप्ताह के दौरान गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण, वजन, ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबिन, एल्ब्यूमिन, शुगर तथा गर्भ संबंधी जांचे की जाएंगी। इसके अलावा गर्भधात्रियों को टिटनेस की सुई लगाने के साथ ही उनमें आयरन, कैल्शियम तथा एलबेन्डाजाॅल की गोलियां भी वितरित की जाएंगी। उन्होंने बताया कि जांच के दौरान जिन महिलाओं में किसी भी प्रकार की कमी पाये जाने पर, उन्हें ब्लाक स्तरीय सामुदायिक/प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र अथवा जिला महिला/संयुक्त चिकित्सालयों पर संदर्भित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त अधिक जटिलता वाली महिलाओं का चिन्हांकन अलग से किया जाएगा, ताकि इनकी सूचना उपकेन्द्रवार जनपदों को भेजी जा सके और आगे भी इनका फालोअप हो सके। उन्होंने बताया कि एनीमिक गभवर्त महिलाओं की सूची सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर रखी जाएगी और इन महिलाओं के लिए इंजेक्शन, आयरन, सुक्रोज तथा रक्त की व्यवस्था जिला महिला चिकित्सालयों/चिन्हित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सुनिश्चित की जाएगी। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित भी किया जाएगा।
प्रमुख सचिव ने बताया कि मातृत्व सप्ताह के प्रत्येक दिन स्वास्थ्य पोषण दिवस स्थल पर सुबह 09ः00 बजे से सायं 04ः00 बजे तक गर्भवती महिलाओं की जांच की जाएगी। इस अभियान के तहत सभी गर्भवति महिलाओं का पंजीकरण सुनिश्चित किया जाएगा। मातृत्व सप्ताह को सफल बनाने के लिए ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों की आशाओं का भी योगदान लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि मातृत्व सप्ताह के प्रथम चरण का आयोजन जनवरी, 2016 में किया गया था। इस दौरान 17,65,104 गर्भवती महिलाओं का चिन्हींकरण किया गया था। इनमें से 15,97,102 महिलाओं की समस्त जांचे की गयीं और इनको चिकित्सीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई। इन गतिविधियांे के फलस्वरूप ग्रामीण अंचलों में ब्लड पे्रशर की जांच और जटिलता वाली गर्भावस्था के प्रति महिलाओं में जागरूता बढ़ी और मातृ मृत्यु दर में कमी दर्ज की गई।
