लखनऊ: दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान लखनऊ द्वारा आज युगपुरूष पं0 दीनदयाल उपाध्याय के जन्म दिवस के अवसर पर उनके वैचारिक मार्गदर्शन, विचारधारा, राष्ट्रीय भावना एवं एकात्म मानववाद के अन्तर्गत, ‘‘ग्राम स्वराज, कर्मयोग एवं सतत् विकास’’ विषयक एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुये महानिदेशक संस्थान वेंकटेश्वर लू ने आध्यात्म दर्शन एवं कर्मयोग के परिप्रेक्ष्य में कहा कि एकात्म मानववाद के प्रणेता पं0 उपाध्याय का मानना था कि अपनी संस्कृति, संस्कारों की विरासत के कारण भारतवर्ष विश्वगुरू के स्थान को प्राप्त करेगा, क्योंकि मनुष्य का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा यह चारों अंग ठीक से रहेंगे तभी मनुष्य को चर्मोत्कर्ष का सुख और वैभव की प्राप्ति हो सकती है। मानव किसी स्वाभाविक प्रवृत्ति को पं0 दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद की संज्ञा प्रदान की। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा को समझना है तो उसे राजनीति अथवा अर्थनीति के चश्मे से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही देखना होगा तथा भारतीयता की अभिव्यक्ति, राजनीति के द्वारा न होकर उसकी संस्कृति के द्वारा ही होगी। समाज में जब लोग धर्म को बेहद संकुचित दृष्टि से देखते हुये और समझते हैं तो उसी के अनुकूल व्यवहार करते हैं, उनके लिये पं0 उपाध्याय की दृष्टि को और भी समझना आवश्यक हो जाता है। जैसा कि उन्होने बहुधा अपने सम्बोधन में कहा है कि विश्व को यदि हम कुछ सिखा सकते हैं या नैतिक रूप से कुछ दे सकते हैं तो उसे अपनी सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं कर्तव्य प्रधान जीवन की भावना की ही शिक्षा दे सकते हैं।
आयुक्त ग्राम्य विकास विभाग, उ0प्र0 श्री अवधेश तिवारी ने कहा कि ग्राम स्वराज व्यवस्था, व्यक्ति के स्तर पर आत्मशासन और आत्मसंयम है तथा समाज के स्तर पर सरकारी नियन्त्रण से मुक्त होने के लिये लगातार प्रयास जारी है। स्वतंत्र भारत में ’’ग्राम स्वराज’’ के रूप में सत्ता के विकेन्द्रीकरण का एक राष्ट्र स्तरीय प्रयोग बनाने का लक्ष्य तय किये थे। आजादी के 75 वर्ष बाद देश की राज्य व्यवस्था में जिस तरह की विकृतियां बड़े स्तर पर उभर कर आयी हैं उसके परिप्रेक्ष्य में एकबार फिर संसदीय व्यवस्था और ग्राम स्वराज का विषय अद्यतन रूप से प्रासंगिक हो गया है।
ग्राम स्वराज के सपने को जयप्रकाश नारायण और आचार्य विनोबा भावे ने पूरी निष्ठा और समझ के साथ साकार करने की कोशिश की थी। विनोबा भावे जहां उसके सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष पर जोर दे रहे थे वहीं जयप्रकाश नारायण राजनैतिक व सामुदायिक चरित्र पर अपने को केन्द्रित किये हुये थे क्योंकि जयप्रकाश नारायण का मानना यह था कि राजनीति के क्षेत्र में यदि हमारी राजनीतिक संस्थाओं की गहरी जड़ स्थायी हों और वह बुनियादी निष्ठाओं के अधिकारी बनें तथा हमारे समष्टिगत अस्तित्व की वास्तविक अभिव्यक्तियों का रूप ले तो ग्राम पंचायतों को उनके सम्पूर्ण गौरव तथा समस्त तत्कालीन सत्ता के साथ पुनर्जीवित करना न्यायोचित होगा।
मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री अरविन्द कुमार जैन ने उपस्थित प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुये बताया कि मेरे पूर्व में समस्त प्रबुद्ध वक्ताओं ने आध्यात्म दर्शन, कर्मयोग तथा सांस्कृतिक विरासत पर बहुत कुछ विस्तार से बताया है। हम अपनी पुलिस सेवा में रहकर मात्र कानून व्यवस्था तक सीमित रहे परन्तु फिर भी मेरे अन्तर्मन में आध्यात्मिक प्रबन्धन एवं कर्मयोग की भावना समय-समय पर मेरे ज्ञान चक्षुओं को उत्प्रेरित करती रहती है। फलस्वरूप जहां एक ओर हमारी दृष्टि विश्व की उपलब्धियों पर हो, वहीं दूसरी ओर हम अपने राष्ट्र की मूल प्रकृति, प्रतिभा एवं प्रवृत्ति को पहचानकर अपनी परम्परा और परिस्थिति के अनुरूप भविष्य के विकास क्रम का निर्धारण करने की अनिवार्यता को भी न भूलें। अपने स्वयं के आंकलन एवं साक्षात्कार के बिना न तो स्वतंत्रता सार्थक हो सकती है और न ही वह कर्मचेतना जागृत हो सकती है, जिसमें परावलम्बन और पराभूति का भाव न होकर स्वाधीनता और स्वैच्छा हो। लोकतंत्र, समानता, राष्ट्रीयता स्वतंत्रता तथा विश्व शान्ति परस्पर सम्बद्ध कल्पनायें हैं किन्तु पाश्चात्य राजनीति में इनमें कई बार टकराव भी हुआ है कारण समाजवाद और विश्व शासन के विचार भी इन समस्याओं के समाधान के प्रयत्न से उत्पन्न हुये है पर वे कुछ नहीं कर पाये बल्कि नई समस्यायें पैदा हो गयी। भारत का सांस्कृतिक चिन्तन ही तात्विक अधिष्ठान प्रस्तुत करता है। भारतीय तात्विक सत्यों का ज्ञान देश और काल से स्वतंत्र है।
विशिष्ट एवं प्रमुख वक्ता के रूप में लोकभारती संस्था के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बृजेन्द्र पाल सिंह उर्फ बृजेन्द्र भाई द्वारा प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुये कहा कि एकात्म मानववाद के प्रणेता पं0 दीनदयाल उपाध्याय 20वीं सदी के वैचारिक युगपुरूष थे, उन्होने भारत के जन-गण-मन को गहराई में आत्मसात करते हुये न केवल वैचारिक क्रान्ति की बल्कि व्यक्ति क्रान्ति के प्रेरक बने। उनके दर्शन में आज भारत की संस्कृति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ-साथ मानव को केन्द्र बिन्दु में रखकर ही राष्ट्र एवं समाज को स्थापित करने का संकल्प लेते हुये व्यवहारिक परिणीति हेतु आम जनमानस को भी आमंत्रित किया जो स्वयं में एक विशिष्ट प्रेरणा स्वरूप है। दीनदयाल जी कल भी प्रासंगिक थे, आज भी प्रासंगिक हैं, और आगे भी प्रासंगिक रहेंगे। एकात्म मानववाद यह राजनीति के लिये नहीं अपितु विश्व की मानव सभ्यता और संस्कृति के लिये एक मुख्य पाथेय है, जो एक नई सामाजिक व्यवस्था का प्रेरक भी है।
वक्ताओं के सम्बोधन के दृष्टिगत द्वितीय चरण में प्रमुख राष्ट्रीय प्रशिक्षक, औद्योगिक विकास एवं आध्यात्मिक वरिष्ठ परामर्शी श्री ज्ञान पाण्डेय ने कहा कि हम सभी भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं परम्पराओं को इतर रखते हुये पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण में फंसकर जो हम आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास का दिवास्वप्न देखते हैं, यह परम् विडम्बनापूर्ण विषय है। पुनः प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि पं0 दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानववाद के दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त करते हुए समानांतर रूप से साम्यवाद, समाजवाद और पूंजीवाद तीनों की ही समालोचनाएं की हैं। एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताआंे और श्रजित कानूनों के अनुरूप राजनीतिक कार्यवाही हेतु एक वैकल्पिक संदर्भ दिया गया है, उनकी दृष्टि में विश्व का ज्ञान हमारी थाती है। अपने स्वयं के आंकलन व साक्षात्कार के बिना न तो स्वतंत्रता सार्थक हो सकती है और न ही कर्म चेतना जागृत हो सकती है, जिसमें परावलंबन और पराभूति का भाव न होकर, स्वाधीनता, स्वेच्छा और स्वअनुभवजनित सुख हों। अज्ञान, अभाव तथा अन्याय की परिस्थितियों को समाप्त करने के लिए सुदृढ, समृ़द्ध, सुसंस्कृत एवं सखी व बौद्धिक राष्ट्र जीवन का शुभारंभ सबके द्वारा स्वेच्छा से किये जाने वाले कठोर से कठोर श्रम तथा सहयोग की आवश्कता का औचित्य है। यह महान कार्य राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एक नये नेतृत्व की अपेक्षा रखता है तथा भारतीय जनमानस का जन्म इसी अपेक्षा को पूर्ण करने के लिए हुआ है।
ग्राम पंचायत विकास कार्यक्रमों को गति प्रदान करने के दृष्टिगत सतत् विकास लक्ष्यों की महती उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुये संस्थान के उप निदेशक श्री राकेश रंजन ने प्रतिभागियों को सर्वांगीण रूप से उक्त विषय को परिभाषित करते हुये अवगत कराया।
इस एक दिवसीय कार्यशाला का कुशलतापूर्वक संचालन संस्थान के उप निदेशक अनुज श्रीवास्तव द्वारा किया गया तथा कार्यशाला के अन्तर्गत उपस्थित मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथिगणों तथा समस्त प्रतिभागियों को संस्थान के अपर निदेशक डॉ0 डी0सी0 उपाध्याय द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यशाला के प्रबन्धन एवं व्यवस्था के अन्तर्गत संस्थान के उप निदेशक बी0डी0 चौधरी तथा सुबोध दीक्षित का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा।
कार्यशाला के अन्तर्गत विशिष्ट अतिथियों व प्रबुद्ध वार्ताकार के रूप में लोकभारती संस्था के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बृजेन्द्र पाल सिंह उर्फ बृजेन्द्र भाई तथा प्रमुख राष्ट्रीय प्रशिक्षक, औद्योगिक विकास एवं आध्यात्मिक वरिष्ठ परामर्शी ज्ञान पाण्डेय द्वारा कर्मयोग, ग्राम स्वराज तथा सतत् विकास पर महत्वपूर्ण विचार प्रकट करने के साथ पं0 दीनदयाल उपाध्याय के वैचारिक दर्शन पर विशिष्ट प्रकाश डाला गया।