नई दिल्ली: राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ने प्रसिद्ध चित्रकार और कलाकार राजा रवि वर्मा को उनकी 172वीं जयंती पर एक वर्चुअल टूर के माध्यम से श्रद्धांजलि दी है। नई दिल्ली के एनजीएमए के संरक्षित संग्रह में उनकी कलाकृतियों के संपूर्ण संग्रह का प्रदर्शन किया गया है। लोग उनके इस संग्रह को देखने के लिए वर्चुअल टूर हेतु इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं: http://www.ngmaindia.gov.in/virtual-tour-of-raja-ravi-varma.asp
राजा रवि वर्मा का जन्म केरल के एक कुलीन परिवार में हुआ था। राजा रवि वर्मा काफी हद तक यूरोपीय शैली के एक स्व-प्रशिशक्षित चित्रकार थे। लेकिन यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि राजा रवि वर्मा तैल चित्रण में वरदहस्त थे और उन्होंने यूरोपीय प्रकृतिवाद की शैली के साथ एक बेजोड़ सामजस्य स्थापित किया था। हालांकि राजा रवि वर्मा भारतीय चित्रकला परंपरा और उभरते यूरोपीय अकादमिक प्रकृतिवाद के कलादीर्घा चित्रकारों के बीच एक परिवर्तनकालिक अवस्था के चित्रकार थे पर उन्होंने दोनों परंपराओं के सौंदर्य सिद्धांतों को अपनी शैली में समाहित किया था। उन्होंने भारतीय कल्पनाओं को चित्र के माध्यम से साकार रूप देते हुए हिंदू पौराणिक गाथाओं को चित्रित किया जो उनके समय के समाज को प्रतिबिंबित करती हैं। कला इतिहासकारों के अनुसार, राजा रवि वर्मा के अद्भुद ऐतिहासिक चित्रों ने दादासाहेब फाल्के और बाबूराव पेंटर जैसे भारतीय सिनेमा के पथ-प्रदर्शकों को भी प्रभावित किया।
राजा रवि वर्मा ने एक चित्रकार के रूप में ऐतिहासिक चित्रकला, महिलाओं पर चित्रकारी के साथ-साथ अन्य कई शैलियों को अपनाने हुए उत्कृष्ट चित्रकारी का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपनी चित्रकारी को एक नया आयाम देने के लिए व्यापक रूप से भारत की यात्रा की। उन्होंने जर्मन तकनीक के साथ एक प्रेस की स्थापना की, ताकि व्यापक स्तर पर मांग को पूरा करने के लिए सस्ते ऑलोग्राफ बनाए जा सकें। उनकी चित्रकारी इतनी सुसंगत है कि यह आज भी लोकप्रिय दृश्य संस्कृति पर अपनी गहरी छाप छोड़ती है। उनके यथार्थवादी और धार्मिक एवं पौराणिक आकृतियों के सजीव चित्रण ने देश को मंत्रमुग्ध कर दिया। रवि वर्मा की प्रतिकृतियों ने चित्रकला को उत्कृष्ठता की श्रेणी पर पहुँचाया; सही मायने में वह चित्रकार होने के साथ-साथ अपनी समय-सीमा से परे के एक दूरदर्शी कवि और विद्वान भी थे।