नई दिल्ली: अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और परजोर फाउंडेशन के साथ मिलकर ‘हमारी धरोहर’ योजना के
अंतर्गत 19 मार्च, 2016 से 27 मार्च, 2016 तक शहर के प्रमुख सांस्कृतिक संस्थानों में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘द एवरलास्टिंग फ्लेम इंटरनेशनल प्रोग्राम’ की मेजबानी करेगा। 19 मार्च 2016 से शुरू होने वाला यह कार्यक्रम बेहद कम जनसंख्या वाले अल्पसंख्यक पारसी समुदाय के इतिहास, आस्था, परंपराओं और उनके योगदान का आयोजन है। पारसी समुदाय का उनकी जनसंख्या की तुलना में योगदान काफी ज्यादा है। कार्यक्रम के अंतर्गत दो महीने से ज्यादा अवधि में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें वैश्विक संस्कृति, दर्शन और कला में जरथुस्त्र पंथ और पारसियों के योगदान से जुड़ा हर तत्व मौजूद होगा।
द एवरलास्टिंग फ्लेम इंटरनेशनल कार्यक्रम में तीन प्रकार की प्रदर्शनियो का आयोजन किया जाएगा। इनमें राष्ट्रीय संग्रहालय में ‘अनंत लौः इतिहास और कल्पना में जरथुस्त्र ’, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में ‘थ्रेड्स ऑफ कॉन्टीन्युटीः जरथुस्त्र का जीवन और संस्कृति’ और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में ‘पेंटेड इनकाउंटर्सः पारसी कारोबारी और समुदाय’ प्रदर्शनियां शामिल हैं।
विश्व के पुराने धर्मों में से एक जरथुस्त्र की उत्पत्ति मूल रूप से दूसरी सहस्राब्दी बीसीई के दौरान मध्य एशिया की ईरानी जनजातियों के बीच हुई थी और इसका पूरे ईरान में विस्तार हुआ, जहां यह इस्लाम का उदय होने तक प्रमुख धर्म बना रहा। इस धर्म के केंद्र में एक मात्र रचयिता ईश्वर अहुरा माज्दा, उनके दूत जरथुस्त्र और अच्छाई व बुराई के बीच के विरोधाभास हैं।
प्रदर्शनी दर्शकों को ईरान के सबसे पुराने धर्म के रूप में जरथुस्त्र पंथ के उदय और उसके शुरुआती दिनों से रूबरू कराएगी। इसमें जरथुस्त्र पंथ के लोगों के ईरान से भारत के पश्चिमी तटों तक के समुद्री सफर और फिर भारत में बसने से जुड़ी जानकारियां भी होंगी, जहां उन्हें पारसियों के नाम से जाना गया। प्रदर्शनी में भारत में एक प्रवासी समुदाय के तौर पर उनके शानदार विकास और विस्तार का वर्णन होगा। उनकी कहानी को दस भागों में बांटा गया है।
आज भारत के पारसी अपने मूल देश ईरान (फारस) के बाहर सबसे बड़ा जरथुस्त्र समुदाय बन गया है। फारस में अत्याचार सहते हुए जरथुस्त्र धर्म के लोगों ने लगभग 937 ईंसवी में भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली। पारसी ‘दूध में चीनी की तरह’ अपनी खास पहचान के साथ भारत की बहु सांस्कृतिक धरोहर में शामिल हो गए। इसके साथ ही उन्होंने अपने तीन सिद्धांतों-हुमाता, हुकाता, हुवरअस्था (अच्छे विचारों, अच्छे शब्दों, अच्छी शिक्षाओं) में अपनी आस्था को बनाए रखा। आधुनिक भारत के निर्माण में उनका योगदान सराहनीय है, जिसमें भारत में परमाणु विज्ञान के जनक होमी भाभा शामिल हैं। इसके साथ ही औद्योगिक, मनोरंजन, परोपकार और कला क्षेत्र में इस पंथ के लोगों का योगदान उल्लेखनीय रहा है।