नई दिल्ली: केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए तिलहनों और दालों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आज कृषि मंत्रालय की प्राथमिकता को रेखांकित किया। कृषि मंत्रालय से जुड़ी सलाहकार समिति के सदस्यों को आज सुबह संबोधित करते हुए श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय दालों की कमी को पूरा करने के लिए दालों का रकबा बढ़ा कर इनकी उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने की द्विआयामी अवधारणा पर संयुक्त रूप से कार्य करेंगे।
तिलहनों के संबंध में उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जिंस आधारित चार अनुसंधान संस्थानों में नौ वार्षिक तिलहन फसलों के बारे में अनुसंधान कार्यक्रम चला रही है। मंत्री महोदय ने बताया कि तिलहनों के क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय सफलता मिली है और खेती करने एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए तिलहनों की जलवायु अनुरूप एवं अधिक उपज देने वाली किस्में/संकर किस्में अधिसूचित की गई हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि पहले से ही उपलब्ध प्रौद्योगिकियों को अपनाकर भी नौ तिलहन फसलों की उपज बढ़ाई जा सकती है।
श्री राधा मोहन सिंह ने सदस्यों को बताया कि देश में पादप मूल की अनेक तेल उत्पादक प्रजातियां है, जिनमें नौ वार्षिक तिलहन प्रजातियां, दो बारहमासी (ताड़ का तेल और नारियल) तथा वन एवं वृक्ष मूल की कुछ गौण तेल प्रजातियां शामिल हैं।
नौ वार्षिक तिलहन फसलों में मूंगफली, तोरिया सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, रामतिल और कुसुम का उपयोग खाद्य तेलों के रूप में किया जाता है, जबकि अरंडी और अलसी अखाद्य वनस्पति तेल फसलें हैं।
सोयाबीन का कुल तिलहन उत्पादन में सर्वाधिक (36 प्रतिशत) योगदान है। इसके बाद मूंगफली, तोरिया सरसों, अरंडी, तिल, सूरजमुखी, अलसी, कुसुम और रामतिल का स्थान है। भारत अरंडी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और अरंडी तेल के वैश्विक व्यापार में इसका प्रमुख स्थान है। खाद्य तेल खपत की वृद्धि दर बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गई है, जबकि तिलहनो के वार्षिक उत्पादन में लगभग 2.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अत: खाद्य तेलों का आयात करना आवश्यक हो गया है। देश को 50 प्रतिशत से अधिक खाद्य तेल का आयात करना पड़ता है। घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पिछले वर्ष 69,717 करोड़ रुपये मूल्य के खाद्य तेलों का आयात करना पड़ा।
वर्ष 2020 और वर्ष 2025 तक (प्रति व्यक्ति खपत 16.43 किलोग्राम और 16.98 किलोग्राम रहने का अनुमान है) देश में वनस्पति तेलों की वार्षिक खपत को पूरा करने के लिए यह अनुमान लगाया गया है कि 2020 और 2025 तक क्रमशः 86.84 और 93.32 मिलियन टन तिलहन उत्पादन की जरूरत पड़ेगी।
मंत्री महोदय ने कहा कि वनस्पति तेल के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तिलहनों की उत्पादकता बढ़ाने के कार्यक्रम के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की तकनीकी मदद के अलावा एक अभियान के रूप में संस्थागत और नीतिगत समर्थन की जरूरत पड़ सकती है।
दालों के संबंध में मंत्री महोदय ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) भारतीय दाल अनुसंधान संस्थान कानपुर के साथ समन्वय और राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों, राज्यों के कृषि विभागों और अन्य संस्थानो की भागीदारी के माध्यम से अधिक उपज देने वाली किस्मों/संकर किस्मों के विकास और सहायक फसलों के उत्पादन तथा विभिन्न दलहन फसलों की सुरक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास में संलग्न। अधिक उपज देने वाली और कीट/ बीमारी को सहन करने वाली फसल किस्मों/संकर किस्मों की अधिसूचना के लिहाज से महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि हासिल हुई है।
किसानों के खेतों में दलहन संबंधी महत्वपूर्ण डेमो (एफएलडी) से दालों की उन्नत किस्म को न अपनाने के कारण उत्पादकता में 15 प्रतिशत की कमी और प्रौद्योगिकी के सम्पूर्ण पैकेज को न अपनाने के कारण उत्पादकता में 34 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। यह अनुमान लगाया गया है कि किसानों के खेतों में 34 प्रतिशत की इस पूर्ण पैकेज संबंधी उत्पादकता कमी को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय दाल उत्पादन को 17.62 मिलियन टन (2015-16 में समाप्त 3 वर्षों का औसत) से बढ़ाकर 23.61 मिलियन टन तक किया जा सकता है, जो दालों का अतिरिक्त क्षेत्रफल बढ़ाए बिना संभव हो सकता है और देश को दलहन के क्षेत्र में फिलहाल आत्मनिर्भर बनाने के लिए पर्याप्त होगा। मंत्री महोदय ने कहा कि दालों की खेती में बढ़ोतरी के लिए खेतों में प्रदर्शन के जरिये पूर्ववर्ती 400 केवीके के बजाय 500 केवीके को कवर करने का प्रस्ताव किया गया है। मंत्री महोदय ने यह भी कहा कि प्रजनक बीजों के लिए 100 बीज केंद्रों को मंजूरी दी गई है।
मंत्री महोदय ने कहा कि वर्ष 2025 तक आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाकर लगभग 1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के स्तर पर पहुंचाने की जरूरत है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) की केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना के तहत एक व्यापक कार्य योजना के साथ-साथ वर्ष 2015-16 के 16.47 मिलियन टन उत्पादन की तुलना में वर्ष 2016-17 में 20 मिलियन टन, वर्ष 2017-18 में 21 मिलियन टन और 2020-21 में 24 मिलियन टन का दलहन उत्पादन हासिल करने के लिए एक रोडमैप की परिकल्पना की गई है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007-08 में 14.76 मिलियन टन दलहन का उत्पादन हुआ था जो बढ़कर वर्ष 2013-14 में 19.25 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पहुंच गया। नई किस्मों और प्रौद्योगिकियों के विकास के रूप में वैज्ञानिक प्रयासों, बेहतर मौसम स्थितियों और नीतिगत सहायता के सकल प्रभाव से ही ऐसा संभव हुआ है। हालांकि, पिछले दो वर्षों के दौरान मुख्य रूप से प्रतिकूल मौसम के कारण दालों के उत्पादन में गिरावट आई है। वर्ष 2014-15 में उत्पादन 17.15 मिलियन टन दर्ज किया गया था, जबकि वर्ष 2015-16 में यह कम होकर 16.47 मिलियन टन रह गया, जो लगभग 22 मिलियन टन की वर्तमान घरेलू जरूरतों से अत्यंत कम है। इस कारण वर्ष 2015-16 के दौरान 18,000 करोड़ रुपये मूल्य की 5.80 मिलियन टन दालों का आयात करना पड़ा। परिचर्चा में भाग लेते हुए मंत्री महोदय ने यह जानकारी दी कि राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के तहत सूखा राहत से जुड़े पैमानों में बदलाव किए गए हैं, लेकिन सूखा राहत की मांग करने वाले राज्यों को ही ज्ञापन भेजना होगा। मंत्री महोदय ने कटाई के दौरान होने वाले नुकसान की रोकथाम के लिए दालों एवं तिलहनों की कटाई में और ज्यादा यंत्रीकरण को अपनाने की जरूरत पर विशेष बल दिया।
सदस्यों ने दलगत भावना से ऊपर उठकर किसानों के कल्याण पर नये सिरे से विशेष जोर देने और विशेषकर दालों एवं तिलहन की कृषि पैदावार बढ़ाने हेतु एनडीए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों के लिए मंत्री महोदय की सराहना की।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री परषोत्तम रूपाला, श्री एस.एस.अहलूवालिया और श्री सुदर्शन भगत ने इस बैठक में भाग लिया।
निम्नलिखित सांसदों ने बैठक में भाग लिया :
श्री चिंतामन नवशा वनागा, श्री जी. हरि, श्री गौदार मल्लिकार्जुनप्पा सिद्धेश्वर, श्री एम.बी.राजेश, कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल, श्री रौदमल नागर, श्री संजय शामराव धोत्रे, डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव, श्री शंकरभाई एन. वेगाद और श्री वी. विजयसाई रेड्डी।
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