नई दिल्ली: 47 वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) 2016, के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के निदेशकों की बैठक में अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के निर्माता निर्देशकों ने आईएफएफआई 2016 में दर्शकों से मिले सम्मान के लिए बहुत खुशी और उत्साह व्यक्त किया है। उन्होंने फिल्म निर्माण के दौरान हुए अपने अनुभवों को भी सुनाया।
‘एकार्डिंग टू हर’ की निर्देशिका सुश्री एस्टेले आर्ट्स ने बताया कि यह फिल्म उसके अनुभव पर आधारित एक काल्पनिक कहानी है। अपने बेटे की परवरिश के लिए पियानोवादक के रूप में अपने कैरियर को पीछे छोड़कर वह रूस से न्यू यॉर्क आ जाती है। अमेरिका में फ्रेंच प्रवासियों के माहौल में रहते हुए वह अलग-थलग पड़ जाती है। इस फिल्म में यह भी दर्शाया गया है कि पति पर उसकी निर्भता बढ़ती जाती है। व्यक्तिगत असुरक्षा की भावना उसके अंदर घर कर जाती है। उन्होंने कहा कि वह इस बात से हैरान है कि भारत में अऩेक लोग खुद को फिल्म से जोड़ने में सक्षम रहे।
‘हाउस ऑफ अदर्स’ फिल्म की निदेशिका सुश्री रूसुदान गलुरिज ने बताया कि उसकी फिल्म में जॉर्जिया में गृह युद्ध के कारण उजड़े परिवारों की भावनाओं को दर्शाया गया है। उनकी फिल्म में युद्ध के पश्चात् शांति के माहौल में एक नया जीवन शुरू करने की कठिनाइयों को दर्शाया गया है।
‘रऊफ’ के निर्देशक श्री बेरिस काया ने कहा कि उसकी फिल्म में 9 साल के लड़के और 20 साल की लड़की के बीच युद्ध की छाया के दौरान आध्यात्मिक प्रेम संबंध की कहानी को दर्शाया गया है उन्होंने यह भी कहा कि उनकी फिल्म एक कुर्द और तुर्की संयुक्त सहयोग से बनी है जिसमें यह दिखाया गया है कि दोनों समुदाय मित्रों के रूप में एक साथ रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि तुर्की में फिल्म निर्माण के लिए माहौल लगातार बहुत कठित होता जा रहा है वह भाग्यशाली रहे। उन्होंने इस फिल्म का निर्माण शांतिकाल के दौरान किया है। अब इन शैलियों की फिल्में बनाना अधिक कठिन हो गया है।
‘आई, ओलगा हैप्नारोवा’ फिल्म के निर्देशक टॉमस वेनरेब ने कहा उनकी फिल्म एक युवा अकेली लेस्बियन की जिन्दगी के बारे में है जो समाज की इच्छा अऩुसार अपनी भूमिका अदा नही कर सकती। लोगों के साथ जुड़ने की अक्षमता के कारण वह केवल 22 वर्ष की उम्र मे ही एक बड़ी कातिल बन जाती है। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में 1970 के दौरान चेक गणराज्य के इतिहास के एक बहुत ही उथल-पुथल वाले चरण का प्रदर्शन किया गया है।
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