लखनऊ: उद्यान निदेशक श्री एस0पी0 जोशी ने मौन पालकों को सलाह दी है कि माह सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से ही धान, बाजरा, वन तुलसी एवं जंगली झाड़ियों में फूल आने लगता है। इन फसलों एवं झाड़ियों के फूलों से मधुमक्खियों को पराग एवं पुष्प रस की प्राप्ति होती है। अतः यह आवश्यक है कि उपयुक्त प्रक्षेत्र का चयन कर मौनवंशों को इन क्षेत्रों में माइग्रेशन कर दिया जाय। अगेती लाही के फूल मिलने तक मौनवंशों को पुष्प रस कम मिलता है। इसलिए उनकों आवश्यकतानुसार कृत्रिम भोजन देते रहना चाहिए। लाही/सरसों के प्रक्षेत्रों में 10-20 प्रतिशत फूल आने पर मौनवंशों का माइग्रेशन तुरन्त उस क्षेत्र में कर देना चाहिए। लाही/सरसों के फूल मिलते ही मौनों को पराग एवं मकरन्द पर्याप्त मात्रा में मिलने लगता है, जिससे मौनवंशों में प्रजनन की गति बढ़ जाती है, साथ ही मधुस्राव सीजन के लिए मौनवंश शक्तिशाली हो जाते हैं, जिससे अधिक मधु उत्पादन एवं प्रजनन मौनवंशों की वृद्धि में आशातीत सफलता प्राप्त होती है।
श्री जोशी ने मौनपालन कार्यक्रम की सफलता हेतु तकनीकी सुझाव अपनाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया है कि स्थानाभाव होने पर यथा आवश्यक मौमी छत्ताधार मौनवंशों को सुलभ करा देना चाहिए तथा काली/पीली सरसों में 10 प्रतिशत फूल खिल जाने पर मौनवंशों का माइग्रेशन अवश्य कर देना चाहिए। मौन गृहों पर सफेद पेन्टिंग करा कर इन पर लाल रंग से मौनालयवार मौनवंश संख्या अंकित की जाये। उन्होंने मौनगृह के तलपट एवं सम्बन्धित उपकरणों को पोटेशियम परमैगनेट/लाल दवा से माह में एक बार धुलाई करने की सलाह दी है। उन्होंने यह भी बताया कि अधिक सर्दी से मौनवंशों की सुरक्षा के लिए प्रवेश द्वार छोटा किया जाये तथा टाप कवर के नीचे जूट का बोरा रख कर मौनवंशों का तापक्रम नियंत्रित रखे तथा मौन गृहों के दरारों को बन्द कर ठण्डी हवाओं से बचाना चाहिए।
श्री जोशी ने बताया कि माइट के प्रकोप से बचने के लिए मौनगृह के तलपट की साफ-सफाई समय-समय पर करते रहना चाहिए एवं खाली मौनगृहों को धूप में सुखा कर मौन गृहों को बदलते रहना चाहिए तथा वाटमबोर्ड पर सल्फर की डस्टिंग करते रहना चाहिए। गत वर्ष के अधिक शहद उत्पादन करने वाले सशक्त मौनवंशों को मातृ मौनवंशों की श्रेणी में रखते हुए इनसे मौनवंशों का सम्वर्धन सुनिश्चित किया जाय। विभाजित मौनवंशों में गुणवत्तायुक्त नई रानी देने हेतु पूर्व से तैयार की गयी रानी को क्वीन केज के माध्यम से विभाजित मौनवंश में प्रवेश कराया जाय, जिससे कम समय में सशक्त मौनवंश का सम्वर्धन सम्भव हो सके। उन्होंने बताया कि प्रदर्शन (मधु उत्पादक) मौनालय के ऐसे मौनवंश जिन्हें मातृ मौनवंश की श्रेणी में रखा गया है, उसकी प्रतिपूर्ति मातृ मौनालय के मौनवंश से कर लिया जाय।
उद्यान निदेशक ने बताया कि मौमी पतिंगे की गिडारों की रोकथाम हेतु बताये गये उपाय अपनाये जाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि मौनवंशों को सुदृढ़/सशक्त बनाये रखना चाहिए। मौनगृहों की दरारों को बन्द रखे जाने चाहिए। खाली छत्तों को मौनगृहों से निकाल कर पाॅलीथीन में पैक करके रखा जाना चाहिए तथा उन्हें वैसीलियस थ्यूरिनजेंसिस (बी0टी0 पाउडर) की 0.5 ग्राम दवा प्रति फ्रेम की दर से 1 लीटर पानी में घोलकर छत्तों पर छिड़काव करने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि प्रभावित छत्तों को धूप में रख कर गिडारों को हाथ से मारा जा सकता है।