लखनऊ: उत्तर प्रदेश जालौन में कुदरती कहर से फसलों की बर्बादी के बाद शुरू हुए किसानों की खुदकुशी के मामलों से पूरा जिला थर्रा गया। जिले के विभिन्न भागों में दो और किसानों ने खुद ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
हालांकि प्रशासन किसानों के मरने के दूसरे कारण बताकर इन घटनाओं पर लीपापोती करने में लग गया है। बेमौसम बारिश और ओला गिरने से खड़ी फसलों के नष्ट हो जाने के कारण किसानों को अपनी आंखों के सामने सारी दौलत लुट जाने जैसे सदमे से दो चार होना पड़ रहा है। इस अवसाद में जिला किसानों की कब्रगाह के रूप में चर्चित हो उठा है।
कालपी तहसील के ग्राम चमारी में एक युवा किसान ने ट्रेन से कटकर खुदकुशी कर ली, तीन भाईयों के संयुक्त परिवार में 8 एकड़ जमीन थी। वहीं एक किसान ने लगभग 20 बीघा खेती दूसरों की नगद में जोत ली थी, जिसके लिए इधर- उधर से एक लाख रुपए का कर्जा भी ले रखा था।
इस वजह से कुदरती कहर में फसलों के विनाश ने उसे और ज्यादा बदहवास कर दिया और वह खुदकुशी जैसा फैसला कर बैठा।
उरई कोतवाली क्षेत्र के बम्हौरी गांव में 50 वर्षीय गोटीराम ने भी फसल के नुकसान की वजह से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मृतक के पास खुद के नाम तो एक भी बीघा जमीन नहीं थी लेकिन वह दूसरों की जमीन जोत लेता था।
जिलाधिकारी रामगणेश ने आत्महत्याओं पर दुख तो जताया, लेकिन कहा कि इन्हें किसानों की आत्महत्या बताकर तूल न दिया जाए।
उनका दावा है कि चमारी में ओले ही नहीं पड़े। दूसरे किसी कारण की वजह से आत्महत्या की हो जबकि बम्हौरी के गोटीराम के लिए उन्होंने कहा कि वह किसान ही नहीं है।