मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:- इसकीखेती रबी के मौसम में की जाती है| यह सर्दी के मौसम की फसल है| मेथी की उचित वृद्धि के लिए ठंडे मौसम , आद्र जलवायु और कम तापमान ही अच्छा होता है| यह पाले को भी सहन कर सकता है| मेथी की फसल में जब दाने निकलने लगे और फूल बनने लगे तो वातावरण में नमी और बदल का घिराव नहीं होना चाहिए| क्योंकि ऐसे मौसम में बीमारी और कीड़ों का कुप्रभाव बढ़ जाता है| मेथी की फसल जब पकने लगे तो मौसम ठंडा और शुष्क होना चाहिए| ऐसे मौसम में मेथी की अच्छी उपज प्राप्त होती है|
मेथी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि :-
मेथी की खेती के लिए जिवांश युक्त दोमट मिटटी सबसे उत्तम मानी जाती है| जिस भूमि में मेथी की खेती की जा रही हो उस खेत की मिटटी का पी. एच. मान 6 से 7 का हो तो बेहतर माना जाता है| इसके आलावा दोमट मिटटी या बलुई दोमट मिटटी जिसमे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो वह मिटटी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है| मेथी की सफल खेती के लिए उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए|
मेथी को उगाने के लिए भूमि की तैयारी:- खेती की तैयारी करने के लिए खेत में जुताई के बाद पाटा जरुर चलाना चाहिए| ताकि खेत में नमी बनी रहे | खेत साफ और स्वच्छ होना चाहिए| यदि खेत साफ़ नहीं होगा तो मेथी के अंकुरण में बाधा आयेगी|
मेथी की उन्नत किस्में निम्नलिखित है:-
1. लाम सेलेक्शन – 1
2. गुजरात मेथी -2
3. आर . एम. टी. -1
4. हिसार सोनाली
5. कोयम्बटूर -1
6. राजेन्द्र क्रांति
आदि मुख्य किस्में है जिसकी खेती भारत में की जाती है|
बीज की मात्रा :-
एक हेक्टेयर भूमि पर मेथी के 20 से 25 किलोग्राम के बीज की मात्रा पर्याप्त होती है|
बीज को उपचारित करना:- मेथी के बीजों को बोने से पहले इसे फफूंदी नाशक दवा से उपचारित करें| इसके बाद ही इन बीजों को खेत में बोयें|
मेथी को रबी की फसल कहते है इसलिए भारत के मैदानी हिस्से में मेथी को अक्टूबर के महीने से लेकर नवंबर के मध्य में बोया जाता है| पहाड़ी भागों में मेथी की खेती के लिए मार्च या अप्रैल का समय सबसे उत्तम माना जाता है| यदि हम मेथी की फसल को बोने में देरी करते है तो हमे इसकी कम उपज प्राप्त होती है|
मेथी को बोने का तरीका :-
मेथी की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इसे कतारों में बोना चाहिए| एक कतार से दुसरे कतार की दुरी लगभग 25 सेंटीमीटर की होनी चाहिए और कतारों में एक पौधे से दुसरे पौधे की दुरी कम से कम 9 या 10 सेंटीमीटर की होनी चाहिए| मेथी के बीज को बोने के लिए 5 सेंटीमीटर की गहराई उपयुक्त होती है|
मेथी की खेती में प्रयोग होने वाले खाद और उर्वरक :-
मेथी एक दलहनी फसल है| इसलिए इसकी फसल में नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं करना चाहिए| नाइट्रोजन का यदि प्रयोग करना है तो कम मात्रा में करें| मेथी को बोने से पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को खेत की मिटटी में मिला दें और जुताई कर दें ताकि खाद अच्छी तरह से मिटटी में मिल जाये| एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग 10 से 15 टन खाद की मात्रा काफी होती है| भूमि के हिसाब से आप इसकी मात्रा को घटा – बढ़ा सकते है| इसके आलावा मेथी की खेती करते समय भूमि में नीम की पत्तियाँ , धतूरे की पत्तियाँ , और तम्बाकू के पत्ते को अच्छी तरीके से मिलाकर खेत में मेथी के बीजों को बोयें|
रासयनिक खाद का प्रयोग :-
बीज बोने के 15 से 20 दिन के बाद 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन , 45 से 50किलोग्राम फास्फोरस और 25 से 30 किलोग्राम पोटाश की मात्रा को आपस में मिलाकर मेथी के कतारों में डाल दें| अगर किसान रासायनिक खाद की मात्रा को यूरिया , सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट को पोटाश के माध्यम से देना चाहता है तो एक हेक्टेयर भूमि के लिए एक बोरी यूरिया , 5 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट और 1 बोरी म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की मात्रा काफी होती है| मेथी की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इन सभी खादों का प्रयोग लाभदायक होता है|
मेथी की सिंचाई और पानी के निकास का प्रबंध :-
भूमि में यदि नमी हो तो मेथी का अंकुरण अच्छी तरीके से होता है| आमतौर पर मेथी की सिंचाई 10 से 15 दिन के अन्तराल पर की जाती है| यदि खेत में नमी कम हो जाती है तो हल्की – हल्की सिंचाई करना चाहिए| मेथी के खेत में फालतू का पानी इकठ्ठा ना होने दें| अगर पानी का जमाव हो जाता है तो मेथी के पत्ते का रंग पीला हो जाता है और वो मुरझाकर मरने लग जाते है| इसलिए इसके खेत में पानी के निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए|
खरपतवार की रोकथाम के लिए :-
मेथी की फसल को बोने के दो बार खेत में निराई अवश्य करें एक बार बीज बोने के लगभग 15 दिन के बाद और दूसरी बार 40 दिन के बाद निराई करें| मेथी के खेत को खरपतवारों से मुक्त रखे|
मेथी पर लगने वाले रोग और कीट की रोकथाम के लिए :-
मेथी के बीज को फफूंदी नाशक दवा ट्राईकोडर्मा से उपचारित करें| बीज के आलावा जिस भूमि में मेथी उगाई जा रही है उस भूमि को भी दवा से उपचारित करें| इससे मेथी की जड़ नहीं से सम्बधित रोग नहीं लगते|
भभूतिया रोग :- इस रोग को चूर्णिल आसिता का रोग भी कहते है| फसल को इस रोग से बचाने के लिए कार्बोडेजिम की 0. 1 % की मात्रा में घुलनशील गंधक की 0. 2 % की मात्रा कप मिलाकर छिडकाव करें|
माहो नामक कीट :- मेथी की फसल पर इस कीट के प्रभाव के शुरू होते ही डायमेंथोएट की 0. 2 % की मात्रा और इमिडाक्लोप्रिड की 0. 1 % की मात्रा का घोल बनाकर अपनी फसल पर छिडकाव करें| इस छिडकाव से माहो कीट का कुप्रभाव दूर हो जाता है|
दीमक लगने पर :- खेत में अगर दीमक लग जाये तो क्लोपयरफास की 4 लीटर की मात्रा को एक हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई करते समय पानी में मिला दें और सिंचाई करें|
मेथी की कटाई :-
मेथी की कटाई इसके प्रयोग में लाए जाने वाले हिस्से पर आधारित होती है| यदि इसका प्रयोग सब्जी के लिए करना है तो मेथी के बोने के लगभग एक महीने बाद हरी – हरी पत्तियों की कटाई करें| मेथी को भूमि की सतह के पास से कटे| यदि मेथी के दानो के लिए कटाई करनी है तो जब मेथी की फसल का रंग पीला हो जाये और इसकी ज्यादातर पत्तियां उपर वाली पत्तियों को छोडकर गिर जाये और फलियों का रंग पीला हो जाये तो ऐसी अवस्था में फसल की कटाई करनी चाहिए| यदि मेथी की कटाई सही अवस्था में ना की जाये तो इसकी फलियों में से दाने झड़ने लग जाते है| मेथी की फसल की कटाई के बाद पौधे को एक बण्डल में बांधकर एक सप्ताह के लिए छाया में सुखाया जाता है| जब मेथी सुख जाती है तो इन बंडलों को पक्के फर्श पर या तिरपाल पर रखकर किसी लकड़ी की सहायता से पीटे| इससे दाने फलियों से बाहर निकल जाते है| मेथी के दानो को निकालने के लिए थ्रेसर का भी उपयोग किया जाता है|
भंडारण :-
मेथी के दानो को निकालने के बाद इन्हें अच्छी तरीके से साफ़ करके बोरियों में भर दिया जाता है और इन्हें नमी से दूर हवादार कमरों में भंडारित करें|
उपज की प्रप्ति :-
मेथी की उपज इसकी किस्म और उपयोग होने वाले हिस्से पर निर्भर होती है| यदि इसकी उन्नत किस्म है तो लगभग 60 से 70 किवंटल प्रति एक हेक्टेयर तक की उपज मिल सकती है| मेथी के दानो के लिए इसकी उपज लगभग 15 से 20 किवंटल एक हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है|