नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पत्नी मेलानिया ट्रंप मंंगलवार को दिल्ली सरकार के एक स्कूल का दौरा करेंगी। तकरीबन एक घंटे तक इस स्कूल में रहने के दौरान वह आम आदमी पार्टी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना हैप्पीनेस क्लास (Happiness Class) के बारे में विस्तार से जानेंगीं। दरअसल, दिल्ली सरकार के स्कूलों में करीब डेढ़ साल पहले हैप्पीनेस करिकुलम शुरू किया गया था। इसके तहत बच्चों को प्रतिदिन एक क्लास दी जाती है। इसका बच्चों पर सकारात्मक असर पड़ रहा है। इस क्लास की चर्चा अब विदेश में भी हो रही है। दुनिया के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पत्नी मेलानिया ट्रंप दिल्ली सरकार के स्कूल में इसी क्लास को देखने आ रही हैं। इसे लेकर यह क्लास चर्चा में है। इसे शुरू कराने का श्रेय दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को जाता है। आइये जानते हैं आखिर क्या है हैप्पीनेस क्लास, जिसके बारे में मिलानिया ट्रंप जानना चाहती हैं।
45 मिनट की क्लास में ना होता है कोई मंत्र और न ही पूजा
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में चलने वाली हैप्पीनेस क्लास 45 मिनट की होती है। स्कूल दिवस में यह प्रतिदिन होती है। इसमें नर्सरी से लेकर कक्षा आठ तक के बच्चे शामिल होते हैं। बच्चों को सबसे पहले ध्यान कराया जाता है। किसी तरह की कोई धार्मिक प्रार्थना नहीं होती है। कोई मंत्र नहीं होता है, कोई देवी-देवताओं की पूजा नहीं होती है। केवल अपनी सांसों पर ध्यान दिया जाता है। अपने मन पर ध्यान दिया जाता है। अपने विचारों पर ध्यान दिया जाता है। यह भारत की बहुत पुरानी संस्कृति है।
हैप्पीनेस क्लास का असर, अब पैरेंट्स से नहीं झगड़ते बच्चे
दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की मानें तो हैप्पीनेस करिकुलम के बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। इसमें तीन चीजें निकल कर सामने आई हैं। पहला हम बच्चों को मेडिटेशन कराते हैं। उसका असर यह हुआ है कि बच्चों का पढ़ाई पर फोकस बढ़ गया है। बच्चे जब पढ़ते हैं तो उनका ध्यान इधर- उधर नहीं भटकता है। बच्चा शांत होकर स्कूल में बैठता है। शांत होकर अपनी पढ़ाई करता है। दूसरा उनमें संस्कारों के प्रति जागरूकता आती है। क्योंकि हम इस कार्यक्रम के तहत रिश्तों पर बहुत जोर देते हैं। परिवार में संबंधों पर और समाज में संबंधों पर हमारा फोकस होता है। उसके संबंधों में बदलाव हुआ है। बच्चे खुद बताते हैं कि उनके व्यवहार में परिवर्तन है। उदाहरण के लिए जो बच्चे पहले जली हुई रोटी मिलने पर मां से झगड़ते थे वे अब मां से नहीं झगड़ते। अब बच्चे यह भी देखते हैं कि उनके माता पिता उनके लिए कितना कर रहे हैं।
देश-विदेश के कई मॉडल से आया आइडिया
मनीष सिसोदिया बताते हैं- मेरे दिमाग में एक बात बार- बार आ रही थी कि अच्छे स्कूल बना दिए और अच्छे परीक्षा परिणाम भी आने लगे हैं और बच्चे आइआइटी जैसी संस्थाओं में भी जाने लगे हैं तो हम उन्हें एक अच्छा इंसान क्यों नहीं बना सकते हैं? ऐसा इंसान जो परिवार, समाज में भी विश्वास के साथ खड़ा हो। इस पर सोचते हुए कई प्राचीन अध्ययन किए गए। देश-विदेश के कई मॉडल देखे गए। जिसमें यह बात सामने आई कि बच्चों को स्कूलों में हैप्पीनेस करिकुलम शुरू कर सकते हैं।
देश के लिए भविष्य के भी अच्छा है ‘हैप्पीनेस क्लास’
हैप्पीनेस क्लास का मकसद है कि एक बच्चा जो पढ़ने में अच्छा है, वह समाज में भी अच्छा हो, परिवार में भी अच्छा हो। स्वयं खुश रहे और दूसरों को भी खुश रखे। बच्चा जब स्कूल से निकले तो वह एक इंसान बन कर भी निकले। यही इसका उद्देश्य है। दरअसल 5 से लेकर 13 साल की उम्र बच्चों के व्यक्तित्व विकास में बहुत महत्व रखती है। यदि हम इन बच्चों को अच्छा इंसान बना पाते हैं तो यह उनके लिए बहुत ही अच्छा साबित होगा। यह देश के भविष्य के लिए भी अच्छा होगा। Source जागरण