नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ नरमी के संकेत नही दे रही है। कल संसद भवन के बाहर जोरदार प्रदर्शन के बाद अब आज कांग्रेस राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेगी। इस भूमि मार्च की अगुवाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी करेगीं।
सोनिया के साथ कई विपक्षी दलों के सांसद भी संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगे और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपेगें। संसद के आसपास धारा 144 लगे होने की वजह से मार्च की इजाजत को लेकर भ्रम था, लेकिन गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि सांसदों को मार्च से रोका नहीं जाएगा।
सोमवार को जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ हल्ला बोला था। दिल्ली में संसद भवन के पास प्रदर्शन कर रहे कांग्रेसी जब बेकाबू हो गए थे तो पुलिस को पानी की तेज बौछार से उन्हें तितर-बितर करना पडा था। सिर्फ दिल्ली ही नहीं कांग्रेस ने रायपुर और उत्तर प्रदेश के शहरों में भी इस नए बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया था।
कांग्रेस की मांग है कि सरकार भूमि बिल में संशोधन ना करें और साल 2013 के बिल को ही लागू रहने दे। कांग्रेस नेताओं साफ कर दिया है कि वो इससे कम पर राजी नहीं हैं। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के मुताबिक भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव के खिलाफ सभी पार्टियां मार्च कर रही हैं। हम कोई कंप्रोमाइज करने नहीं जा रहे है। साल 2013 का जो बिल पास हुआ है हम वही बिल चाहते हैं।
कांग्रस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के मुताबिक हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार साल 2013 के बिल को वापस लाए, इसलिए आज अपना विरोध दर्ज कराने के लिए मार्च करेंगे। भूमि बिल के खिलाफ कांग्रेस के मार्च की अगुवाई सोनिया गांधी करेंगी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इसमें शामिल होंगे।
इसके अलावा जनता दल (यूनाइटेड), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, सीपीएम,सीपीआई, डीएमके, आईएनएलडी, जेडीएस और एनसीपी आदि दलों के नेता भी शामिल होंगे। हालांकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती इस बिल के खिलाफ हैं, लेकिन उन्होंने कहा है कि कांग्रेस के साथ जाने से भ्रम फैलता है, लिहाजा वो मार्च में शामिल नहीं होंगी।
दरअसल कांग्रेस समेत इन विपक्षी दलों को नए बिल से कई आपत्तियां हैं। साल 2013 का कानून 5 साल के अंदर अधिगृहित जमीन पर काम शुरू नहीं हुआ तो किसान जमीन वापस ले सकता है, लेकिन मोदी सरकार का बिल पांच साल के अंदर जमीन पर काम शुरू करने की पाबंदी हटाई गई।
2013 का कानून में प्रभावित जमीन मालिकों में से 80% की सहमति जरूरी थी। मोदी सरकार का बिल नए कानून में इसे खत्म कर दिया गया। 2013 का कानून भूमि अधिग्रहण की वजह से समाज पर पड़ने वाले असर के अध्ययन का प्रावधान था। लेकिन मोदी सरकार का बिल अध्यादेश के जरिए समाज पर असर वाले प्रावधान को खत्म किया गया।
2013 का कानून खेतिहर जमीन का अधिग्रहण नहीं मोदी सरकार का बिल अब खेतिहर जमीन का भी हो सकता है अधिग्रहण नया भूमि बिल लोकसभा से पास हो चुका है, लेकिन विपक्षी दलों के तेवरों को देखते हुए लग रहा है कि इसे राज्यसभा से पास करवाना आसान नहीं होगा।