19 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

सांसदों और विधायकों को कभी भी ‘शिष्टता, मर्यादा और गरिमा’ की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना चाहिए: उपराष्ट्रपति

देश-विदेश

उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने आज यह कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत की संसद और विधायिकाओं को दूसरों के लिए उदाहरण स्थापित करना चाहिए।

आज उप राष्ट्रपति निवास में ‘द महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा’ के राजनीतिक नेतृत्व और शासन में एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम करने वाले छात्रों के साथ बातचीत करते हुए उपराष्‍ट्रपति ने संसदीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने और सुशासन के लिए प्रक्रियाओं को सशक्‍त बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, क्‍योंकि देश अपनी स्‍वतंत्रता के 75वें वर्ष का समारोह मना रहा है।

उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति भी हैं। उन्‍होंने संसद और राज्य विधानसभाओं में बार-बार किये जाने वाले व्यवधानों के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह की निष्क्रिय विधायिकाएं संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत की जड़ पर प्रहार करती हैं।

उन्‍होंने जोर देकर कहा है कि सांसदों और विधायकों को सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है लेकिन उन्‍हें कभी भी कोई बिन्‍दु बनाते समय ‘शिष्टता, मर्यादा और गरिमा’ की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना चाहिए।

उपराष्‍ट्रपति ने यह भी दोहराया कि लोगों को चार बहुत महत्वपूर्ण गुणों या 4 सी-चरित्र, आचरण, योग्‍यता और क्षमता के आधार पर ही अपने प्रतिनिधियों का चयन और चुनाव करना चाहिए। उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से, हमारी चुनावी प्रणाली इन 4-सी गुणों के स्थान पर अवांछनीय 4-सी यानी जाति, समुदाय, नकदी और अपराधिता के अन्‍य सेट से विकृत हो रही है।”

श्री नायडू ने कहा कि वह हमेशा यही चाहते हैं कि युवा न केवल राजनीति में सक्रिय रुचि लें, बल्कि उत्साह के साथ राजनीति में भी शामिल हों और ईमानदारी, अनुशासन और समर्पण के भाव के साथ लोगों की सेवा करें। उन्होंने जोर देकर कहा कि आदर्श व्यवहार विचारधारा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि दुर्भाग्य से राजनीति सहित सभी क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान मूल्‍यों और मानकों में तेजी से गिरावट आई है। लेकिन अब समय आ गया है कि विभिन्न बीमारियों से ग्रस्‍त ऐसी व्‍यवस्‍था को साफ किया जाए जो इसे परेशान कर रही हैं। हमें जीवन के सभी क्षेत्रों में उच्च नैतिक और चारित्रिक मानकों को बढ़ावा देना चाहिए।

अपने आप को लोकलुभावन नीतियों के खिलाफ बताते हुए उन्‍होंने कहा कि सीमांत और जरूरतमंद वर्गों को शिक्षा, कौशल और आजीविका के अवसरों के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिए।

देश की 35 वर्ष से कम आयु की 65 प्रतिशत आबादी का जिक्र करते हुए उपराष्‍ट्रपति ने जनसांख्यिकीय लाभ का उल्लेख करते हुए विकास को तेज करने और पुनरुत्थानशील नये भारत के निर्माण के लिए जनसांख्यिकीय क्षमता का पूरा लाभ उठाने का आह्वान किया। उन्होंने छात्रों से कहा कि आने वाले वर्षों में भारत के लिए हर क्षेत्र में प्रभावी नेतृत्व एक अनिवार्य आवश्यकता है।

छात्रों को यथास्थिति से कभी भी संतुष्ट न रहने की सलाह देते हुए श्री नायडू ने उन्हें अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एकनिष्ठ भाव से लगातार परिश्रम करने के लिए कहा। यह देखते हुए कि उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए मनोबल को ऊंचा रखना महत्वपूर्ण है, उन्होंने स्वामी विवेकानंद के प्रसिद्ध उद्धरण: ‘उठो! चौकन्ना रहो! और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए’ का उल्‍लेख किया।

उन्होंने छात्रों को हमेशा नेकी के मार्ग पर चलने की सलाह देते हुए उन्हें व्यापक सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत के रूप में कार्य करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि आपको लैंगिक भेदभाव, जातिवाद, भ्रष्टाचार, महिलाओं पर अत्याचार और निरक्षरता जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने की दिशा में समर्पण के साथ काम करना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को स्वस्थ जीवन शैली विकसित करने की भी सलाह दी। उन्होंने छात्रों से कहा कि वे शारीरिक फिटनेस बनाए रखें और भारतीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल स्वस्थ भोजन की आदतों का पालन करें।

श्री नायडू ने छात्रों से अपनी मातृभाषा में दक्ष होने, अपने गुरुओं और माता-पिता का सम्मान करने और हमेशा दूसरों के प्रति सहानुभूति बरतने और विशेष रूप से जरूरतमंद और कमजोर लोगों की देखभाल करने का आग्रह किया। उन्होंने छात्रों से कहा कि हमारी सभ्यता सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है और साझा करने और देखभाल करने का दर्शन भारतीय संस्कृति के मूल में है।

Related posts

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More