नई दिल्ली: संगीत ब्रम्हांड को आत्म देता है, मस्तिष्क को पंख लगाता है, कल्पना को उड़ान देता है और सभी को जीवन देता है। यह आकलन कम है कि संगीत फिल्म के सम्पूर्ण सौंदर्य में सशक्त भूमिका निभाता है। 50वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में आज अपनी फिल्मों में संगीत की शक्ति का उपयोग करने वाले निर्देशकों के समूह ने संवाददाता सम्मेलन में हिस्सा लिया। फिल्म ‘द सेवन लास्ट वर्डस’ के कलाकार और सहकर्मी तथा बेल्जियम की फिल्म ‘क्लिओ’ की निर्देशक संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुईं।
‘द सेवन लास्ट वर्डस’ के सात निर्देशकों में एक श्री कावेह नबातियन ने कहा कि यह फिल्म फ्रेंज जोसेफ हेडेन की कृति ‘सेवन लास्ट वर्डस’ पर आधारित है। यद्यपि इसका आधार धार्मिक विषय है लेकिन नैतिकता से जूझ रहे व्यक्ति का विचार इसे दिलचस्प सार्वभौमिक विषय बनाता है। मैंने इस फिल्म को शुरू में स्वयं निर्देशित करने को सोचा लेकिन ऐसा करने से एक व्यक्ति का परिप्रेक्ष्य आता। इसलिए एक से अधिक परिप्रेक्ष्य का होना महत्वपूर्ण था।
श्री नबातियन ने फिल्म में संगीत की भूमिका के बारे में कहा कि संगीत ही इस फिल्म को एक सूत्र में बांधता है। फिल्म में संगीत मृत्यु, पुनर्जन्म और परित्याग जैसे विषयों से गंभीरता से निपटता है। यद्यपि हेडेन ने इसकी रचना 18वीं शताब्दी में की लेकिन संगीत आज भी बोलता है।
फिल्म निर्माण पर अपना अनुभव साझा करते हुए ‘द सेवन लास्ट वर्डस’ के सह-निर्देश श्री जुआन एंड्रेस एरेंगो ने कहा कि फिल्म को शूट करने में ताजगी महसूस हुई, क्योंकि इसमें उन्हें अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
‘क्लिओ’ फिल्म की निर्देशक सुश्री ईवा कूल ने कहा कि यह फिल्म एक जवान लड़की की फिल्म है, जो कार दुर्घटना में अपने माता-पिता को खो देती है और संगीत के सहारे अपने दुख से निजात पाती है। इस फिल्म में आशा की बात की गई है। उन्होंने कहा कि यह सार्वभौमिक फिल्म है, जिस पर सब कोई भरोसा कर सकता है। यह व्यक्तिगत फिल्म भी है, क्योंकि मैंने कार दुर्घटना में किसी को खोया था। उन्होंने संगीत की भूमिका के बारे में रूसी संगीतकार रैखमेनीनॉफ ने इस फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।