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‘राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017’ अगले 10 वर्षों तक समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र के विकास को दिशा प्रदान करेगी: राधामोहन सिंह

देश-विदेश

नई दिल्ली: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की “समुद्री मत्स्य पालन – भारत में मैरिकल्चर” विषय पर 02 जुलाई, 2018 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में आयोजित अंतर-सत्र बैठक में माननीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने लोगों को सम्बोधित किया।

  • कृषि मंत्रालय ने राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति2017” को अधिसूचित कर दिया हैजो देश में समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र के विकास को अगले 10 वर्षों तक दिशा प्रदान करेगी।
  • डीप-सी फिशिंग नौका’ के लिए पारंपरिक मछुआरों के स्वयं सहायता समूहों/संगठनों को प्रति नौका 50 प्रतिशत अर्थात 40 लाख रुपये तक की केन्द्रीय सहायता दी जा रही है।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 200 मीटर की गहराई तक मौजूद निकटवर्ती समुद्री मत्स्य संसाधन का अधिकांशतः पूर्ण-उपयोग या अधि-दोहन हो रहा हैजो पारंपरिक मछुआरों की आजीविका पर गंभीर संकट को दर्शाता है।

    केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने देश की नई “राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017” को अधिसूचित कर दिया है, जो देश में समुद्री मात्स्यिकी के विकास को अगले 10 वर्षों तक दिशा प्रदान करेगी। कृषि मंत्री ने कृषि मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की “समुद्री मत्स्य पालन – भारत में मैरिकल्चर” विषय पर 02 जुलाई, 2018 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में आयोजित अंतर-सत्र बैठक में यह बात कही। इस अवसर पर कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, श्रीमती कृष्णा राज, श्री परषोत्तम रुपाला, तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल  और परामर्शदात्री समिति के सदस्य भी मौजूद थे। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा तमिलनाडु के रामेश्वरम में आयोजित इस बैठक में “समुद्री मत्स्य पालन – भारत में मैरिकल्चर” से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों पर चिंतन और विचार–विमर्श किया गया।

कृषि मंत्री ने इस मौके पर जानकारी दी कि भारत सरकार ने ‘नीली-क्रांति’ के अंतर्गत ‘डीप-सी फिशिंग में सहायता’ नामक एक उप-घटक शामिल किया है। इस योजना के तहत ‘डीप-सी फिशिंग नौका’ हेतु पारंपरिक मछुआरों के स्वयं सहायता समूहों/संगठनों आदि को प्रति नौका 50 प्रतिशत अर्थात 40 लाख रुपये तक की केन्द्रीय सहायता दी जा रही है। इस योजना के क्रियान्वयन के लिए पहले वर्ष (2017-18) में ही 312 करोड़ रुपये की केन्द्रीय राशि जारी की जा चुकी है, जिससे देश के पारंपरिक मछुआरों को फायदा हो रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत में मछली उत्पादन लगभग 11.4 मिलियन टन है। इसमें से 68% मछली उत्पादन अंतर्देशीय मात्स्यिकी क्षेत्र से आता है, तथा शेष 32% उत्पादन समुद्री क्षेत्र में होता है। यह उम्मीद की जाती है कि वर्ष 2020 तक देश में 11.4 मिलियन टन के उत्पादन के मुकाबले 15 मिलियन टन मछली की आवश्यकता होगी और 3.62 मिलियन टन के इस अंतर को अंतर्देशीय एक्वाकल्चर तथा ‘मैरीकल्चर’ के माध्यम से पाटे जाने की उम्मीद है।

     कृषि मंत्री के मुताबिक वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 200 मीटर की गहराई तक मौजूद निकटवर्ती समुद्री मत्स्य संसाधन का अधिकांशतः पूर्ण-उपयोग या अधि-दोहन हो रहा है, जो पारंपरिक मछुआरों की आजीविका पर गंभीर संकट को दर्शाता है। इसी के दृष्टिगत, मंत्रालय द्वारा “समुद्री मात्स्यिकी” विषय पर चर्चा के लिए सभी तटीय राज्यों के मत्स्य-मंत्रियों के साथ हाल ही में 17 मई 2018 को एक बैठक आयोजित की गयी थी। इस बैठक में तटवर्ती राज्यों से समुद्री मत्स्यन में जिम्मेदारी-पूर्ण और धारणीय मत्स्यन की दिशा में आवश्यक सुधारों को अपनाने का आह्वान किया गया था।

उन्होंने कहा कि निकटवर्ती क्षेत्र से अतिरिक्त मत्स्य-उत्पादन की नगण्‍य सम्भावनाओं को देखते हुए ही भारत सरकार ने ‘समुद्री मत्स्य पालन’ को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है एवं ‘नीली-क्रांति’ के अंतर्गत ‘मैरिकल्चर’ से सम्बंधित घटकों को शामिल किया गया है। मैरिकल्चर खुले समुद्र में एक प्रकार की पर्यावरण- अनुकूल गतिविधि है, जिसके तहत खुले समुद्र में जहां लहरों का प्रभाव कम होता है, वहां ‘केज कल्चर’ से समुद्री-मछली के पालन का अभ्यास किया जाता है। पिंजरों में पाली जाने वाली मछलियां उच्च मूल्य वाली होती हैं, जिनके निर्यात की भी भारी मांग है।

मंत्रालय के तहत आने वाले ‘राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड’ (एनएफडीबी), हैदराबाद ने भारत के लगभग सभी समुद्री राज्यों के तटों के साथ 14 स्थानों में खुले-समुद्री ‘केज-कल्चर’ पर प्रौद्योगिकी उन्नयन के प्रदर्शन हेतु पायलट-परियोजना के आधार पर केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) को वर्ष 2011 में 114.73 लाख रुपये जारी किये गये थे। पायलट परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन और नतीजों के आधार पर ही देश भर में खुले-समुद्री ‘केज-कल्चर’ की स्थापना की सिफारिश की गई थी। कृषि मंत्री ने बताया कि डीएडीएफ ने समुद्री क्षेत्र से उत्पादन बढ़ाने के मुख्य उद्देश्य से ‘मिशन मैरिकल्चर-2022’ दस्तावेज तैयार किया है। इसके अंतर्गत सभी समुद्री राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मछुआरों की सक्रिय सहभागिता के साथ ‘खुले-समुद्री केज कल्चर’ गतिविधि को प्राथमिकता के आधार पर बढ़ावा देना प्रस्तावित है।

माननीय कृषि मंत्री ने यह भी बताया कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के संकल्प को पूरा करने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय 1 जून, 2018 से 31 जुलाई, 2018 तक देश भर में कृषि कल्याण अभियान चला रहा है, ताकि किसान अपनी खेती करने के तरीके में सुधार ला सकें और इससे उनकी आय बढ़ाने में सहायता प्रदान की जा सके।

कृषि मंत्री ने यह भी जानकारी दी कि नीति आयोग एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा देश के सभी आकांक्षी जिलों में 1000 से अधिक आबादी वाले चयनित 25 गांवों में कृषि कल्याण अभियान चलाया जा रहा है। ऐसे जिले जिनमें गांवों की संख्या (1000 से अधिक आबादी वाले) 25 से कम है, वहां सभी गांवों को कवर किया जा रहा है।

इसी क्रम में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने आज अर्थात 2 जुलाई, 2018 को दो आकांक्षी जिलों रामनाथपुरम और विरुधुनगर में चल रहे कृषि कल्याण अभियान की प्रगति की समीक्षा की।

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