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पेंशन वितरण में कभी बाधा न डालें; पूर्व सैनिकों के प्रति पूर्ण सहानुभूति रखें: उपराष्ट्रपति

देश-विदेश

आज नई दिल्ली में 2022 और 2023 बैच के भारतीय रक्षा लेखा सेवा (आईडीएएस) के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को संबोधित करते हुए भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि मैं दृढ़ता से इस बात की वकालत करता हूं कि राजकोषीय विवेक, मितव्ययिता का सावधानीपूर्वक, ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए, लेकिन यह संसाधनों के राजकोषीय उपयोग में निहित लागत या सामर्थ्य और कार्यक्षमता से समझौता करने पर नहीं आना चाहिए। वित्तीय सत्यनिष्ठा परम सार है; यह आपका अमृत है। एक बार वित्तीय सत्यनिष्ठा से समझौता करने के बाद आप इसे हमेशा के लिए खो देते हैं। आप कभी भी सुधार नहीं कर सकते हैं और इसलिए खुशी और संतुष्टि के जीवन में एक ऐसा तंत्र विकसित करें जो निजी क्षेत्र में रहने वालों की तुलना में खुद को न आंक सकें। आप आर्थिक अनुशासन के प्राचीन संरक्षक हैं।

श्री जगदीप धनखड़ ने आगे कहा कि भारत जो, मानवता के छठे हिस्से का घर है उसकी सेवा करना एक आशीर्वाद जैसा है। हो सकता है कि आपको अपनी योग्यता के आधार पर बड़े वित्तीय लाभ के साथ कई अन्य क्षेत्रों में सेवा करने का अवसर मिले, लेकिन आपको वह संतुष्टि कभी नहीं मिलेगी जो आपको अब मिलेगी। सेवा के हमारे सभ्यतागत लोकाचार को जीने का संतोष, हमारे राष्ट्रवाद को पोषित करने का संतोष, हमारी मातृभूमि की सेवा करने का संतोष और ऐसी परिस्थितियों में सेवा करने का संतोष, जिससे हर कोई विद्वेष रखता है।

पूर्व सैनिकों के लिए सम्मान और देखभाल की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि यह ऐतिहासिक स्थापित तथ्य है कि सशस्त्र बलों का मनोबल हमारे पूर्व सैनिकों की देखभाल से निर्धारित होता है। यदि पूर्व सैनिक अच्छे मनोबल में हैं तो जो सीमा पर सेवा करते हैं उनका भी हौसला बढ़ा हुआ रहता है। आपका पूर्व सैनिक और पेंशनभोगियों के साथ गहरा जुड़ाव होता है। आपको पेंशनभोगियों के प्रति पूर्ण सहानुभूति रखनी होगी। पेंशन के वितरण में कभी भी समस्या पैदा न करें। मैं बहुत खुश और आनंदित हूं और मुझे इसके बारे में पता चला कि तकनीकी उन्नयन के परिणामस्वरूप पेंशन के वितरण में तेजी से निर्बाध डिलीवरी हुई है। फिर भी मुद्दे होंगे और मुद्दे होने ही चाहिए। हमारे पास कभी भी ऐसी व्यवस्था नहीं होगी जहां अंतरविभागीय या पेंशनभोगियों के साथ कोई समस्या न हो। ऐसे में उनके प्रति सहानुभूति रखें।

उन्होंने आगे अधिकारियों से पेंशनभोगियों के साथ सम्मान और स्नेह के साथ व्यवहार करने का आग्रह करते हुए कहा कि उनके साथ स्नेह की भावना के साथ कार्य करें। वे सभी आपके लिए माता-पिता की तरह हैं, वरिष्ठ नागरिक, हमारे पूर्व सैनिक हैं। यदि वे शारीरिक रूप से आपके पास आते हैं तो उनका हाथ पकड़ने से बहुत मदद मिलेगी। न केवल वे आपको आशीर्वाद देंगे, बल्कि मुंह से एक संदेश देंगे जो हमेशा आपके साथ रहेगा। ये वो लोग नहीं हैं जो रिटायर हो चुके हैं। वे पेंशनभोगी हैं। वे चाहे किसी भी रूप में हों, देश की सेवा करते नहीं थकेंगे। मानव संसाधन की इस धन्य, प्रतिष्ठित, अद्भुत श्रेणी के व्यक्तित्व के साथ आप बातचीत करेंगे।

वित्तीय अनुशासन पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने शॉर्टकट के प्रति आगाह किया और ईमानदारी का पालन करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि चुनौतियां हमेशा रहेंगी, लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि सत्यनिष्ठा का न्यायसंगत मार्ग ही सबसे सुरक्षित मार्ग है। शॉर्टकट बहुत आकर्षक होते हैं। वे इतने आकर्षक होते हैं कि उनका विरोध नहीं किया जा सकता, लेकिन जब चुनौतियां आती हैं तो शॉर्टकट दो बिंदुओं के बीच की सबसे छोटी दूरी सबसे लंबी बन जाती है। कभी-कभी बातचीत कभी न खत्म होने वाली होती है।

वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि क्षेत्र में चुनौतियों और चल रहे वैश्विक संघर्षों को देखते हुए तैयारी सर्वोपरि है। हमारे पड़ोस में सुरक्षा की स्थिति और हमारे सामने जो चुनौतियां हैं उसे देखते हुए हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां दुनिया के किसी भी हिस्से में आग लगी हुई हो ताे हमें अपनी तैयारी करके रखनी चाहिए। जैसे यूक्रेन-रूस, इजराइल-हमास, हम इसमें निरपराध हैं। लेकिन, तैयारी का स्तर आपके मन में जो चल रहा है उससे कहीं अधिक हो गया है । अच्छी बात यह है कि हमारा देश तैयार हो रहा है।

उन्होंने मजबूत स्थिति से सुरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा मौलिक है। ऐसा कहा जाता है कि सुरक्षा की सबसे अच्छी गारंटी मजबूत स्थिति से ही मिलती है। ताकत की स्थिति तैयारी के स्तर से सुरक्षित होती है। इन दिनों समय से पहले आपको तैयारी करनी होगी। आपको हर क्षेत्र में अगली पीढ़ी के उपकरणों के बारे में सोचना होगा। अब स्थिति इतनी नाटकीय रूप से बदल गई है कि पारंपरिक युद्ध पीछे चला गया है।
लोक सेवकों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डालते हुए उप राष्ट्रपति ने उनसे राष्ट्र को पहले रखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैं कहूंगा कि हमेशा राष्ट्र को पहले रखें, राष्ट्र के प्रति अटूट प्रतिबद्धता रखें, लेकिन यह सिर्फ एक विचार नहीं हो सकता है। लोक सेवक होने के नाते राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करना, परिचालन दक्षता को सक्षम करना आपका दायित्व है, आपको यह भी देखना होगा कि एक व्यक्ति के रूप में आप क्या कर सकते हैं।

उपराष्ट्रपति ने पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने, स्वदेशी ज्ञान को बढ़ावा देने और समावेशिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। पारिवारिक संबंधों, पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करें। परिवार से जुड़े रहें। इसे प्राथमिकता बनाएं। पर्यावरण जागरूकता और स्थायी जीवन में विश्वास करें। व्यक्तिगत तौर पर आप इसमें योगदान दे सकते हैं। स्वदेशी ज्ञान, आर्थिक आत्मनिर्भरता को अपनाएं। लोकल के लिए वोकल बनें। मैं आपको बताऊंगा, इस देश में परिहार्य (जिसकी जरूरत नहीं है) आयात अरबों डॉलर की सीमा तक वित्त की भारी बर्बादी है। ये परिहार्य आयात जूते, मोजे, पतलून, कोट, शर्ट, कालीन, फर्नीचर, खिलौने, मोमबत्तियां और न जाने क्या-क्या रूप में हैं। दूसरा पहलू यह है कि जब हम देश में आयातित परिहार्य विदेशी वस्तुओं का उपयोग करते हैं, तो हम अपने लोगों को काम से वंचित कर रहे हैं। यह छोटा सा प्रयास आप कर सकते हैं।

उन्होंने राष्ट्रीय एकता और आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि सामूहिक विविधता के बीच एकता और समावेशिता को बढ़ावा दें। 5,000 वर्षों से हमारे पास समावेशिता है, लेकिन समावेशिता के लिए चुनौतियां चरम थीं। उन्होंने हमारी संस्कृति, हमारे धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया। हम अपनी बात पर अडिग रहे, लेकिन अब समय आ गया है कि राष्ट्रहित को हमेशा पहले रखा जाए, एकता और भाईचारे को बढ़ावा दिया जाए।

इस अवसर पर रक्षा सचिव श्री राजेश कुमार सिंह (आईएएस), श्रीमती देविका रघुवंशी, आईडीएएस, रक्षा लेखा महानियंत्रक (सीजीडीए) और राज्यसभा सचिवालय की अतिरिक्त सचिव डॉ. वंदना कुमार के साथ ही अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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