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मिजोरम उत्तर-पूर्व के अंतर्देशीय जल परिवहन (आईडब्ल्यूटी) के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: सर्बानंद सोनोवाल

देश-विदेश

केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग व आयुष मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने आज आइजोल में अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई), परिवहन विभाग, मिजोरम के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के शीर्ष अधिकारियों के साथ अंतर्देशीय जल परिवहन (आईडब्ल्यूटी) विकसित करने के लिए संचालित परियोजनाओं की समीक्षा की। इन परियोजनाओं में मिजोरम की महत्वपूर्ण कलादान मल्टी मॉडल परिवहन परियोजना भी शामिल है। मंत्री ने उत्तर- पूर्व भारत में एक मजबूत अंतर्देशीय जल प्रणाली विकसित करने में मिजोरम की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। इस समीक्षा बैठक में मिजोरम सरकार के परिवहन विभाग के मंत्री टीजे लालनुंटलुआंगा और मिजोरम सरकार की मुख्य सचिव डॉ. रेणु शर्मा भी उपस्थित थीं।

सरकार की खावथिलंगटुइपुई (कर्णफुली)-तुइचांग नदी में 23 किलोमीटर तक अंतर्देशीय जल परिवहन विकसित करने की योजना है। इस परियोजना की कुल लागत 22.93 करोड़ रुपये है। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत कुल 6.17 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। वहीं, मंत्री को हाइड्रोग्राफिकल (जल रेखा-चित्र से संबंधित) सर्वेक्षण और तकनीकी- आर्थिकी व्यवहार्यता अध्ययन के बारे में भी जानकारी दी गई। इस अध्ययन को मिजोरम के खमरांग गांव से असम स्थित घर्मुरा के बीच बहने वाली तियांग नदी के 87.136 किलोमीटर प्रवाह क्षेत्र में किया गया था। वहीं, छिमतुईपुई नदी में आईडब्ल्यूटी विकसित करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। अब इस नदी पर तुपुई डी से लोमासु तक 138.26 किलोमीटर तक विस्तृत हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण और तकनीकी आर्थिकी व्यवहार्यता सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया गया है। इस सर्वेक्षण की लागत 82.30 लाख रुपये आंकी गई है।

इन परियोजनाओं की समीक्षा के बाद श्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा, “मिजोरम उत्तर-पूर्व क्षेत्र के अंतर्देशीय जल परिवहन के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रधानमंत्री की सोच है कि भारत में विकास के नए इंजन के रूप में उत्तर-पूर्व क्षेत्र को सक्रिय करना है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें अपनी नदियों का बेहतर उपयोग परिवहन के एक सस्ते, तीव्र और इकोलॉजिकली ठोस साधन के रूप में करना चाहिए। मिजोरम के साथ-साथ उत्तर-पूर्व की आर्थिक क्षमता को हमारे जलमार्गों को विकसित करके और वैश्विक बाजार में हमारी लॉजिस्टिक पहुंच को मजबूत करके खोला जा सकता है।”

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