नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि प्रत्येक नागरिक को बदलाव का माध्यम बनना चाहिए और एक अधिक सशक्त, संवेदशील और समांजस्यपूर्ण समाज के निर्माण में योगदान करना चाहिए।
हैदराबाद में आज बद्रीविशाल पन्नालाल पिट्टी स्मृति व्याख्यान के अवसर पर श्री नायडू ने कहा कि स्वर्गीय श्री बद्रीविशाल जैसे लोगों ने सामाजिक रूप से सजग नागरिक की भूमिका निभाई और दायित्व और सहभागिता के प्राचीन भारतीय दर्शन का अनुसरण किया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के भौतिकतावादी युग में लोगों की सोच बदलने के लिए श्री बद्रीविशाल पिट्टी जैसे लोगों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक को बदलाव का माध्यम बनना चाहिए और एक अधिक सशक्त, संवेदशील और समांजस्यपूर्ण समाज के निर्माण में योगदान करना चाहिए।
श्री नायडू ने कहा कि पारम्परिक भारतीय संयुक्त परिवार अपने सदस्यों के बीच दायित्व और सहभागिता के मूल्यों को प्रभावी तरीके से संरक्षित करने में हमेशा से सफल रहे है वहीं दूसरी ओर एकल परिवारों की आज के समय की भागदौड़ भरी जिदंगी, काम के बोझ से उत्पन्न होने वाला तनाव ऐसी परिवारों की कमियां बन चुका है।
उपराष्ट्रपति ने विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गई समाज सेवा के लिए बद्रीविशाल पन्नालाल पिट्टी न्यास के प्रयासों की सराहना की।
उन्होंने पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की उपलब्धता के अभाव में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बढ़ती खाई, लैंगिक भेदभाव, जातिगत बाधा, साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरवाद, क्षेत्रीयतावाद, वृद्धजनों की उपेक्षा और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को बड़ी सामाजिक चुनौतियां बताते हुए कहा कि इन कुरुतियों से निपटने के लिए प्रत्येक नागरिक को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
श्री नायडू ने कहा कि किसी भी चुनौती से प्रभावी तरीके से तभी निपटा जा सकता है जब सरकार और नागरिक समाज इस दिशा में मिलकर काम करे। उन्होंने बद्रीविशाल पिट्टी ट्रस्ट जैसे गैर सरकारी संगठनों से विभिन्न सामाजिक बुराइयों को दूर कर एक ऐसे नए और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए हर संभव प्रयास करने का आह्वान किया, जो संकीर्ण पूर्वाग्रहों, भ्रष्टाचार, अशिक्षा और गरीबी से मुक्त हो।
मानवता और परोपकार के प्राचीन भारतीय मूल्यों को पुनर्जीवित करने पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सबको मिलकर एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का प्रयास करना चाहिए, जिसमें दूसरों के हितों का ध्यान रखा जाए, दूसरों के दृष्टिकोण को पर्याप्त सम्मान मिले, वृद्धजनों की बेहतर देख-भाल हो, महिलाओं का सम्मान और उनके अधिकारों की रक्षा हो तथा लोकतांत्रिक मूल्य संरक्षित रह सकें।
सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए श्री नायडू ने कहा कि किफायती स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और कृषि को ज्यादा टिकाऊ बनाने के प्रयास सिर्फ सरकार पर नहीं छोड़े जाने चाहिए, बल्कि इच्छित परिणामों के लिए इसे जन-आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिए।
जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों तथा खान-पान की बदलती आदतों का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने इन समस्याओं से निपटने के लिए समय पर खरी उतरीं प्राचीन पद्धतियों का अनुसरण करने पर जोर दिया। उन्होंने युवाओं से कहा कि वे स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं क्योंकि एक स्वस्थ राष्ट्र ही समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।