महाभारत में श्रीकृष्ण ने जीवन मृत्यु से सम्बंधित कई रहस्यों का ज्ञान अर्जुन अन्य के समक्ष व्यक्त किया है. मानव अपने जीवन में सरे कर्मों के पश्चात् यह चाहता है कि उसे मोक्ष प्राप्त हो. पृथ्वी पर कई साडी कृतियों का दर्जन किया गया है पर केवल मनुष्य ही एक ऐसी कृति है जो सोच विचार इच्छाएं रख सकती है. मानव अपनी इच्छा से कभी भी मुक्त नहीं हो सकता है ठीक उसी प्रकार जैसे इच्छा का समाप्त हो जाना ही मोक्ष है. किसी भी बंधन से मुक्ति तब तक नहीं मिलती है,जब तक हम उससे अपनी इच्छाओं को मुक्त नहीं करते है.
जीवन का मूलभूत मन्त्र बताते हुए श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं “परम सिद्धि को प्राप्त हुए महात्माजन मुझे पाने के बाद, दुख का जहां घर है, ऐसे क्षणभंगुर जीवन को जीने के लिए फिर नहीं आते हैं. क्योंकि हे अर्जुन, ब्रह्मलोक से लेकर सभी लोक पुनरावर्ती स्वभाव वाले हैं. परंतु हे कुंतीपुत्र, मुझसे मिल जाने के बाद उनका पुनर्जन्म नहीं होता है.”पुनर्जन्म का प्रारंभ जीवन की आकांक्षा है, जीवेषणा, जीता ही चला जाऊं कि मंशा है.किसी भी इच्छा को पूरा करना हो तो जीवन चाहिए, समय चाहिए, अन्यथा इच्छा पूरी नहीं होगी जब तक मनुष्य के मन की सभी इच्छाएं पूरी नहीं होती है उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिल पता है.
इच्छापूर्ति के लिए भविष्य चाहिए होता है. कृष्ण कहते हैं, ‘पुनर्जन्म ही दुख का घर है. पुनर्जन्म होता है जीवन की आकांक्षा से; जीवन की आकांक्षा होती है, इच्छा को तृप्त करने के लिए समय की मांग से. तो अगर ठीक से समझें तो पुनर्जन्म का सूत्र या दुख का सूत्र, इच्छा है, तृष्णा है. अगर कोई भी इच्छा नहीं है तो आप कहेंगे कि आने वाले कल की मुझे अब जरूरत नहीं रही.’