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NTPC हादसे में घायल एजीएम संजीव शर्मा की इलाज के दौरान मौत

देश-विदेश

रायबरेली के एनटीपीसी में हुए हादसे में घायल एजीएम संजीव शर्मा की इलाज के दौरान मौत हो गई है। उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के मेदान्ता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया जा रहा है कि इलाज के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया और उसके बाद उनकी मौत हो गई। आपको बता दें कि एनटीपीसी में हुए हादसे में एजीएम संजीव शर्मा के अलावा एजीएम रैंक के दो और अधिकारी प्रभात श्रीवास्तव और मिश्रीलाल भी घायल हुए थे। इस हादसे में ये तीनों ही अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। आपको बता दें कि एनटीपीसी में हुए हादसे में मरने वालों की संख्या 30 पहुंच चुकी है।

उत्तर प्रदेश के रायबरेली में NTPC के पॉवर प्लांट में हुए हादसे में जहां एक ओर मरने वालों की संख्या बढ़कर 30 हो गई है, जबकि 150 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हैं। इन घायलों को पहले तो ऊंचाहार से रायबरेली जिला अस्पताल लाया गया फिर ज्यादा गंभीर होने पर गुरुवार सुबह तक लखनऊ भेजा जाता रहा। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि बॉयलर में हुआ ब्लास्ट इतना जबर्दस्त था कि आसपास काम कर रहे कुछ कर्मचारियों के चीथड़े तक उड़ गए। बताया जा रहा है कि बॉयलर जोरदार आवाज आई थी और काफी देर तक आसपास का इलाका धुआं-धुआं हो गया था। इस बीच एक बड़ा सवाल उठता है कि इस दर्दनाक हादसे का जिम्मेदार आखिर कौन है। NTPC में चल रहे इस प्रोजेक्ट में ऐसी कौन सी अनियमितताएं बरती गईं, जिसकी वजह से इलाका चीखों से गूंज उठा।

रायबरेली ऊंचाहार एनटीपीसी में 500 मेगावॉट की यूनिट नंबर 6 के बॉयलर का स्टीम पाइप फटने से बुधवार को यह हादसा हुआ था। हादसा इतना भयावह था कि बॉयलर के एकदम पास मौजूद लगभग 25 मजदूर बुरी तरह झुलस गए। बॉयलर के आसपास का क्षेत्र राख के ढेर में तब्दील हो गा था। बता दें कि बॉयलर में बन रही स्टीम का तापमान 500 डिग्री के आस-पास तक चला जाता है। उसका एयर प्रेशर भी इतना होता है कि उसके संपर्क में आने पर शरीर के चीथड़े उड़ जाएं। बॉयलर फटते ही कई लोग वहीं राख के मलबे में दब गए। इनमें से कुछ के शरीर क्षत-विक्षत हो गए। चश्मदीद ने हादसे की भयावहता को बयां करते हुए कहा कि ऐश पाइप से निकली राख से दस मीटर दूरी पर बॉयलर में मौजूद लोग मर-मर कर गिर रहे थे।

इस मामले में नाम न छापने की शर्त पर एक इंजीनियर ने बताया कि 500 मेगावाट की यूनिट सही तरीके से कमीशन (स्थापित ) भी नहीं की गई थी और काम चालू करवा दिया गया था। प्रमोशन पाने के लालच में GM इस यूनिट को मैनुअली चलवा रहा था। यूनिट मैनुअली चल रही थी, इस वजह से यूनिट चलाने के जरूरी बॉयलर सेफ्टी प्रोटोकॉल भी नहीं फॉलो किए गए थे। सुरक्षा के नियमों को ताक पर रख कर यहां के जनरल मैनेजर ने हजारों मजदूरों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया।

इस दर्दनाक हादसे का एक प्रमुख कारण 3 साल के प्रोजेक्ट को 2.5 साल में पूरा करवाने का दबाव भी रहा। प्रोजेक्ट तो 3 साल के लिए प्रस्तावित था लेकिन GM ने प्रमोट होने की लालच में और उसके ED बनने की ख्वाहिश ने इस दर्दनाक हादसे की पृष्ठभूमि लिख दी थी। मजदूरों ने बताया कि कोयला जलने के बाद निकलने वाली राख निकासी के लिए कोई खास जगह (सेलो) नहीं थी, जिससे चेंबर राख के ढेर मे तब्दील हो जाता था। इसके लिए मजदूरों ने बार-बार चेताया था फिर भी इसे अनसुना कर दिया गया था। हादसे में बॉयलर में मौजूद ऐश पाइप चोक हुई थी जिससे बॉयलर फट गया था। जिस वक्त बॉयलर फटा उस वक्त बॉयलर में 200Kg का प्रेशर था।

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