नई दिल्ली: पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार ने “देखो अपना देश” वेबिनार श्रृंखला आयोगित करने की अपनी पहल को जारी रखा है। इस श्रृंखला के तहत 8वां वेबिनार “पूर्वोत्तर भारत – विशिष्ट गांवों का अनुभव” विषय पर आयोजित किया गया। 24 अप्रैल, 2020 को आयोजित किये गये इस कार्यक्रम में असम और मेघालय के विशेष गावों को रेखांकित किया गया था।
पूर्वोत्तर भारत मनोहारी सुंदरता की भूमि है, जो हरा परिदृश्य, नीला जल निकाय, सुखद शांति, अनंत विशालता और मंत्रमुग्ध करने वाली स्थानीय आबादी का एक अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है। इसकी भौगोलिक स्थिति की अनंत विविधता, इसकी स्थलाकृति, इसकी विविध वनस्पतियां, जीव-जंतु व पक्षी जीवन, यहाँ के लोगों का इतिहास व जातीय समुदायों की विविधता, प्राचीन परंपराओं और जीवन शैली की समृद्ध विरासत और इसके त्योहार एवं शिल्प इसे एक आश्चर्यजनक पर्यटन स्थल बनाते हैं। इसकी नए सिरे से खोज करने की आवश्यकता है। पूर्वोत्तर की अद्भुत विविधता इसे सभी मौसमों के लिए अवकाश का एक महत्वपूर्ण गंतव्य स्थल बनाती है।
कोयली टूर्स एंड ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ श्री अरिजीत पुरकायस्थ और लैंडस्केप सफारी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर डॉ श्रेया बारबरा के द्वारा वेबिनार प्रस्तुत किया गया।
वेबिनार की मुख्य विशेषताओं में असम और मेघालय के गांवों के रोचक तथ्यों को शामिल किया गया
असम के गांव:
सुआलकुची– गुवाहाटी से लगभग 35 किमी दूर ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट पर स्थित है। सुआलकुची कामरूप जिले का एक ब्लॉक है। यह बुनाई करने वाले दुनिया के सबसे बड़े गांवों में से एक है, जहां 74 प्रतिशत परिवार सुनहरे मूगा, हाथी दांत के सामान सफेद पट, हल्के पीले रंग का ईरी या एंडी सिल्क के रेशमी कपड़े बुनने में लगे हुए हैं। यह गाँव बुनाई की अपनी सदियों पुरानी विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यहां के लोग सिल्क प्रजनन की अहिंसा अवधारणा का समर्थन करते हैं जहां रेशम के कीड़े को मारे बिना रेशम प्राप्त किया जाता है। यह पर्यावरण के अनुकूल वातावरण बनाने की दिशा में एक अच्छा कदम है।
रंथली– नागांव जिले का एक छोटा सा गाँव है जो हस्तनिर्मित आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है। ये आभूषण इस क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों को चित्रित करते हैं। असमी गहनों के पारंपरिक डिजाइन सरल हैं, लेकिन इनमें गहरे लाल रत्न, रूबी या मीना के सजावट का काम होता है।
हाजो– हाजो गुवाहाटी शहर से 25 किमी दूर है और यह हिंदुओं, बौद्धों और मुसलमानों के लिए तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां स्थित हयाग्रीव माधव मंदिर और पोवा मक्का मस्जिद बहुत प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने हयग्रीव माधव मंदिर में निर्वाण प्राप्त किया था। इस मंदिर में एक तालाब है जो काले नरम शेल वाली कछुआ प्रजाति को एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करता है। कोई उन्हें परेशान नहीं करता क्योंकि लोग उन्हें भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं।
दादरा– सारस की लुप्तप्राय प्रजाति जिसे असमिया में हरगीला कहा जाता है, के लिए दादरा एक सुरक्षित आश्रय है। दुनिया में इस प्रजाति के केवल 1500 से अधिक सारस हैं और लगभग 500 सारस इस गांव में सुरक्षित आश्रय प्राप्त करते हैं। यह इस प्रजाति के सारसों की सबसे बड़ी कॉलोनी है। ग्रीन ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त श्रीमती पूर्णिमा देवी बर्मन से हरगीला के संरक्षण की प्रेरक कहानी जानी जा सकती है।
सरथेबारी – असम का घंटी धातु उद्योग, बांस शिल्प के बाद दूसरा सबसे बड़ा हस्तशिल्प उद्योग है। घंटी धातु तांबे और टिन का एक मिश्र धातु है और इस उद्योग के कारीगरों को ‘कहार’ या ‘ओरजा’ कहा जाता है।
निचले असम का नलबाड़ी क्षेत्र– एक साझे सूत्र से जुड़े गांवों का समूह, असम के प्रसिद्ध जापी के उत्पादन के साथ समुदाय आधारित रोजगार। असम की शंकु के आकार की टोपी को जापी कहा जाता है। ऐतिहासिक रूप से जापी को किसानों द्वारा खेतों में धूप से बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। आज रंग-बिरंगी, सजी-धजी जापी असम की सांस्कृतिक प्रतीक बन गई है।
बांसबाड़ी– गुवाहाटी से 140 किलोमीटर दूर भूटान की तलहटी में स्थित है। बांसबाड़ी में यूनेस्को प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, मानस नेशनल पार्क स्थित है। यहाँ कई वनस्पतियों और समृद्ध वन्य जीवन का निवास स्थान है, जिनमें से कई लुप्तप्राय हैं।
असम का चाय बंगला– असम के सबसे बड़े उद्योग चाय उद्योग में विभिन्न समुदाय और जनजाति समूह कार्यरत हैं। ब्रिटिश युग के चाय बागानों के आकर्षण का अनुभव करने के लिए विभिन्न चाय बागानों ने पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।
माजुली– दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीपों में से एक माजुली ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित है। माजुली असमिया नव-वैष्णव संस्कृति का एक केंद्र है, जिसे 15 वीं शताब्दी में असमिया संत श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव द्वारा शुरू किया गया था। इसे “असमिया सभ्यता का पालना” के रूप में जाना जाता है।
नम्फेके गांव – इसे सुंदर ताई-फाकी गांव के रूप में भी जाना जाता है। यह असम के सबसे पुराने और सबसे सम्मानित बौद्ध मठों में से एक है। यहाँ के बौद्ध समुदाय की उत्पत्ति थाईलैंड से हुई है और वह थाई भाषा के समान की बोली बोलते हैं लेकिन ताई जाति के रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हैं। माना जाता है कि 18 वीं शताब्दी में यह समुदाय असम पहुंचा था।
मेघालय के गांव
मेघालय को बादलों का घर के रूप में जाना जाता है। यह पहाड़ी राज्य है। यहाँ की घाटियां गहरी, चट्टानी और घोड़े के नाल के आकार में हैं। राज्य में ऑर्किड की तीन सौ किस्में पाई जाती हैं और यह वन्यजीवों से भी समृद्ध हैं। मेघालय को अपने खूबसूरत स्थलों के कारण भारत के पर्यटन मानचित्र में किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है।
मवफलांग– सुंदर घाटी अपने अनछुए जंगल के लिए प्रसिद्ध है। यह प्रकृति का अपना संग्रहालय है जिसमें अद्वितीय वनस्पतियों का खजाना है जिसे दुनिया के अन्य हिस्सों में शायद नहीं देखा जा सकता है। स्थानीय खासी समुदायों द्वारा पूजनीय और संरक्षित पवित्र ग्राउंड, मेगालिथ 500 साल पुराना माना जाता है। करीब में ‘डेविड स्कॉट की पगडंडी’ है, जो सुंदर मेघालय के परिदृश्य के बीच एक ट्रेकिंग ज़ोन है जहाँ लोग झरनों, चट्टानों, जंगलों और स्थानीय गावों से होकर पहुंचते हैं।
कोंगथोंग – एक सीटी बजाने वाला गाँव जहाँ प्रत्येक ग्रामवासी का एक ऐसा नाम होता है जिसकी सीटी बजाई जा सकती है। जब एक बच्चा पैदा होता है, तो माँ एक सीटी बजाने लायक नाम देती है। यह परंपरा युगों से चली आ रही है।
जकरेम– यह शिलांग-माविकिरवात मार्ग पर शिलांग से 64 किमी दूर स्थित है और औषधीय गुणों वाले गंधक युक्त गर्म झरनों के लिए प्रसिद्ध है। जकरेम अब एक संभावित हेल्थ रिसॉर्ट के रूप में विकसित हुआ है और यह राफ्टिंग, लंबी पैदल यात्रा और साइकिल चलाने जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है।
नोंगरिअत– जीवित- जड़ों से बने पुलों के लिए प्रसिद्ध गांव। पुल बड़े पैमाने पर मोटी जड़ों से बने होते हैं। स्थानीय लोग जड़ों को पुल बनाने के लिए जोड़ देते हैं। इसे पुल से एक समय में कई लोग दूसरी तरफ जा सकते है। पुलों का उपयोगी जीवन काल 500-600 वर्ष माना जाता है। डबल डेकर जीवित जड़ पुल सभी जड़ पुलों में सबसे बड़ा है, और रेनबो जल प्रपात राज्य के सबसे सुंदर झरनों में से एक है।
शोणपडेंग – मेघालय की जयंतिया पहाड़ियों में स्थित एक सुंदर गाँव है जहाँ निर्मल उमंगोट नदी बहती है। उमंगोट नदी अपने अत्यंत साफ पानी के लिए प्रसिद्ध है। पानी इतना साफ़ है कि जब ऊपर से देखा जाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे नाव मध्य हवा में तैर रही है।
जोवई– जयंतिया हिल जिले में स्थित है और प्राकृतिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्द है जो इस क्षेत्र के लिए विशिष्टता है। मीनतदु नदी द्वारा तीन ओर से घिरा हुआ है। यहाँ ग्रीष्मकाल सुखद रहता है। खासी और जयंतिया पहाड़ियों में हर जगह मोनोलिथ मौजूद हैं। हालांकि, मोनोलिथ या मेगालिथिक पत्थरों का सबसे बड़ा संग्रह नार्टियांग बाजार के उत्तर में पाया जाता है। नर्तियांग में दुर्गा मंदिर एक पूजा स्थल है। कुरंग सूरी जलप्रपात जिले के सबसे खूबसूरत झरनों में से एक है।
वेबिनार के माध्यम से भारत के परिदृश्य, शहरों और अन्य अनुभवों को दिखाने के लिए मंत्रालय के प्रयास, अतुल्य भारत के यूट्यूब चैनल और मंत्रालय की वेबसाइट www.incredibleindia.org और www.tourism.gov.in पर भी उपलब्ध हैं।
“पूर्वोत्तर भारत – विशिष्ट गांवों का अनुभव” विषय पर आयोजित वेबिनार में 3654 प्रतिभागी थे और इसमें निम्नलिखित देशों के लोग शामिल हुए थे:
- अफगानिस्तान 2. कनाडा 3. फ्रांस 4. जर्मनी 5. पाकिस्तान 6. सिंगापुर 7. स्पेन 8. थाईलैंड 9. इंग्लैंड 10. संयुक्त राज्य अमेरिका