नई दिल्ली: जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) के स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत ग्रामीण भारत के 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 5.6 लाख से अधिक गांवों और 622 जिलों ने स्वयं को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया है। जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) ने नई दिल्ली में 12-13 जुलाई, 2019 को ओडीएफ प्लस और जल संरक्षण पर दो दिवसीय राष्ट्रीय योजना कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्वच्छता प्रभारी सचिवों, मिशन निदेशकों और राज्य स्तर पर अन्य प्रमुख अधिकारियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर अपने संबोधन में, जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री रतनलाल कटारिया ने कहा कि 2014 में, प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) का शुभारंभ किया था और अब अक्टूबर 2019 में लोगों के योगदान के कारण हम इस अभियान की 100% सफलता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि एसबीएम की तरह ही लोगों के सहयोग से जल शक्ति अभियान को आगे बढ़ाते हुए एक सफल जन-जागरण बनाने का लक्ष्य है।
इसके पश्चात मंत्री महोदय ने ओडीएफ-प्लस गतिविधियों को संचालित करने और राज्यों एवं जिलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए ठोस तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) डैशबोर्ड, ओडीएफ-प्लस एडवाइजरी और ओडीएफ-प्लस एवं स्वच्छ ग्राम दर्पण मोबाइल एप्लिकेशन का शुभारंभ किया।
कार्यशाला के आयोजन के दौरान पांच तकनीकी सत्रों- ग्रामीण क्षेत्रों में बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रे जल प्रबंधन, ग्रामीण क्षेत्र में मल अपशिष्ट प्रबंधन (एफएसएम) और जल संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन पर गहन विचार-विमर्श किया गया। कार्यशाला के अंतर्गत दिल्ली के आईसीएआर परिसर में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें ओडीएफ-प्लस के तहत की गईं विभिन्न पहलों का प्रदर्शन किया गया और जल संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालने के लिए प्रतिभागियों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
जल शक्ति मंत्रालय के डीडीडब्ल्यूएस के सचिव श्री परमेस्वरन अय्यर ने चार महत्वपूर्ण विषयों जैसे जल संरक्षण, स्रोत स्थिरता, पाइप जलापूर्ति और ग्रे जल प्रबंधन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ओडीएफ के माध्यम से इस दिशा में निरंतर प्रगति बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, ताकि हम सब इस क्षेत्र में संयुक्त रूप से काम करते हुए आगे बढ़ें। उन्होंने कहा कि हम ठोस तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर व्यापक स्तर पर ध्यान देंगे। उन्होंने कहा कि यह उन सभी लोगों की वजह से संभव हुआ है, जो एसबीएम को एक जन आन्दोलन बनाने के लिए आगे आए और अब हम इस दिशा में काफी प्रगति कर चुके हैं।
जल साक्षरता फाउंडेशन के संस्थापक और निदेशक श्री अय्यप्पा मसगी ने भी वर्षा जल संचयन, संग्रह और जल संरक्षण के विभिन्न तरीकों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। उन्होंने ग्रे जल प्रबंधन के महत्व पर चर्चा करते हुए इसे जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचयन के रूप में प्रभावी कारक बताया। उन्होंने वर्षा जल संचयन को सुनिश्चित करने के मामले में कर्नाटक का एक उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसे अन्य राज्यों में भी पानी के संरक्षण और राष्ट्र के बेहतर भविष्य को सुरक्षित करने के लिए दोहराया जा सकता है।
कार्यशाला में इस क्षेत्र से जुड़े प्रतिष्ठित विशेषज्ञों और प्रमुख हितधारकों ने भी अपनी प्रस्तुति दी और तकनीकी सत्रों के दौरान विचार-विमर्श किया गया। कार्यशाला में विश्व बैंक के एलडब्ल्यूएम विशेषज्ञ श्री श्रीकांत नवरेकर, मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास उपायुक्त डॉ सुधीर जैन, एनईईआरआई, नागपुर के प्रधान वैज्ञानिक, डॉ राजेश बिनिवाले, जम्मू और कश्मीर के लेह जिले की उपायुक्त सुश्री अवनी लवासा, आईएआरआई, आईसीएआर की प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ नीलम पटेल, केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीडब्ल्यूजीबी) के निदेशक श्री संजय मारवाह और ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग के संयुक्त सचिव (जल-संभर प्रबंधन) श्री उमाकांत भी उपस्थित थे।