नयी दिल्ली: उद्योग जगत खुश है मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में संशोधन संबंधी अध्यादेश से लेकिन उनसे भी ज्यादा उत्साह है डवलेपर-बिल्डर्स बिरादरी में जिनके अरबों-खरबों के रुके पड़े प्रोजेक्ट अब चलने की उम्मीद बंधी है। सरकार ने इन्हीं दो वर्गों की अापत्तियों के बाद दिसंबर, 2014 में बने भूमि-अधिग्रहण कानून में संशोधन किया। सरकार का मकसद इस सबके जरिये ढांचागत विकास एवं ‘2020 तक सभी को घर’ संबंधी नीतियों को परवान चढ़ाना बताया जा रहा है। अस्पतालों, सड़कों एवं सैन्य प्रतिष्ठानों के लिए जमीन का अधिग्रहण ढांचागत विकास के लिए जरूरी है तो सबको एफोर्डेबल घर भी तभी मिल सकेंगे जब जमीन कहीं से एक्वायर की जा सकेगी। पांच सेक्टरों के लिए पुराने कानून में नये संशोधन के जरिये छूट दी गयी है।
अब जमीन अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी नहीं होगी। लेकिन उन होम बायर्स का क्या फायदा है इस संशोधन से जिन्हें जमीन डवलेपर से खरीदनी है न कि किसान से । उनके मुतािबक तो इस छूट का फायदा निजी क्षेत्र ही उठायेगा। दरअसल भारत में जमीन का अधिग्रहण हमेशा विवाद का मामला रहा है। अाजादी के कुछ दशक बाद ही अंग्रेजों के जमाने में बने भूमि-अिधग्रहण कानून-1894 में संशोधन की मांग उठने लगी थी। काफी हिंसक संघर्षों अौर कानूनी पचड़ों के बाद सरकार ने इसमें पहले सन् 2007 अौर फिर 2011 में संशोधन करके मामला ठीक करने की कोशिश की। परिणामत: बनकर सामने अाया 2013 का ‘उचित मुअावजे का हक एवं भूमि के अधिग्रहण, पुनर्वास अौर रिसेटलमेंट में पारदर्शिता’ संबंधी कानून। इस कानून के जरिये एक्वायर करने की एेसी नयी प्रक्रिया बनी जिसमें सरकार की अोर से लगाया जाने वाला ‘अापात जरूरत’ प्रावधान हट गया। साथ ही सोशल इंपेक्ट एसेसमेंट सर्वे का खास तौर पर नये कानून में जिक्र है। इसके अलावा इस कानून में अधिग्रहण के मकसद समेत पूर्व नोिटफिकेशन, एक्वायर करने की घोषणा तथा मुअावजा देने की निश्चित अवधि जैसे पहलू जुड़ गये।
हालांकि इंडस्ट्री एवं रियल एस्टेट के कारोबारी इस कानून को ढांचागत विकास में बड़ी रुकावट बता रहे थे। इसीलिए नयी सरकार ने पिछले दिसंबर में इस एक्ट के सेक्शन 10-ए में संशोधन किया जिसके लागू होने के बाद पांच सेक्टरों के लिए भूमि अधिग्रहण में मूल्यांकन एवं 80 फीसदी किसानों की रजामंदी का प्रावधान हट गया है। जाहिर है, उद्योग जगत व रियल एस्टेट कारोबारियों ने तो इस संशोधन का खूब स्वागत किया लेकिन नये घर खरीदने को तैयार वर्ग में इस कानून में संशोधन के बाद शामिल प्रावधानों पर खास उत्साह दिखाई नहीं देता। इस संबंध में न्यू चंडीगढ़ में हाल ही में घर खरीदने वाले एक शख्स संदीप अाचार्य बताते हैं, ‘असल में सरकार यह संशोधन लागू करके जताना चाहती है कि किसानों को पहले की तरह ज्यादा मुअावजा व पुनर्वास राशि देना जारी रहता तो इससे घरों की कीमतें बढ़ जाती हैं अौर घर अाम अादमी के पहुंच से दूर हो जाते। … अौर इसीलिए उक्त पुराना कानून (2013) ठीक ही नहीं था।’ इसी संबंध में वे किसानों को कई अदालती निर्णयों के जरिये बढ़ा मुअावजा देने के डेवलपर को दिये अादेश के बाद की हालत बताते हैं।
उक्त फैसलों के बाद सरकारों ने संबंधित बिल्डरों को अतिरिक्त एफएसअाई/एफएअार प्रदान करके उनके प्राॅफिट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने दिया। लेकिन एफएएअाई लेने के बावजूद उन्होंने फ्लैटों के रेट बढ़ा दिये। क्षतिपूर्ति भी सरकार से ले ली गयी अौर किसानों को दी गयी राशि की एवज में रेट भी बढ़ा दिये। बिल्डरों के इस कदम से जाहिर है कि सरकार ने ग्राहकों के हितों के लिए नहीं बल्कि सस्ती दरों पर जमीन चाहने वाले बड़े अौद्योगिक घरानों के हित में उक्त कदम उठाए।
मोटे अंदाजे से, कई अड़चनों के कारण करीब 300 बिलियन डाॅलर की कीमत के प्रोजेक्टों का काम रुका पड़ा है। जमीन अधिग्रहण पर कानूनी पाबंदियां भी उन्हीं अड़चनों में शामिल हैं।
भू-अधिग्रहण कानून-2013 में मौजूदा संशोधन व अध्यादेश से रुके पड़े अरबों-खरबों के प्रोेजेक्ट शुरू हो पाएंगे या नहीं, यह जानने से पहले सरकार के लिए संबंधित सभी ‘स्टेकहोल्डर्स’ को संतुष्ट करना जरूरी है। दरअसल, सरकार संशोधन के मसले पर खुद को गंभीर पसोपेश में पा रही है। सड़क से लेकर संसद तक पांच सेक्टरों को अधिग्रहण में ‘नई छूट’ का विरोध हो रहा है। कई राजनीतिक दल, दबाव समूह, किसान संगठन अौर सामाजिक कार्यकर्ता इसके खिलाफ अावाज़ उठा रहे हैं। वे इसे किसानों की जमीन हड़पने वाला ‘काला संशोधन’ बता रहे हैं।
सरकार हालांकि उक्त संशोधन अध्यादेश को बदलावों व नरम प्रावधानों के साथ पारित करने पर सहमत है। पर अभी तक अंतिम सर्वसम्मति नहीं बनी है।