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नीति आयोग ने ‘आत्मनिर्भरता लक्ष्‍य के साथ खाद्य तेलों में तेज विकास के लिए मार्ग और रणनीतियां’ पर रिपोर्ट जारी किया

देश-विदेश

नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, आईसीएआर संस्थानों और उद्योग जगत की हस्तियों की उपस्थिति में उपाध्यक्ष श्री सुमन बेरी ने कल “पाथवे एंड स्ट्रैटेजीज फॉर एक्सेलेरेटिंग ग्रोथ इन एडिबल ऑयल्स टुवर्ड्स द गोल आत्मनिर्भरता” शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहकार (कृषि) डॉ. नीलम पटेल ने प्रस्तुत की।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशकों में देश में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत में अप्रत्‍याशित वृद्धि देखी गई है, जो 19.7 किलोग्राम/वर्ष तक पहुंच गई है। मांग के मामले में इस वृद्धि ने घरेलू उत्पादन काफी पीछे छोड़ दिया है, जिससे घरेलू और औद्योगिक दोनों जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर भारी निर्भरता बढ़ गई है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 16.5 मिलियन टन (एमटी) खाद्य तेलों का आयात किया, जिसमें घरेलू उत्पादन देश की आवश्यकताओं का केवल 40-45 प्रतिशत ही पूरा करता है। यह स्थिति खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के देश के लक्ष्य के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती है।

रिपोर्ट में देश के खाद्य तेल क्षेत्र की वर्तमान स्थिति और इसकी भविष्य की क्षमता की व्यापक पड़ताल की गई है। यह रिपोर्ट वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने, मांग-आपूर्ति अंतर को पाटने तथा आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए नए दृष्टिकोण विकसित करने के विस्तृत रोडमैप पर फोकस करती है। बिजनेस एज यूजुअल (बीएयू) परिदृश्य के अंतर्गत खाद्य तेल की राष्ट्रीय आपूर्ति 2030 तक 16 एमटी बढ़ने और 2047 तक 26.7 एमटी होने का अनुमान है।

रिपोर्ट में भावी खाद्य तेल आवश्यकताओं की बहुआयामी समझ के लिए मांग पूर्वानुमान उद्देश्‍य से  तीन अलग-अलग दृष्टिकोणों पर विचार किया गया है (1) ‘स्थिर/घरेलू दृष्टिकोण’ जिसमें जनसंख्या अनुमानों और प्रति व्यक्ति आधारभूत उपभोग डेटा का उपयोग किया जाता है और  उपभोग व्यवहार में अल्पकालिक स्थिर पैटर्न माना जाता है; (2) आईसीएमआर-राष्ट्रीय पोषण संस्थान (आईसीएमआर-एनआईएन) द्वारा स्थापित अनुशंसित स्वस्थ इनटेक स्तरों के आधार पर ‘मानक दृष्टिकोण’; और (3) ‘व्यवहारवादी दृष्टिकोण’ जिसमें दो परिदृश्यों के अंतर्गत बढ़ती आय स्तर और मूल्य में उतार-चढ़ाव से प्रेरित विकसित जीवन शैली और आहार संबंधी आदतों के कारण खाद्य उपभोग पैटर्न में व्यवहारगत बदलावों की संभावना को मानते हुए: परिदृश्य एक  में जहां खपत 25.3 किलोग्राम प्रति व्यक्ति (विकसित देशों का औसत) पर सीमित है, मांग-आपूर्ति अंतर 2030 तक 22.3 एमटी और 2047 तक 15.20 एमटी होने का अनुमान है। परिदृश्य दो में जो 40.3 किलोग्राम प्रति व्यक्ति (संयुक्त राज्य अमेरिका के बराबर) के उच्च खपत स्तर पर विचार करता है, 2030 तक अंतर 29.5 एमटी और 2047 तक 40 एमटी तक बढ़ जाता है। देश की खाद्य तेल की मांग 2025 की शुरुआत में परिदृश्य-एक होने की उम्मीद है, बीएयू स्थिति और 2031 तक परिदृश्य- दो की तुलना में तीन वर्ष की प्रगति बीएयू स्थिति में प्रत्याशित से सात वर्ष पहले, त्वरित आर्थिक विकास के कारण और भी अधिक मांग दिखाती है।

‘स्थिर/घरेलू दृष्टिकोण’ के आधार पर, अनुमान 2030 और 2047 तक क्रमशः 14.1 एमटी और 5.9 एमटी की कम मांग-आपूर्ति अंतर का संकेत देते हैं। हालांकि, यदि आईसीएमआर-एनआईएन द्वारा अनुशंसित प्रति व्यक्ति खपत का पालन किया जाता है, तो देश में खाद्य तेल क्रमशः 2030 और 2047 तक 0.13 एमटी और 9.35 एमटी बेशी होने का अनुमान है।

इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए रिपोर्ट वर्तमान अंतर को पाटने और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कई रणनीतिक हस्तक्षेपों का सुझाव देती है। प्रस्तावित रणनीति के तीन प्रमुख स्तंभ हैं: (i) फसल प्रतिधारण और विविधीकरण, (ii) क्षैतिज विस्तार, और (iii) ऊर्ध्वगामी विस्तार। ‘क्षैतिज विस्तार रणनीति’ का उद्देश्य खाद्य तेल फसलों की खेती के लिए समर्पित क्षेत्र को रणनीतिक रूप से बढ़ाना है। इस नीति का उद्देश्य अधिक जमीन में विशिष्ट तिलहनों की खेती करना है। आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के संभावित अवसरों में उच्च उपज वाली तिलहन फसलों के लिए चावल परती भूमि का उपयोग और संभावित क्षेत्रों में कुशलतापूर्वक फसल प्रतिधारण और विविधीकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ पाम की खेती के माध्यम से परिवर्तन के लिए अत्यधिक उपयुक्त बंजर भूमि का उपयोग शामिल है। वैकल्पिक फसलों की तुलना में उत्पादन की व्यवहार्यता निर्धारित करने के लिए लागत-लाभ विश्लेषण की आवश्यकता हो सकती है। ‘ऊर्ध्वगामी विस्तार रणनीति’ वर्तमान तिलहन खेती की उपज बढ़ाने पर केंद्रित है। यह बेहतर कृषि पद्धतियों, बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों और उन्नत उत्पादन तकनीकों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

रिपोर्ट में उल्लिखित ‘राज्य-वार चतुर्थभाग दृष्टिकोण’ खाद्य तेलों में “आत्मनिर्भरता” प्राप्त करने के लिए एक मूल्यवान उपकरण प्रदान करता है। रिपोर्ट में चार चतुर्थभागों का उपयोग करते हुए देश भर में खेती की जाने वाली खाद्य तेल फसलों के लिए राज्य कलस्‍टरों की पहचान की गई है ये कलस्‍टर हैं- (i) उच्च क्षेत्र-उच्च उपज (एचए-एचवाई), (ii) उच्च क्षेत्र-कम उपज (एचए-एलवाई), (iii) कम क्षेत्र उच्‍च उपज (एलएएचवाई), (iv) कम क्षेत्र-कम उपज (एलए-एलवाई)। उच्च खेती क्षेत्र और उपज (एचए-एचवाई) वाले राज्य क्लस्टर दक्षता में सुधार करने और अग्रणी वैश्विक उत्पादकों से सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने पर फोकस कर सकते हैं। इसके विपरीत, उच्च क्षेत्र लेकिन कम उपज (एचए-एलवाई) वाले राज्यों को ऊर्ध्वगामी विस्तार (यानी, उपज बढ़ाने) के उद्देश्य से हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। कम क्षेत्र, उच्च उपज वाले राज्यों (एलए-एचवाई) में, दक्षता बनाए रखते हुए क्षैतिज विस्तार पर फोकस किया जा सकता है, खेती का विस्तार किया जा सकता है। अंतत: कम क्षेत्र और कम उपज (एलए-एलवाई) वाले क्षेत्रों को क्षैतिज और ऊर्ध्वगामी विस्तार दोनों पर फोकस करने की आवश्यकता है। इन कलस्‍टों को रणनीतिक रूप से लक्षित करके और अनुरूप कार्यक्रम लागू करके, देश अपनी उत्पादन क्षमता को अधिकतम कर सकता है और संभावित खपत वृद्धि से उत्पन्न निकट अवधि की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान कर सकता है।

इस रिपोर्ट में अनुशंसित रणनीतिक हस्तक्षेप, आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में एक जीवंत मार्ग प्रदान करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि रणनीतिक हस्तक्षेपों को लागू करके, देश में घरेलू खाद्य तेल उत्पादन में 43.5 मिलियन टन की उल्लेखनीय वृद्धि करने की क्षमता है। इस पर्याप्त वृद्धि में न केवल आयात अंतर को पाटने की क्षमता है, बल्कि देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करने की क्षमता भी है। रिपोर्ट कहती है:

  • तिलहन फसलों को रणनीतिक रूप से बनाए रखने और विविधता लाने तथा अनाज की खेती के लिए संभावित रूप से खोए गए क्षेत्रों पर फोकस करने से नौ राज्यों में देश के खाद्य तेल उत्पादन में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, जिससे 7.36 एमटी तिलहन उत्पादन जुड़ सकता है और आयात निर्भरता 2.1 एमटी कम हो सकती है।
  • देश भर में चावल परती क्षेत्र तिलहन की खेती में क्षैतिज विस्तार के लिए एक आशाजनक अवसर दिखाते हैं। तिलहन की खेती के लिए दस राज्यों में चावल परती क्षेत्र के एक तिहाई का उपयोग करने से तिलहन उत्पादन में 3.12 एमटी की वृद्धि हो सकती है और आयात निर्भरता 1.03 एमटी कम हो सकती है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकियों और प्रभावी प्रबंधन पद्धतियों को व्यापक रूप से अपनाकर सूरजमुखी में अरंडी के उपज अंतर को 12 प्रतिशत से 96 प्रतिशत तक पाटने अर्थात ऊर्ध्वगामी विस्तार से देश के घरेलू तिलहन उत्पादन में 17.4 एमटी की वृद्धि हो सकती है। इससे खाद्य तेल आयात में 3.7 एमटी की कमी आएगी।
  • लक्षित विस्तार के माध्यम से अकेले पाम तेल संभावित रूप से 34.4 एमटी खाद्य तेल को बढ़ा सकता है, जिससे वर्तमान मांग-आपूर्ति के अंतर को समाप्‍त करने की दिशा में पर्याप्त प्रगति हो सकती है। इस प्रयास को 284 जिलों में आईसीएआर-आईआईओपीआर द्वारा चिन्हित अप्रयुक्त क्षमता का पूंजीकरण करने पर फोकस करना चाहिए, जो पाम तेल की खेती के लिए देश भर में अतिरिक्त 2.43 एमएचए भूमि का अनुमान लगाता है। इसके अलावा आईसीएआर-आईआईओपीआर चिन्हित जिलों (यानी, 6.18 एमएचए) में स्थित बंजर भूमि के अत्यधिक उपयुक्त क्षेत्रों के दो-तिहाई का सामरिक रूप से उपयोग आगे क्षैतिज विस्तार के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
  • चावल की भूसी से 1.9 एमटी खाद्य तेल की अनुमानित क्षमता है, जिसमें वर्तमान में 0.85 एमटी का दोहन नहीं किया गया है। इसी प्रकार बिनौला अतिरिक्त 1.4 एमटी खाद्य तेल उत्पादन की क्षमता प्रस्तुत करता है, जो देश के खाद्य तेल की मांग-आपूर्ति अंतर या आयात निर्भरता में 9.7 प्रतिशत की कमी में योगदान देता है।

समग्र रूप में प्रस्तावित रणनीतिक हस्तक्षेपों से 2030 और 2047 तक क्रमशः 36.2 एमटी और 70.2 एमटी की अनुमानित खाद्य तेल आपूर्ति प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान उत्पादन स्तर के साथ संयुक्त प्रस्तावित रणनीतिक हस्तक्षेपों से अनुमानित खाद्य तेल उत्पादन में संभावित लाभ से निकट अवधि में सबसे अधिक मांग वाले परिदृश्य (यानी, व्यवहारवादी दृष्टिकोण परिदृश्य-दो) को छोड़कर सभी परिदृश्यों में हाल की वृद्धि प्रवृत्ति (3 प्रतिशत की सीएजीआर) के साथ आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का अनुमान है। इस परिदृश्य के अंतर्गत 2030 के अधिक तात्कालिक लक्ष्य तक अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए 2021-2030 की अवधि के लिए 5.2 प्रतिशत की सीएजीआर की आवश्यकता होगी, जो हाल की विकास स्थिति से 2.2 प्रतिशत की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। यह लक्षित वृद्धि अधिक केंद्रित, कठोर कार्यान्वयन और गहन दृष्टिकोण के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।

रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि खाद्य तेल आत्मनिर्भरता की नींव को मजबूत करने के लिए बीज उपयोग और प्रसंस्करण क्षमताओं का अनुकूलन महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट दिखाती है कि अकेले उच्च गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण (15-20 प्रतिशत) योगदान दे सकते हैं, संभावित रूप से अन्य कृषि आदानों के कुशल प्रबंधन के साथ संयुक्त होने पर भी उच्च स्तर (45 प्रतिशत) तक पहुंच सकते हैं। यद्यपि वर्तमान बीज प्रतिस्थापन अनुपात (एसआरआर) 80-85 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है। मूंगफली में 25 प्रतिशत से लेकर रेपसीड सरसों में 62 प्रतिशत तक है। यह समग्र उपज सुधार में बाधा उत्पन्न करता है। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि वर्तमान मिलों के आधुनिकीकरण और प्रसंस्करण अवसंरचना में रणनीतिक रूप से निवेश करने से दक्षता में सुधार होगा और अवशेष को कम किया जाएगा क्योंकि देश के वनस्पति तेल क्षेत्र में कई छोटे पैमाने पर कम प्रौद्योगिकी वाले संयंत्र पर्याप्त अतिरिक्त क्षमता वाले हैं, जो खाद्य तेल शोधन क्षमता का केवल 30 प्रतिशत उपयोग करते हैं।

खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करना एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकता है, इसलिए इस मार्ग पर सफलतापूर्वक चलने के लिए सात प्रमुख तिलहन उत्पादक राज्यों (राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक) के 1,261 किसानों को शामिल करते हुए प्राथमिक क्षेत्र सर्वेक्षण से प्राप्त मूल्यवान अंतर्दृष्टि के आधार पर निर्धारित सिफारिशें और इस रिपोर्ट को आगे बढ़ाया गया। रिपोर्ट में खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए अनेक सिफारिशें हैं जिनमें तिलहनों के क्षेत्र अवधारण, बीज पता लगाने और गुणवत्ता आश्वासन, उन्नत और अग्रणी उत्पादन प्रौद्योगिकियों को अपनाना, प्रसंस्करण और शोधन के जरिए मूल्यवर्धन, प्रभावी विपणन और मजबूत बाजार लिंकेज, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना, संतुलित विकास के लिए एक गतिशील व्यापार नीति विकसित करना, राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के दायरे को व्यापक बनाना, सिफारिश किए गए आहार संबंधी दिशा-निर्देशों के संबंध में जन जागरूकता बढ़ाना, खाद्य उद्योग में घरेलू तिलहन खपत को प्रोत्साहन और प्रोत्साहन देना शामिल है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि तिलहन पैदावार में असमानताओं को दूर करने के लिए क्षेत्रीय अंतराल को पाटने के लिए डेटा-संचालित दृष्टिकोण और मजबूत प्रणाली की आवश्यकता है और अनुसंधान और विकास में निवेश खाद्य तेल क्षेत्र को बदलने के लिए महत्वपूर्ण है ताकि खाद्य तेल क्षेत्र में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के साथ “आत्मनिर्भरता” सुनिश्चित की जा सके।

इस रिपोर्ट को यहां देखा जा सकता है।

https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2024-08/Pathways_and_Strategy_for_Accelerating_Growth_in_Edible_Oil_towards_Goal_of_Atmanirbharta_August %2028_Final_compressed.pdf

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