नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है. नौ दिन के नवरात्रों में कालरात्रि की पूजा का बहुत बड़ा महत्व होता है.
जानिए क्या है कालरात्रि का अर्थ
कालरात्रि का अर्थ है काल की रात्रि अर्थात मृत्यु का अंत. शास्त्र के अनुसार देवी का रंग काजल की तरह है. मां कालरात्रि के शरीर से बिजली की तरह किरणें निकलती हैं.
चार भुजाओं वाली कालरात्रि एक हाथ में शस्त्र, गले में माला और हवा में केश को बिखेर कर अपना भयावह रूप दिखाती हैं और एक हाथ से भक्तों को आर्शिवाद देती हैं.
कैसे करें मां कालरात्रि की पूजा
मां कालरात्रि की पूजा नवरात्र के सातवें दिन की जाती है. इस दिन माता को नीले वस्त्र चढ़ाएं और तिल के तेल का दीपक माता के आगे जलाएं. धूप जलाकर माता को काजल का तिलक करें.
मां को नीले फूल भी चढ़ाएं. माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि मां कालरात्रि को मीठे में गुड़ पसंद है. उसके बाद कालरात्रि मंत्र का सच्चे मन से जाप करें.
मां कालरात्रि मंत्र का जाप
ॐ कालरात्र्यै देव्यै: नमः
पूजा के लिए जरूरी सामग्री
तिल का तेल, काजल, नीला वस्त्र, दीपक, नीले फूल, गुड़ धूप आदि
जानिए कैसे मां बनी कालरात्रि मां
कालरात्रि मां को लेकर प्राचीन समय से ही एक कथा प्रचलित है. कथा में बताया गया है कि दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज तीनों लोकों में अत्याचार कर रहे थे.
तब सभी देव भगवान शिव के पास इस परेशानी का समाधान कराने के लिए पहुंचे. भगवान शिव ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर भक्तों की रक्षा करने का आदेश दिया.
उसके बाद मां पावर्ती ने दैत्यों का वध कर भक्तों की रक्षा की पर जैसे ही देवी ने रक्तबीज को मारा उसके खून से कई रक्तबीजों ने जन्म ले लिया. इसके बाद मां ने रक्तबीज को मारा तो उसका खून अपने मुंह में भर लिया और सबके गले काटते चली गई. अंत में उन्होनें रक्तबीज का वध किया. तब से मां को कालरात्री के नाम से जाना जाता है.