नई दिल्ली: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय बच्चों के आश्रय स्थलों के बारे में दिशा-निर्देश तैयार करेगा। इसके तहत बच्चों को उपलब्ध कराए जाने वाली सुविधा के लिए न्यूनतम मानक तय किये जाएंगे। यह फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि ऐसे कई संस्थान हैं, जो बाल न्याय (बाल सुविधा एवं सुरक्षा) अधिनियम, 2015 के तहत पंजीकृत नहीं हैं, जबकि अपने बच्चों की देखभाल करने और उन्हें पढ़ाने-लिखाने में अक्षम माता-पिता अपने बच्चों को इन संस्थानों के आश्रय स्थलों में भर्ती करने पर मजबूर हो जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘तमिलनाडु में अनाथालयों में बच्चों का शोषण’ बनाम भारत संघ (आपराधिक याचिका संख्या 102/2007) में आदेश दिया है कि बाल न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 2(14) के तहत ‘देखभाल और सुरक्षा के लिए बच्चे की आवश्यकता’ को व्यापक परिभाषा के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। यह परिभाषा प्रतीकात्मक और बच्चों को देखभाल तथा सुरक्षा के लाभ समान रूप से उन सभी बच्चों को दिए जाने चाहिए, जिन्हें राज्य की देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है। इस निर्णय के मद्देनजर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है।
महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने कहा है कि स्कूलों से जुड़े छात्रावासों सहित अन्य संस्थानों और केन्द्रों के आश्रय स्थलों में रहने वाले बच्चों को समान सुरक्षा और देखभाल की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसलिए हमने फैसला किया है कि बच्चों को समुचित सुरक्षा और उचित देखभाल के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं, जिसमें आश्रय स्थलों का निरीक्षण भी शामिल है। मंत्रालय जल्द इन दिशा-निर्देशों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ साझा करेगा, ताकि बोर्डिंग सुविधा वाले स्कूलों में इसकी जानकारी दी जा सके।