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राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से नमामि गंगे कार्यक्रम के जी-शासन के बारे में विचार-विमर्श किया

देश-विदेश

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने नई दिल्ली में विश्व जीआईएस दिवस 2018 के अवसर पर भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से नमामि गंगे कार्यक्रम के जी-शासन के बारे में एक विचार-विमर्श सत्र का आयोजन किया। इस सत्र का उद्देश्य नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत चलाई जा रही विभिन्न गतिविधियों की निगरानी और प्रबंधन के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के उपयोग और अनुप्रयोग पर जानकारी साझा करना और गंगा बेसिन के संदर्भ में इस प्रौद्योगिकी के वर्तमान उपयोग के बारे में जानकारी देना था। इस विचार-विमर्श सत्र में चर्चा के लिए निर्णय-निर्माता, टेक्टोक्रेट और कार्यान्वयन एजेंसियां एक मंच पर आए।

इस अवसर जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव श्री यूपी सिंह ने कहा कि जल क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती विश्वसनीय डाटा की कमी है। भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी नदी की सफाई और संरक्षण कार्यक्रमों के बारे में बेहतर निगरानी योजना और फीड बैक के लिए नदी बेसिन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा सकती है। भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) प्रौद्योगिकी का नदी बेसिन प्रबंधन में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। नमामि गंगे कार्यक्रम के अनुसंधान और साक्ष्य आधारित निर्णय लेने के कार्य को उच्च प्राथमिकता दी गई है। इसमें भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी सहित नई प्रौद्योगिकी के उपयोग को विशेष स्थान दिया गया है। एनएमसीजी पहले ही भूस्थानिक प्रौद्योगिकी पर आधारित अनेक अनुसंधान परियोजनाएं चला रहा है।

एनएमसीजी के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा ने कहा कि जीआईएस प्रौद्योगिकी के उपयोग से गंगा नदी बेसिन के बारे में हमारी जमीनी स्तर की समझ में सुधार आया है और हम साक्ष्य आधारित नीतियों को शामिल करने और परियोजनाओं का विकास करने में समर्थ हुए हैं। इनसे स्थिति में काफी बदलाव आ रहा है। अपनी असीम क्षमता के कारण गंगा नदी में प्रदूषण को प्रभावी रूप से रोकने के उद्देश्य को प्राप्त करने में जीआईएस मैपिंग एनएमसीजी में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। एनएमसीजी ने जून, 2015 में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के उपयोग के बारे में नेशनल रिमोट सेन्सिंग सेंटर (एनआरएससी) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इन्होंने भुवन गंगा जियो-पोर्टल और भुवन गंगा मोबाइल एप विकसित किया है।

इस अवसर पर नेशनल रिमोट सेन्सिंग सेंटर (एनआरएससी) के निदेशक श्री शांतनु चौधरी ने कहा कि भुवन गंगा मोबाइल एप गंगा नदी के जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने और उसकी रिपोर्ट देने के लिए उपयोगकर्ता-सहायक एप है। इस एप को भुवन गंगा वेब पोर्टल के साथ-साथ गुगल प्ले स्टोर से भी डाउनलोड किया जा सकता है। भारत के सर्वेक्षक महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार वीएसएम ने बताय कि कैमरा लगे ड्रोन और वाहनों में कुम्भ मेला क्षेत्र के समग्र नयनाभिराम दृश्यों के फोटो खींचे हैं। जिससे गंगा नदी में गिरने वाले प्रदूषित नालों की पहचान करने में मदद मिली है। उन्होंने नागरिकों की सहायता से प्रदूषण की स्थिति सुधारने के लिए सहयोग  मोबाइल एप का भी जिक्र किया। एनएमसीजी ने डिजीटल एलिवेशन मॉडल तैयार करके उच्च रिज्योलूशन में गंगा बेसिन की मैपिंग के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके गंगा संरक्षण के कार्यों में मदद के लिए सर्वे ऑफ इंडिया के साथ सहयोग किया है। आईआईटी कानपुर को रोना अभिलेखीय इमेजनरी का उपयोग करके अतीत की गंगा के पुनर्गठन की एक परियोजना पर कार्य कर रहा है। सर्वे ऑफ इंडिया गंगा नदी की मुख्यधारा के साथ-साथ एक कोरिडोर के लिए एयर बोर्न प्लेट फॉर्म पर उचित सेंसरों का उपयोग करके डिजीटल एलिवेशन मॉडल/डिजीटल टेरेन मॉडल तैयार करने की एक अन्य परियोजना पर भी कार्य कर रहा है।

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