एनडीआरआई के निदेशक डा. चौहान की गिनती देश के शीर्ष पशु विज्ञानियों में होती है। इससे पहले, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा के निदेशक रहे डा. मनमोहन सिंह चैहान भारत में जानवरों की क्लोनिंग के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं। उन्हें कृषि और दुग्ध पालन के क्षेत्र में इनोवेटिव पहल के लिए जाना जाता है। राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान ने देश के प्रमुख डेरी अनुसंधान संस्थान के रूप में पिछले पांच दशकों से डेरी उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रबंधन और मानव संसाधन विकास के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण काम कर रहा है और इनमें इसको विशेषज्ञता हासिल हुई है।
डा. मनमोहन सिंह चौहान ने एक बार फिर देवभूमि को गौरवान्वित किया है। उनकी अगुवाई में लगातार दूसरी बार करनाल स्थित राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान – एनडीआरआई को देश में सबसे बेहतर कृषि संस्थान आंका गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – आईसीएआर ने देश के सर्वश्रेष्ठ कृषि संस्थानों की रैंकिंग तैयार की है। उत्तराखंड के पंतनगर स्थित जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को देश में चैथा स्थान मिला है।
आईसीएआर की साल 2020 की रैंकिंग में एनडीआरआई के बाद दूसरे पायदान पर आईसीएआर – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली को रखा गया है। तीसरा स्थान भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर, बरेली, चैथा स्थान जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर और पांचवां स्थान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना को मिला है।
डा. चौहान को कृषि और दुग्ध पालन के क्षेत्र में इनोवेटिव पहल के लिए जाना जाता है। उन्होंने एनडीआरआई में निदेशक बनने से पहले शुरुआती दौर में प्रधान वैज्ञानिक (पशु जैव प्रौद्योगिकी) के पद पर काम किया। गाय, भैंस, याक एवं बकरी से जुड़े अनुसंधान के क्षेत्र में उन्हें काफी ख्याति हासिल है। उन्होंने अनुसंधान के 32 वर्षों में पशुधन कार्यकुशलता के लिए अनेक क्षमतावान जनन जैव प्रौद्योगिकी विकसित की हैं।
हाल ही में डा. चौहान को भारतीय विज्ञान अकादमी की फेलोशिप मिली है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि अनुसंधान क्षेत्र में 1935 से अब तक केवल दस वैज्ञानिकों को यह स्थान प्राप्त हुआ है। एनडीआरआई से डा. चैहान पहले वैज्ञानिक हैं, जिन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। यह फेलोशिप भारत में वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए दी जाती है, जिसमें राष्ट्रीय कल्याण की समस्याओं के व्यावहारिक अनुप्रयोग भी शामिल हैं। डा. चौहान नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के फेलो, नेशनल एकेडमी ऑफ डेयरी साइंसेज के फेलो व सोसाइटी ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन के फेलो हैं।