स्वास्थ्य सेवा की भविष्य-उन्मुख प्रणाली और स्वास्थ्य को लेकर गांधीवादी विचारों की हर समय प्रासंगिकता के रूप में प्राकृतिक चिकित्सा(नेचुरोपैथी) की बढ़ती धारणा, वे दो विषय थे जो प्राकृतिक चिकित्सा दिवस, 2020 के उपलक्ष्य में आयोजित गतिविधियों में छाए रहे। वर्चुअल प्लेटफॉर्म के जरिए आयोजित किए गए कार्यक्रम में केंद्रीय आयुष मंत्रीश्री श्रीपद येसो नाइक, आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा, यूजीसी के उपाध्यक्षडॉ. भूषणपटवर्धन और अन्य प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे।
देश में हर साल 18 नवंबर को प्राकृतिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है। इस दिन महात्मा गांधी नेचर क्योर फाउंडेशन ट्रस्ट के आजीवन सदस्य बने थे और इससे जुड़े दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया था। गांधीजी को भारत में नेचुरोपैथी का संस्थापक माना जाता है, क्योंकि यूरोप में जन्म लेने वाली यह चिकित्सा पद्धतिकाफी हद तक उनके प्रयासों से हीभारत में लोकप्रिय हुई।
सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन योगा एंड नेचुरोपैथी (सीसीआरवाईएन) ने एक ई-इवेंट के जरिए, तीसरे प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय समारोह का उद्घाटन किया। कार्यक्रम में अच्छी उपस्थिति दर्ज की गयी। उद्घाटन समारोह में दिए अपने भाषण मेंश्री नाइक ने स्वास्थ्य और राष्ट्रीय मुख्यधारा में इसके महत्व पर महात्मा गांधी की अवधारणाओं को याद किया। उन्होंने कहा कि बापू के शब्द आज भी, खासतौर पर कोविड-19 के समय में प्रासंगिक हैं, जहां व्यक्तिगत स्वच्छता, स्वच्छता, आहार और जीवनशैली इसकी रोकथाम के लिए बेहद महत्व रखते हैं। मंत्री ने कहा कि बड़ी संख्या में रोगी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र जा रहे हैं और इससे सीसीआरवाईएन को इन संस्थानों के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिला है। उन्होंने देश भर के प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे एम्स और पीजीआई में माइंड-बॉडी मेडिसिन सेंटर शुरू करने के सीसीआरवाईएन के प्रयासों का भी संज्ञान किया। आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचाने अपने भाषण में नेचुरोपैथी को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय के मौजूदा और आगामी प्रयासों का उल्लेख किया, जिसमें एक नियामक तंत्र लागू करने और उच्च गुणवत्ता वाले सहकारी संस्थानों की स्थापना करने के प्रयास शामिल हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरोपैथी (एनआईएन), पुणे ने एक महत्वपूर्ण ई-इवेंट का भी आयोजन किया। संस्थानने देश भर के योग और प्राकृतिक चिकित्सा महाविद्यालयों, प्रमुख नेचुरोपैथी अस्पतालों और क्लीनिक के सहयोग से तीन दिन के कार्यक्रमों की एक श्रृंखला के आयोजन से महामारी के संदर्भ में स्वास्थ्य ऊर्जा की अवधारणा को प्रोत्साहित किया। इन आयोजनों के लिए चुने गए विषयों में ‘कोविड-19 के खिलाफ जन आंदोलन’, ‘प्राकृतिक चिकित्सा के जरिए प्रतिरक्षण एवं स्वास्थ्य ऊर्जा के लिए आयुष’ शामिल थे।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरोपैथी ने दो अक्टूबर, 2020 से शुरू हुए 48 दिनों में 40 वेबिनार की एक महाश्रृंखला का आयोजन किया, जिसका समापन प्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर हुआ। वेबिनार का उद्देश्य स्वास्थ्य और स्वास्थ्य निर्धारकों के विभिन्न पहलुओं से जुड़े महात्मा गांधी के ज्ञान को लेकर समझ के बारे मेंस्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को जागरुक करना था। इस वेबिनार का आयोजन विभिन्न गांधीवादी संस्थानों जैसे गांधी रिसर्च फाउंडेशन सेंटर फॉर गांधीयन स्टडीज, गांधी भवन, गांधी स्मारक निधि, आदि के सहयोग से किया गया था। इस महाश्रृंखला में दुनिया भर के प्रसिद्ध वक्ताओं ने व्याख्यान दिए।
प्राकृतिक चिकित्सा और वैश्विक स्तर पर नए अनुयायियों को खोजने में स्वास्थ्य के विषय में स्व-दायित्व पर ध्यान दिया गया। इस अवसर पर विभिन्न वक्ताओं ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के जरिए अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के साथ सहयोग करने को लेकर नेचुरोपैथी के लिए बढ़ते अवसरों पर चर्चा की।
आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने इस अवसर पर देश भर के सभी प्राकृतिक चिकित्सकों को अपनी शुभकामनाएं दीं और नवोन्मेष कार्य करने तथा अन्य आयुष प्रणालियों के साथ प्राकृतिक चिकित्सा के एकीकरण की संभावना का पता लगाने के लिएआगामी निसर्ग ग्राम परियोजना के महत्व पर जोर दिया।
आयुष मंत्री श्री श्रीपद येसो नाइक एक वीडियो संदेश के जरिए ई-इवेंट में शामिल हुए और पिछले साल किए गए एनआईएन के प्रयासों की सराहना की, जिसमें पुणे के गोहेबुद्रुक में शुरू हुआ उनका ट्राइबल प्रोजेक्ट शामिल है। उन्होंने कहा कि देश के सुदूर इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य और लोगों के सर्वांगीण विकास की व्यवस्था के लिए प्राकृतिक चिकित्सा की क्षमता के दोहन की खातिर इस तरह की पहलों की जरूरत है।
यूजीसी के उपाध्यक्ष डॉ. भूषण पटवर्धन ने देश के प्राकृतिक चिकित्सकों से एक बड़े सपने के साथ नेचुरोपैथी के भारत मॉडल का निर्माण करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण से मदद मिलेगी। भविष्य पैथोलॉजी नहीं, बल्कि फिजियोलॉजी का युग होगा। दवा के माध्यम से स्वास्थ्य दुरूह है और आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य, प्राकृतिक चिकित्सा पर ज्यादा निर्भर होगा। लोगों की मानसिकता में व्यापक बदलाव के बिना, धरती दिन-ब-दिन और बीमार होती जाएगी। इसलिए, नेचुरोपैथी उपचार के एक नए मॉडल की खोज और अन्य आधुनिक विज्ञान के साथ इसका एकीकरण करना समय की मांग है।