नई दिल्ली: सरकार ने पश्चिमी घाटों के प्राकृतिक दृश्यों और उनकी विलक्षण जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), श्री प्रकाश जावडेकर ने पश्चिमी घाट क्षेत्र यानी गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के राज्य पर्यावरण एवं वन मंत्रियों की कल यहां बैठक बुलायी है।
इस बैठक में पश्चिमी घाटों के पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र के वास्तविक सीमांकन की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी और पश्चिमी घाटों को बचाने एवं उनके संरक्षण के लिए आगे की कार्रवाई के बारे में चर्चा की जाएगी। बैठक में पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र के स्थानीय लोगों की आजीविका सुरक्षा के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करते हुए पश्चिमी घाट क्षेत्र की जैव विविधता का संरक्षण किये जाने पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा, जो सिर्फ विकास की प्रक्रिया भर नहीं है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से समावेशी विकास से घनिष्ट तौर पर सकारात्मक रूप से संबंधित भी है।
क्षेत्र के कुछ राज्यों से प्राप्त अनुरोधों के आधार पर, मंत्रालय ने केरल को छोड़कर पश्चिमी घाट क्षेत्र की सभी राज्य सरकारों को अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में आने वाले पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का वास्तविक पुष्टि के आधार पर सीमांकन करने और 30 जून 2015 तक मंत्रालय को अपने प्रस्ताव सौंपने का अवसर देने का फैसला किया है। केरल यह कार्य पहले ही कर चुका है।
मंत्रालय ने गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाटों के पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने के लिए भारत के राजपत्र में 10 मार्च 2014 को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत एक अधिसूचना का प्रारूप भी प्रकाशित किया था। चिन्हित पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र देश के पश्चिमी तट से सटी करीब 1500 किलोमीटर के दायरे में क्षैतिज रूप से फैली प्राकृतिक वनस्पति की पट्टी का प्रतिनिधित्व करता है।
पश्चिमी घाट सिर्फ समृद्ध जैव विविधता को ही आश्रय नहीं देते, बल्कि करीब पांच करोड़ लोगों की आबादी का भी भरण पोषण करते हैं और यह अधिक जनसंख्या घनत्व वाले इलाकों में भी शामिल हैं। इसलिए इस क्षेत्र के निरंतर और समावेशी विकास के लिए पश्चिमी घाटों की विलक्षण जैव विविधता को बचाने और उसका संरक्षण करने की आवश्यकता है। पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र की अवधारणा निरंतर विकास के साथ साथ किसी क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण की व्यवस्था भी उपलब्ध कराती है।