नई दिल्लीः कौशल विकास के अंतर्गत सभी पारंपरिक कौशल को औपचारिक पहचान दिए जाने की आवश्यकता है। पारंपरिक कौशल के लिए भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए इससे राज्य और इसके लोगों का आर्थिक विकास होगा। उक्त बातें केंद्रीय कौशल विकास व उद्यमिता तथा पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहीं। ओडिशा कौशल सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री प्रधान ने कहा कि ओडिशा में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं तथा राज्य का समुद्र तट लंबा है। विदेशी निवेशकों के लिए ओडिशा प्राथमिकता की सूची में है, क्योंकि राज्य, देश के कुल कोयले उत्पादन का पांचवा हिस्सा, लौह अयस्क का चौथा हिस्सा, बाक्साइड का तीसरा हिस्सा तथा क्रोमाइट का शत प्रतिशत उत्पादन करता है। इसकी विरासत और संस्कृति समृद्ध है तथा यह हस्तशिल्प, हैंडलूम वस्त्र तथा मंदिरों के लिए विख्यात है। अब तक राज्य में कौशल विकास के लिए कई अलग-अलग प्रयास किए गए हैं। परंतु हमारा प्रयास है कि हम सभी कौशल विकास कार्यक्रमों को मिला कर एक ठोस विस्तृत और एकताबद्ध प्रयास करें।
प्रधानमंत्री के विजन “सबका साथ सबका विकास” को ध्यान में रखते हुए कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय ने भुवनेश्वर के निकट जतनी में ओडिशा कौशल सम्मेलन का आयोजन किया ताकि ओडिशा को भारत के कौशल विकास व उद्यमिता के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया जा सके। इस दो दिवसीय आयोजन में 100 से अधिक विशेषज्ञों, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों तथा कौशल विकास से जुड़े पेशेवरों ने भाग लिया तथा “राज्य में कौशल विकास के लिए चुनौतियां व अवसर” विषय पर चिंतन किया।
नाल्को, इंडियन ऑयल, रिलायंस, एसीसी, आदित्य बिरला, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जैसे संगठनों के विशेषज्ञों ने कौशल विकास के संदर्भ में राज्य की स्थानीय समस्याओं पर परिचर्चा की। पहले दिन के सत्र में राज्य में उपलब्ध चुनौतियों और अवसरों को रेखांकित किया गया।
जनसंख्या, युवाओं का अनुपात, शिक्षा का औसत, श्रमिकों की सहभागिता तथा श्रमिकों का आवागमन जैसी राज्य की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठ भूमि से विशेषज्ञों को अवगत कराया गया। ओडिशा में 631 आईटीआई हैं और इनमें सीटों की कुल संख्या 1,67,753 है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत 2016-20 तक लगभग 80 हजार लोगों को प्रशिक्षण दिया गया। इनमें से 50 प्रतिशत उम्मीदवारों को रोजगार प्राप्त हुआ। नौकरी की खोज में ओडिशा से लगभग एक लाख लोग देश के अन्य हिस्सों में पलायन कर गए। राज्य की कुल आबादी के आधे लोग 25 साल से कम उम्र के हैं। 2011-26 के दौरान कौशल अंतर लगभग 40 लाख रहने का अनुमान है। 2018-19 के दौरान रसायन, परिवहन, खुदरा व्यापार, ऊर्जा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में श्रमिकों की अधिक मांग रहने का अनुमान जताया गया है।
कौशल विकास कार्यक्रम तैयार करते समय सामाजिक-आर्थिकआयामों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। ओडिशा के कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत आदिवासी हैं। महिलाओं की जनसंख्या तथा आर्थिक विकास में उनकी सहभागिता पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। ड्राइवर का प्रशिक्षण तथा पर्यटन गाइड जैसे कौशल विकास कार्यक्रमों में सरकार के लाइसेंस की जरूरत होती है।
ओडिशा कौशल विकास प्राधिकरण के सचिव श्री सुब्रतो बागची ने कहा कि निजी क्षेत्र में शौषण अधिक होता है। निजी क्षेत्र को अपनी इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए और श्रमिकों को उनके योगदान के लिए भुगतान किया जाना चाहिए। हमें युवाओं तथा उनके माता-पिता को परामर्श देने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर श्री प्रधान ने “ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड में कौशल विकास व रोजगार” विषय पर एक अध्ययन रिपोर्ट को भी जारी किया। सेंटर फोर यूथ स्किल डवलेपमेंट (सीवाईएसडी), भुवनेश्वर के सहयोग से फंक्शनल वोकेशनल ट्रेनिंग एंड रिसर्च सोसाइटी (एफवीटीआरएस) के द्वारा यह अध्ययन किया गया था।