नई दिल्ली: सरकार ने आज ई-भुगतान प्रणाली की शुरूआत की, जिसका उद्देश्य वन्य भूमि की प्रकृति बदलने के संबंध में देय क्षतिपूर्ति-लेवी की भुगतान प्रक्रिया तेज और पारदर्शी हो सके। आज यहां ई-भुगतान प्रणाली की शुरूआत करते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावेड़कर ने कहा, इस प्रणाली से क्षतिपूर्ति-लेवी के भुगतान में होने वाला विलंब समाप्त हो जाएगा। मंत्री महोदय ने कहा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सबके भले के लिए किया जाना चाहिए और यह कि सरकार का प्रयास है कि पर्यावरणीय सुरक्षा के साथ समझौता किए बिना प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल हो सके। ई-भुगतान प्रणाली के जरिए किया जाने वाला भुगतान नियत खाते में होगा। यह इस बात पर निर्भर है कि किस राज्य में वन्य भूमि की प्रकृति बदलने का प्रस्ताव है। ई-पोर्टल के जरिए क्षतिपूर्ति-लेवी भुगतान 31 अगस्त, 2015 तक क्रियाशील रहेगा। बहरहाल, उपयोगकर्ता एजेंसियों द्वारा क्षतिपूर्ति-लेवी भुगतान 1 सितंबर, 2015 से केवल ई-प्रणाली के जरिए ही स्वीकार किया जाएगा। ई-भुगतान पोर्टल के सक्रिय होने के बाद कोई भी भुगतान स्वीकार नहीं होगा। केवल वही भुगतान पोर्टल के जरिए स्वीकार होंगे जिनके लिए तदर्थ सीएएमपीए ने विशेष आदेश जारी किए होंगे। शुरूआत में भुगतान दो तरीकों से किए जा सकेंगे — आरटीजीएस और एनईएफटी के जरिए ऑनलाइन चालान तथा ऑफलाइन चालान प्रणाली।
सीएएमपीए का गठन 29/30 अक्टूबर, 2002 के माननीय सर्वोच्च न्यायाल के आदेशों के आधार पर किया गया है। तदर्थ सीएएमपीए में लिए गए निर्णय के आधार पर तदर्थ सीएएमपीए के राज्यवार खातों में जमा की प्रमाणीकरण प्रक्रिया शुरू हो गई है। वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के तहत द्वितीय चरण (निर्णायक अनुमति) के पहले तदर्थ सीएएमपीए के लिए पहले आवश्यक था कि वह इस बात को प्रमाणित करे कि क्षतिपूर्ति-लेवी संबंधित खातों में जमा हो गई हैं। अब तक क्षतिपूर्ति-लेवी के संबंध में तदर्थ सीएएमपीए रसीदों को स्वयं कागजों के माध्यम से प्रमाणित करता था, जिसमें कई तरह की प्रक्रियायें होती थीं और बहुत समय लगता था। ई-भुगतान प्रणाली के शुरू हो जाने से अब यह विलंब समाप्त हो जाएगा।