देहरादून: नगर निगम परिसर में उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी द्वारा उत्तराखण्ड शासन में संस्कृत विभाग के स्थापना दिवस के अवसर पर प्रो0 पयूष कान्त दीक्षित कुलपति उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में एक दिवसीय संस्कृत संगोष्ठी का आयोजन किया गया, मा कैबिनेट मंत्री उत्तराखण्ड सरकार दिनेश अग्रवाल द्वारा मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में प्रतिभाग किया गया।
इस अवसर पर मा मंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि संस्कृत कई भाषाओं की जननी है तथा इससे न केवल हमें ज्ञान मिलता है बल्कि हमें अपनी परम्परा एवं संस्कृति को बनाये रखने में मदद भी मिलती है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड ज्ञानी पुरूषों, विद्वानों, तपस्वियों, मनीषीयों आदि कर्मस्थली व जन्मस्थली रही है तथा इन सभी के प्रयास से संस्कृत भाषा का विकास, भाषा का प्रचार-प्रसार एवं सम्पूर्ण उत्तराखण्ड देवभूमि के नाम से सुशोभित है जिसको संस्कृत चरितार्थ करती है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड अकेला ऐसा राज्य है, जिसने संस्कृत के उत्थान हेतु अथक प्रयास किये है तथा इसके विकास के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड मे संस्कृत को द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा प्राप्त है तथा संस्कृत के साथ-2 हमारी संस्कृति भी जुड़ी रहती है, इसके अतिरिक्त संस्कृत जितनी देखने में कठिन प्रतीत होती है उससे अधिक इसका अध्ययन करने पर यह सर्वग्राही व आसान प्रतीत होती है।
इस अवसर पर अपर सचिव उत्तराखण्ड शासन संस्कृत शिक्षा विभाग विनोद प्रसाद रतूड़ी ने कहा कि उत्तराखण्ड ने 2003 में संस्कृत अकादमी, 2005 में संस्कृत विश्वविद्यालय तथा 2007 में संस्कृत विभाग की स्थापना की गयी है। उन्होने कहा कि इसके अतिरिक्त संस्कृत निदेशालय तथा संस्कृत शिक्षा परिषद की भी स्थापना की जा चुकी है तथा वर्तमान में 96 संस्कृत महाविद्यालय एवं विद्यालय संचालित हो रहे हैं, इसके अतिरिक्त 2 संस्कृत ग्राम निर्माण पर कार्य चल रहा है। उन्होने कहा कि संस्कृत का भला केवल अनुदान प्राप्त करने से नही वरन जमीनी स्तर पर उचित शिक्षण-प्रशिक्षण तथा पर्याप्त कुशल शिक्षकों को उपलब्ध कराना होगा।
इस अवसर पर डाॅ सुरेश सरण बहुगुणा प्राचार्य स्वामी सच्चिदानन्द वेद भवन संस्कृत महाविद्यालय रूद्रप्रयाग, श्रीमती सुरमिश्रा धुलिया संस्कृत विदुषी देहरादून, डाॅ सूर्य मोहन भट्ट प्राचार्य शिवनाथ संस्कृत महाविद्यालय देहरादून, डाॅ वाचस्पति मैठाणी, डाॅ हरीश चन्द्र गुरूरानी ने भी अपने विचार व्यक्त किये तथा इस अवसर पर संस्कृत महाविद्यालयों/विद्यालयों के शिक्षक, छात्र/छात्राएं उपस्थित थे।