नई दिल्ली: राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-भारत (एनआईएफ) ने पशुओं में कृमि के उपचार के लिए रासायनिक विधि के विकल्प के रूप में एक स्वदेशी हर्बल दवा (डिवार्मर) पेश की है। इसका उत्पादन वाणिज्यिक रुप में किया गया है।
स्वदेशी हर्बल दवा (डिवार्मर) ‘वर्मीवेट’ के नाम से पेश की गई है। इस दवा के निर्माण के लिए एनआईएफ ने गुजरात के श्री हर्षाभाई पटेल द्वारा भेजे गए एक उपचार विधि पर काम किया जिसके माध्यम से पशुओं में इंडोपारासाइट (कृमि) संक्रमण बीमारी का इलाज किया जाता था। एनआईएफ ने इस स्वदेशी उपचार को अद्भुत पाया। प्राकृतिक रुप से संक्रमण में इस कृमिनाशक के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया। परिणाम ने इस दवा के सफल प्रभाव का प्रदर्शन किया।
इस स्वदेशी दवा-उपचार के लिए 2007 में पेटेंट का आवेदन किया गया और 29 नवंबर, 2016 को श्री हर्षाभाई पटेल के नाम से पेटेंट दिया गया। पेटेंट जमीनी स्तर का ज्ञान (ग्रासरूट पेटेंट) के लिए दिया गया। पशुओं में इंडोपारासाइट (कृमि) संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए एनआईएफ ने इस दवा-उपचार का मूल्य संवर्धन किया और राकेश फार्मास्यूटिकल्स, गांधी नगर (गुजरात) के माध्यम से इसका वाणिज्यिक उत्पादन किया। उत्पाद को ‘वर्मीवेट’ नाम दिया गया। यह प्रारूप औपचारिक संस्थान द्वारा स्थानीय जरूरतों को देखते हुए उत्पाद पर शोध करने और इसे विकसित करने का उदाहरण है। ऐसे प्रयास कृषि कार्य में लगे समुदायों को आश्वस्त करते हैं।
पशु संसाधन की पहचान खाद्य मांग को स्थिर रखने तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन के रूप में होती है। स्वदेशी ज्ञान प्रणाली के समान समाज अपने आस-पास के संसाधनों के माध्यम से पशु-स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं।
पशुओं में कृमि संक्रमण एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है जिसके कारण दस्त होता है, वजन और खून की कमी होती है तथा प्रजनन स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इससे उत्पादकता और वृद्धि भी प्रभावित होती है। रासायनिक दवाओं के अनुचित प्रयोग से प्रतिरोध पैदा होता है। नियमित जांच के दौरान कृमि की उपस्थिति और रसायन आधारित थेरेपी के द्वारा मृदा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव के कारण वैकल्पिक स्थायी चिकित्सा की आवश्यकता होती है।
ऐसे परिदृश्य में ज्ञानवान व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए तथा उन्हें सम्मान और ईनाम दिए जाने चाहिए। ज्ञान आधारित ये अभ्यास पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते हैं। पशुओं के स्वास्थ्य देखभाल के लिए पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को शामिल किया जाना चाहिए। इस प्रकार की मान्यता प्राप्त और सामाजिक स्तर पर वांछनीय तकनीकों का समावेश किया जाना चाहिए और समावेशी विकास के लिए वैज्ञानिक आधार पर इसे मान्यता दी जानी चाहिए जिससे समाज को लाभा प्राप्त हो। एनआईएफ ऐसे ही कार्य करता है।
एनआईएफ ऐसे व्यवहार के योग्य तथा किफायती थेरेपी को संरक्षण प्रदान करता है तथा सामाजिक या वाणिज्यिक आधार के माध्यम से बड़े पैमाने पर इसका प्रसार करता है। इंडोपारासाइट संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए एनआईएफ ने पारंपरिक ज्ञान को व्यवस्थित किया तथा समाज से प्राप्त ज्ञान को मुख्यधारा की तकनीक से संयोजित कर दिया।
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श्री तुषार गर्ग, वैज्ञानिक,एनआईएफ
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